Buy Chintu Ji - Microsoft Store en-AUसम्पूर्ण परिवार के संग देखी जाने वाली चंद आधुनिक स्वस्थ हास्य फिल्मों में चिंटू जी को रखा जा सकता है| फिल्म की टैग लाइन –

This film is part reality, part illusion and part fact, part fiction

फ़िल्म को बेहतर ढंग से परिभाषित कर देती है|

ऋषि कपूर स्वयं की ही यानि प्रसिद्ध अभिनेता ऋषि कपूर, जिन्हें चिंटू के नाम से भी जाना जाता है, की ही भूमिका निभाते हैं जिसमें थोड़ी वास्तविकता, थोड़ा भ्रम, थोड़े तथ्य और थोड़ी कल्पना का समावेश है| लेकिन ऋषि कपूर, नीतू सिंह/कपूर, राज कपूर और कृष्णा कपूर के वास्तविक नाम और व्यवसाय ही उपयोग में लाये गए हैं, फ़िल्म उन पर कोई डॉक्यूमेंटरी नहीं दिखाती है|  चिंटू जी का चरित्र उतना ही काल्पनिक है जैसे कि ऋषि कपूर पिछले पचास साल से सैंकड़ों फ़िल्मों में निभाते आ रहे हैं| निश्चित रूप से ऋषि कपूर के वास्तविक जीवन से यहाँ वहाँ संदर्भ लिए गए हैं, लेकिन इन संदर्भों को भी कल्पना की चाशनी में डुबो कर ही प्रस्तुत किया गया है| जैसे कि ‘मेरा नाम जोकर’ वाला संदर्भ फ़िल्म में उपयोग में लाया गया है|

अदाकारी के हिसाब से ऋषि कपूर की फ़िल्मोंग्राफी में चिंटू जी एक महत्वपूर्ण फ़िल्म बन कर उभरती है| चरित्र अभिनेता की उनकी दूसरी पारी में ‘लक बाय चांस’ में उनके द्वारा निभाए गए फ़िल्मकार रोली कपूर के चरित्र में उनकी अदाकारी ने उनकी प्रतिभा को अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया था और चिंटू जी उनकी अभिनय प्रतिभा का और आगे बढ़कर दोहन करती है| हिन्दी सिनेमा के अभिनेताओं के लिए फ़िल्मों में एक फ़िल्म अभिनेता का चरित्र निभाना एक कठिन बात ही रही है और अधिकतर वे ऐसे चरित्रों को कैरीकेचर बना कर प्रस्तुत करते रहे हैं| अपवाद भी रहे हैं जैसे ‘लक बाय चांस’ में ह्रतिक रोशन ने इस बाधा को सफलतापूर्वक पार किया|

वास्तविकता और कल्पना में कितना अंतर होता है और एक अभिनेता स्वयं को ही कल्पना आधारित फ़िल्म में एक चरित्र के रूप में निभाने के लिए कितनी कल्पनाशक्ति का उपयोग कर सकता है, ये सब बातें अभिनेता को प्रभावित करती ही हैं| ओम पुरी जैसे सशक्त अभिनेता ‘किंग ऑफ बॉलीवुड’ में एक अभिनेता की भूमिका को अच्छे ढंग से नहीं निभा पाये जबकि उन्होंने ही एक अन्य फ़िल्म – ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ में एक फ़िल्म अभिनेता का चरित्र प्रभावशाली ढंग से निभा दिया|

चिंटू जी में ऋषि कपूर ने सभी सीमाओं का अतिक्रमण करके एक पूर्णतया मनोरंजक अदाकारी का प्रदर्शन किया| फ़िल्म बहुत हद तक उनके प्रभावशाली अभिनय के कंधों पर टिकी है| चिंटू जी एक साधारण सी कथा पर आधारित है और उसे दिखाया भी साधारण तरीके से ही गया है बिना किसी तरह के लटके झटके के, और यही साधारण प्रकृति फ़िल्म की ताकत बन जाती है| ये उन फ़िल्मों में से है जिसे एक 3 साल के बच्चे से 90 साल से ऊपर के वृद्ध तक सभी दर्शक देख कर मनोरंजन प्राप्त कर सकते हैं| ये उन फ़िल्मों में से भए है जिनहे बिना किसी बड़ी अपेक्षा के दर्शक देखता है और वे सीधे उसके दिल में घर कर जाती हैं|

हिन्दी थियेटर संसार के एक बहुत बड़े नाम रंजीत कपूर, जिनकी कलम, कालजयी फ़िल्मों जैसे द बेंडिट  क्वीन, जाने भी दो यारो, और कभी हाँ कभी ना से संबन्धित रही है, और जिन्होंने राज कुमार संतोषी के लिए भी बहुत सी फिल्में लिखी हैं, चिंटू जी से अपनी निर्देशकीय पारी की शुरुआत उन्होंने की थी|

पूरी तरह से मौलिक प्रतीत होती फ़िल्म को हड़बहेड़ी नामक एक कल्पित स्थान पर स्थित किया गया है| फ़िल्मों में आजकल बहुत अच्छे चरित्र को निभाना रिस्क लेने के बराबर है क्योंकि लोग ऐसे अच्छे चरित्रों और ऐसी फ़िल्मों का उपहास उड़ाने लगते हैं| कुछ बरस पहले सूरज बड़जात्या की ‘विवाह’ का और उसके चरित्रों का फ़िल्म समीक्षकों द्वारा जम कर मजाल उड़ाया गया था|

यहाँ चिंटू जी में तो हड़बहेड़ी गाँव में ऐसे भले और भोले लोगों की भीड़ है जो किसी का भी दिल दुखाना नहीं चाहते| वे किसी के भी बारे में तनिक भी बुरा नहीं सोचना चाहते| यहाँ के लोग बिलकुल साधारण जीवन जीते हैं और इस हद तक सात्विक हैं अपने सोच और कर्म में कि अगर वे ऐसा पाते हैं कि उनमें से किसी से ऐसा कृत्य हो गया है जो मानवता को हानि पहुंचा गया है तो वे तीन दिवसीय सामूहिक उपवास का पालन करते हैं| ऐसे भले लोग एक डूबते फ़िल्मी सितारे ऋषि कपूर को अपने यहाँ आमंत्रित करते हैं क्योंकि ऋषि कपूर का जन्म यहाँ हुआ था| बरसों पहले राज कपूर और उनकी गर्भवती पत्नी कृष्णा कपूर यहाँ आए थे और यहीं कृष्णा कपूर को प्रसव पीड़ा हो जाती है और गाँव की ही एक दाई उनका प्रसव कराती है और नवजात बच्चे को नाम देती है- चिंटू|

वही बच्चा बड़ा होकर फ़िल्म सितारा ऋषि कपूर बन जाता है जिसका फ़िल्मी जीवन अब तेजी से ढल रहा है और अपनी प्रसिद्धि और सितारा होने के रुतबे को कायम करने के लिए वह राजनीति में प्रवेश करने की योजना बनाता है और इसके लिए एक पी आर एजेंसी की सेवाएँ लेता है| हड़बहेड़ी की जनता का निमंत्रण उसे अपनी योजना के अनुकूल लगता है| फ़िल्म भारतीय लोगों के किसी भी क्षेत्र के सितारों के प्रति अत्याधिक आकर्षण रखने की प्रवृत्ति पर अच्छा सामाजिक व्यंग्य प्रस्तुत करती है|  यहाँ सफलता और प्रसिद्धि ही दो कसौटी बन गए हैं लोगों को सराहने और पूजने के और व्यक्तियों की प्रतिभा, ईमानदारी, क्षमता और अच्छी प्रकृति आदि गुण महत्वहीन बन गए हैं| सितारों के बहुत से कृत्य समाज के विरुद्ध जा रहे होंगे लेकिन लोग उन्हें पूजे चले जाते हैं|

फ़िल्म में ऋषि कपूर एक घमंडी, लालची, और सदा अपना ही हित देखने वाला एक सनकी सितारा है, और हड़बहेड़ी के भले लोगों जो कि उस पर बिना किसी अपेक्षा के प्रेम उड़ेलते हैं, का तिरस्कार करता रहता है| फ़िल्म ऐसे ही सितारे की कथा दिखाती है जिसका हड्बहेड़ी का अल्पावधि का प्रवास उसकी ज़िंदगी बदल देता है और कैसे वहाँ के वासी इस बदलाव के लिए माध्यम बनते हैं| किसी को कभी भी ऋषि कपूर की अच्छी अभिनय प्रतिभा के ऊपर शक रहा हो तो उसे चिंटू जी में ऋषि कपूर का बेलौस अभिनय अवश्य देखना चाहिए| उन्होंने इस फ़िल्म में अभिनय करने का पूरा लुत्फ उठाया है|

विश्व के बेहद सम्मानित सिने निर्देशकों को अनूठी श्रद्धांजलि देने वाले गीत के अंत में जब ऋषि कपूर अपने सिंहासन से उठकर भाला लहराकर “सत्यजीत रे” चिल्लाते हैं तो दृश्य में ऋषि कपूर की तन्मयता और ऊर्जावान तल्लीनता देखकर उत्तेजना से दर्शक के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं|

फ़िल्म के गीत अच्छे हैं| रोमांटिक गीत – चाय के बहाने एक मधुर दोगाना है| यहाँ सब ठीक है भी अच्छा गीत है|

सभी अभिनेताओं को ऐसा चरित्र निभाने को नहीं मिलता जैसा ऋषि कपूर को इस फ़िल्म में मिला और ऋषि कपूर ने इस अवसर का भरपूर लाभ भी उठाया और चिंटू जी में उनका अभिनय उनके दस सबसे श्रेष्ठ अभिनय प्रदर्शनों में गिना जाएगा| चिंटू जी को देखकर ऋषि कपूर के पिछले अच्छे अभिनय प्रदर्शनों के बारे में एक नोस्टेल्जिया उत्पन्न होता ही होता है|

सौरभ शुक्ला, अन्नू कपूर, शबनम कपूर, जो कि निर्देशक रंजीत कपूर की माता जी ही थीं, ग्रुशा कपूर, प्रियान्शु चटर्जी, कुलराज रंधावा, सोफी चौधरी और कई अन्य अभिनेताओं ने छोटी छोटी भूमिकाओं को सबल तरीके से निभाकर फ़िल्म को जीवंतता प्रदान की है|

लोग फ़िल्म में दिखाये चरित्रों जैसे लोगों से परिचित होते हैं| उन्हें अपने आसपास बरसों से देखते हैं, फिल्म उद्योग में, राजनीति में, उद्योग जगत में उन्हें देखते रहते हैं| बरसों पहले मनोहर श्याम जोशी ने ‘नेता जी कहिन’ जैसा जो सामाजिक व्यंग्य लिखा था चिंटू जी उसी श्रंखला जैसे चरित्र, मनोरंजक परिस्थितियाँ और चुटीले संवाद लेकर आती है|

फ़िल्म की जान इसके संवाद भी हैं –

सौरभ शुक्ला – तुम ये बताओ तुम कैसे ट्रेन रुकवा सकते हो जहां चाहे?

अपने जीजा जी से कह के, वो रेलवे मंत्री हैं ना!

सौरभ शुक्ला – क्या नाम है तुम्हारा?

पप्पू यादव!

सौरभ शुक्ला – अरे अब तक कहाँ छिपे थे तुम?

सौरभ शुक्ला एक निर्माता निर्देशक की भूमिका में हैं| वे अपने लेखक से स्क्रिप्ट में बदलाव करके नायक को मारने के लिए कहते हैं|

लेखक चिल्ला कर – मैं एक प्रसिद्ध लेखक हूँ, और मैंने कई अवार्ड्स जीते हैं, मैं अपनी स्क्रिप्ट में एक शब्द नहीं बदलूँगा|

सौरभ शुक्ला अपने सहायक से – इसका एकाउंट बनाओ और हटाओ यहाँ से|

लेखक चिंतित स्वर में – हीरो को मारने में हमें कोई परेशानी नहीं है पर एक्शन और सस्पेंस डालना पड़ेगा| बोलो डाल दूँ?

 

एक जगह चिंटू जी कहते हैं,” अमर संघवी, साहब आपको कौन नहीं जानता आप तो हमारी बिरादरी में ऐसे घुल…”

एक जगह वे कहते हैं,” अच्छा वहाँ स्क्रिप्ट को प्रॉपर्टी कहते हैं हमारे यहाँ तो भाई प्रॉपर्टी को ही प्रॉपर्टी कहते हैं”

जिन लोगों को राज कपूर की “मेरा नाम जोकर” में राज कपूर और  रशियन अभिनेत्री Kseniya Ryabinkina के बीच रशियन शब्दों का दा दा – हाँ हाँ वाला दृश्य पसंद आया था यहाँ चिंटू जी में वे उन्हीं रशियन अभिनेत्री और ऋषि कपूर के मध्य उस दृश्य की पुनरावृत्ति देखकर “मेरा नाम जोकर” के प्रति नोस्टेल्जिया को अनुभव कर सकते हैं और “मेरा नाम जोकर” को एक बार और देख सकते हैं|

…[राकेश]