कवि शैलेन्द्र सा महान गीतकार हो, सचिन देव बर्मन जैसा महान संगीतकार, जिसके गीतों की मिठास की प्रतियोगिता में उँगलियों पर गिने जा सकने वाले संगीतकार ही रहे हैं, साथ हो, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, जैसे महानतम गायक और एक एक गीत से फ़िल्म के संगीत को उच्च स्तरीय समर्थन देने वाले महान गायक किशोर कुमार, मन्ना डे और सचिन देव बर्मन स्वंय हों तो उस फ़िल्म की म्यूजिक एलबम हिट न हो, जनमानस के दिल में जाकर न समाये इसकी संभावना नगण्य ही है| सो ऐसे संगीतमयी माहौल में एक फ़िल्म निर्देशक की भूमिका क्या है? वह साधारण सा फिल्मांकन भी इन गीतों का कर दे तो भी संगीत फ़िल्म को प्रसिद्द बना देंगे|
ऐसे में फ़िल्म गाइड के गीतों में विजय आनंद की भूमिका क्या है?
विजय आनंद को गुणवत्ता की ऐसी आदत थी कि वे इन गुणी कलाकारों के स्तर पर ऊपर उठकर ही गाइड के गीतों को फिल्मांकन देना चाहते थे जहां हरेक फ्रेम गीतों के बोलों से संगीतमयी संगत करता हुआ दिखाई दे और गीतों के फिल्मांकन का तौर तरीका फौरी तौर पर रस्मे अदायगी न लगे बल्कि फिल्म में कहानी को आगे बढाते हुए दिखाई दे इसके लिए हरेक गीत की हरेक पंक्ति पर निर्देशकीय द्रष्टि से भरपूर सोच विचार चाहिए, भरपूर उर्वरा शक्ति की कल्पनाशीलता का शिखर चाहिए| विजय आनंद को भी सिद्ध करना होगा कि वे इन विश्व प्रसिद्द कलाकारों से किसी स्तर पर कमतर नहीं हैं अपनी कला में| ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा?
- वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ
जेल से रिहा हुआ राजू अपने चिर परिचित शहर की तरफ मुड़कर अनजान राह पर चल देता है, अब न राह का पता है न मंजिल का, और न ही मंजिल कीकोई तलाश ही है| हवा जैसे चाहे जहाँ तक चाहे सूखे पत्ते को उड़ा ले जाए| सोचने की शक्ति पास नहीं है| केवल समर्पण है मौजूदा परिस्थितियों के समक्ष|
जिस भी राह पर चलो एक स्तर के बाद मार्ग और स्वयं की शक्ति दोनों परीक्षा लेने ही लगते हैं| परिचित मार्ग पर सुख दुःख देखे भाले होते हैं, कहाँ सहारा लेना है यह पता होता है लेकिन अनजान राह पर कोई साथ नहीं है केवल रही और उसकी अपना आत्मविश्वास और उसकी किसी न किसी शक्ति या बात पर श्रद्धा|
विजय आनंद ने स्थानों और मौसम की विभिन्नता और राजू के कपड़ों, जूतों की बदतर होती हालत दिखाकर बीतते समय की चाल दिखा दी, शहर की सड़कें और गाँवों की ओर जाते कच्चे रास्तों की झलक दिखला दी लेकिन राजू को अभी चैन नहीं है, थकान है अपने अकेलेपन पर रोता है, रोजी के फोटो देखकर अपने अकेलेपन के गहरे अहसास से भर जाता है, जानता है जो बीत गया अब वापिस नहीं आएगा, भूख से बेहाल है, आज गाँव में एक छोटे से किसान के रहट पर मजदूरी करके चंद पैसे पाकर संतुष्ट है कि एक वक्त का भोजन मिल जाएगा| जो खुद कमाता था आज उसे भिखारी समझ कर लोग उस पर पैसे फेंक कर जा रहे हैं| अहं पर इतनी बड़ी चोट! बसंत बीत कर गर्मियों के गुलमोहर खिले पड़े हैं लेकिन उसके जीवन में पतझड़ का वास है| घबराकर वह भाग खड़ा होता है| भूखे शरीर में शारीरिक उर्जा नहीं है लेकिन मानसिक उर्जा उसे आगे और आगे लिवाये जा रही है|
फटे जूते जब पैरों में धारण करने लायक न बचे तो उतार फेंके, और जब नंगे पांवों में कांटे चुभे, तो दर्द हुआ लेकिन अपनी बेबसी, जो उसकी समझ में आ चुका है उसी की खुद की जन्मायी हुयी है, पर आज मुस्करा उठा| आज वह “हम दोनों” का खाता पीता फौजी अधिकारी नहीं है जो दुःख में गा उठे-
कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया|
आज अपनी हालत पर उसे हंसी आ रही है क्योंकि वह अब भौतिक कष्टों से ऊपर उठने लगा है|
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
वही तो नहीं है दुनिया में अकेला सुखी या दुखी, और भी लोग हैं जो उससे ज्यादा दुखी होंगे या उससे ज्यादा दुखी होंगे| नंगे पाँव उससे दो कदम न चला जा सका और उधर देखो साधुओं का झुण्ड नंगे पाँव मस्ती में चला जा रहा है! उनकी अपेक्षा ही नहीं है कुछ भी|
राजू के पाँव अपने आप उनकी ओर चल पड़ते हैं, उनके पीछे पीछे मार्ग का अनुसरण वह करने लगता है| पर उन जैसा नहीं है अतः उनसे दूर एक चबूतरे पर धराशायी हो जाता है|
समूह में भोजन ग्रहण करते साधुओं में से एक बुजुर्ग साधु राजू के पास भोजन की थाली लेकर आते हैं| यह भीख नहीं है, यह मानव स्नेह है और राजू के लिए प्रसाद|
दया धर्म को मूल है|
थके हारे शरीर को भोजन के बाद और खुद से लड़ कर थके मन को सोचने से विश्रांति के बाद नींद के आगोश में जाना ही है लेकिन खुले आसमान के नीचे शरीर को ठण्ड भी लगेगी ही, सोते हुए राजू को परेशानी में देख एक साधु स्नेह से मुस्करा कर अपनी गेरुआ चादर उसे ओढा जाता है| अपनी एकमात्र चादर राजू को देने का विचार आते ही साधु की मुस्कान इतनी मोहक़ है कि राजू अगर जगा हुआ होता तो शायद तभी स्वयं से ही गेरुआ पहनने की सोचता|
एक गीत कैसे एक साधारण मनुष्य को जगतकी नश्वरता का अहसास करा सकता है विजय आनंद इस गीत को इसके दर्शन के अनुसार एक अध्यात्म की राह का गीत बना देते हैं अपने फिल्मांकन से|
पर अभी आराम कहाँ? परीक्षाएं तो अब शुरू होंगी, इसलिए गेरुआ ओढ़े सोते राजू को भी साधू ही समझ, गाँव का मुखिया (गजानन जागीरदार) प्रसन्न होकर उसकी ओर बढ़ रहा है|
2. काँटों से खींच के ये आँचल
रोजी युवावस्था तक अपनी तवायफ माँ के बदनाम व्यवसाय के साए तले दबी रही है| उसकी खूबसूरती के कारण, मार्को, जिसे पुरुष संचालित समाज में बाकी पुरुषों में इस क्षेत्र में भी अपने श्रेष्ठता कायम करने के लिए एक खूबसूरत पत्नी चाहिए, क्योंकि उसके जीवन में ऐसी प्रेमिका का आना तो असंभव है, रोजी की पृष्ठभूमि का लाभ उठाकर, उससे विवाह कर लेता है|
लेकिन उसकी सामाजिक स्थिति में यह बदलाव भी उसके जीवन को नहीं बदल पाता क्योंकि अब उसके वर्तमान के ऊपर श्रीमति मार्को होने की पाबंदियों का दबाव भी आ गया है और निजी जीवन पर उसके गृहस्थ जीवन के अन्य भी दबाव हैं जो वह किसी से साझा नहीं कर सकती क्योंकि उससे मार्को की झूठी शान और सामाजिक साख मिट्टी में मिल जायेगी इसलिए मार्को उसे एक तरह से घर की कैद में ही रखता है जहां वह किसे से मिले जुले नहीं| मार्को को लगता है कि एक तवायफ की बेटी को उसका शीराफाना नाम मिल गया एक सामाजिक पहचान मिल गयी और उसे क्या चाहिए?
आगे रोजी और मार्को का दाम्पत्य मनमुटाव बढ़ना है और रोजी और राजू की नजदीकियां बढ़ने वहां संगीत ढंग से बह सके इसके उस दौर के संगीत के प्रील्यूड के तौर पर विजय आनंद वहीदा रहमान पर फिल्माए इस खूबसूरत गीत को जीवन देते हैं|
यह गीत रोजी के जीवन का क्षण भंगुर गीत है, आगे का उसे नहीं पता लेकिन आज वह अपनी पुरानी दोनों पहचानों से उबर कर एक टूरिस्ट/पर्यटक बन गयी है| एक टूरिस्ट की मानसिकता होती है कि वह ऐसी जगह है जहाँ उसे कोई नहीं जानता और सामान्यतः एक टूरिस्ट यही मान कर चलता है कि यहाँ वह कुछ भी कर सकता है और जब तक स्थानीय कानून नहीं तोड़ रहा तब तक सब अच्छा है और यह तो उसके दिमाग में रहता ही है कि टूरिस्ट प्लेस में माहौल सामान्यतः उदार रहता है कि क्योंकि स्थानीय लोगों की जीविका में बहुत बड़ा हिस्सा पर्यटन से प्राप्त होता है|
विजय आनंद को एक पर्यटक और ऊपर से ऐसी स्त्री पर्यटक के अन्दर अनायास फूट पडी स्वच्छन्दता और स्वतंत्रता की भावना को दिखाना था जो अपने अंदुरनी साहस से भर गयी है कि अब बहुत हो गया अब वह अपने भूतकाल और वर्तमान के बोझ तले दब कर नहीं रहेगी| जो हो सो हो जाए, बदनामी सही, इतना उसे भली भांति पता है कि मार्को अब अपनी बदनामी को सहन नहीं कर सकता अतः मार्को की तरफ से वह निश्चिंत है और सामाजिकता के दबाव से वह मुक्त होने के प्रयास में है| कल क्या हो किसे पता इसलिए वह आज भर को भरपूर जी लेना चाहती है|
चलते खुले ट्रक के पीछे फूस के ढेर पर लेटकर वह अपना सर नीचे करके मस्ती में मगन है और उसकी सुरक्षा का ध्यान भी उसके टूरिस्ट गाइड राजू को रखना पड रहा है|
यह चूंकि रोजी का गीत है और इसलिए विजय आनंद इसका पूरा प्रांध करके रखते हैं कि राजू इसमें रोजी की क्रियाओं से उपजी प्रतिक्रियाओं के रूप में ही नज़र आने चाहियें| विजय आनंद को बाद में बड़े भाई देव आनंद जो देश के उसवक्त के पांच सबसे बड़े सितारों में से एक थे, से स्नेह भरी डांट भी कहानी पडी होगी जब उन्होंने ट्रायल शो में इस गीत के फिल्मांकन में खुद को ऊंट पर बैठे हुये एक नौसिखिया टूरिस्ट की तरह देखा होगा जिसे ऊंट की सवारी का कोई अनुभव नहीं है और जिसकी छड़ी को भुलाकर ऊंट ऊँचे पेड़ की टहनी के पत्ते खाने में व्यस्त है| यह गीत देव आनंद का होता तो विजय आनंद इस दृश्य को ऐसे ही रॉ फॉर्म में रखने की शरारत देव आनंद जैसे बड़े सितारे के साथ न करते| पर यहाँ वे यह लिबर्टी ले गए|
वहीदा रहमान एक छोटे कद की लेकिन बेहद कुशल नृत्यांगना अभिनेत्री हैं और इस गीत के समय उनका आभासी कद (उनके चरित्र रोजी की भावनाओं से भरा कद) बेहद ऊँचा नज़र आये इसके लिए विजय आनंद ने वक्ते जरुरत लो और हाई एंगल शॉट्स के साथ साथ, झरोखों के बीच से उन्हें अठखेलियाँ करते कैमरे के माध्यम से दर्शाया है|
वीरान महलों और मदिरों के खंडहरों में जहां कोई मनुष्ययपरेशान करने के लिए नहीं है वहां रोजी को छोड़कर वहीदा रहमान से कहा गया होगा कि वे नृत्य के पूर्वाभ्यास वाले स्टेप्स के अलावा वह सब करें जो उनका मन करे और ऐसे निर्देशों के साथ इसका फिल्मांकन किया गया होगा| कभी कभी छोटा कद फायदा भी करता है वर्ना एक दरवाजे के ढांचे से बाहर आते ही वे प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए ऊपर कूदती हैं, अगर मुमताज़ या साधना जैसा उनका कद होता तो उनके सिर में अच्छी चोट लगती| विजय आनंद ने इस शॉट को भी ज्यों का त्यों रख दिया है रोजी की अंदुरनी बेपरवाह भावना को दर्शाने के लिए|
इस गीत पर और बहुत कुछ लिखा जा सकता है पर लिखा हुआ मसला लंबा खिंचता चला जाएगा|
3. तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं
राजू के घर रहने आ गयी रोजी पर सामाजिकता का दबाव पड़ता है और उसका राजू के घर रहने का औचित्य क्या है इसका उत्तर उसे देना है| पुनः मानसिक दबावों से घिरी उदास और दुखी रोजी को राजू घर से बाहर लाया है| गोधूलि के वक्त उदयपुर में झील के किनारे राजू रोजी के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन करके उसे आश्वस्त करना चाहता है|
विजय आनंद ने यही माहौल क्यों चुना होगा? शायद रोजी के अन्दर बनते बिगड़ते भविष्य के असमंजस को दिखाने के लिए गोधुलि के आसमान से ज्यादा विभिन्न रंगों वाला आकाश नहीं मिल सकता था| सांझ ढल रही है , रात घिरने वाली है और ऐसे संध्याकाळ में प्रेमी अपने प्रेम को दर्शा कर स्त्री को अपने और अपने प्रेम के प्रति आश्वस्त करना चाहता है और अपने प्रेम को झील सा गहरा दिखाना चाहता है|
किसी चरित्र का एक स्वभाव होता है उसकी एक प्रकृति होती है और फिर जब कोई प्रसिद्द सितारा अभिनेता उस चरित्र को निभा रहा अहो तो उसकी निजी मर्यादाएं भी आड़े आ ही जाती हैं, निर्देशक का अपना ख्याल भी होता है कि मेरा नायक ऐसे व्यवहार करेगा इन परिस्थितियों में| इसी से उसका व्यक्तित्व आगे ज्यादा निखर कर मुखर होकर सामने आयेगा| इस गीत से यह बहुत स्पष्ट होजाता है कि देव आनंद जो राजू के रूप में कर रहे हैं वह पूर्वनियोजित योजना का हिस्सा है| यह एक अभिनेता और उसके निर्देशक की परसपर समझ से उपजा व्यवहार है| उदाहरण देखिये गीत में –
स्त्री के दुःख अपनाने और अपने सुख उसे देने और एक सुखद भविष्य के बारे में तमाम वादे और दावे करने के बाद गीत के तीन चौथाई हिस्से के संपन्न होने के बाद नायक राजू, नायिका रोज़ी से उसी की तरह मुंह रखते हुए ही धीरे धीरे पीछे हटता हुआ दूर चला जाता है और एक ठीक ठाक सी दूरी जहाँ से दोनों एक दूसरे की निगाहों के भाव देख सकें, पढ़ सकें, खड़ा हो जाता है| और नायिका की ओर हाथ बढ़ा देता है|
अगर श्वेत वस्त्र धारिणी नायिका को उसके प्रेम के रंग में रंगना स्वीकार हो तो स्वंय ही आगे बढ़कर उसका हाथ थाम ले, क्योंकि शराफत का तकाजा है और प्रेम की पवित्रता भी कि वह अपने को उस पर थोपेगा नहीं, उसके नाजुक क्षणों का लाभ उठाकर उसपर अनुचित दबाव नहीं डालेगा| उसने अपने प्रेम का प्रदर्शन कर दिया, अब नायिका के ऊपर है, सब सोच समझ कर आगे बढे और नायक का हाथ था ले जिससे प्रेम दोनों दिलों में बराबर की हिस्सेदारी करे|
अपनी ही अनिश्चिन्त्ताओं से सहमी, ठिठकती नायिका नायक की ओर खिंचती हुयी सी आगे बढ़ती है और उसका हाथ थाम लेती है और उसके विश्वास करने से गदगद नायक उसे अपने आलिंगन में बांधकर उसे फिर से आश्वस्त करता है
लाख मना ले दुनिया साथ न ये टूटेगा
आके मेरे हाथों में हाथ न ये छूटेगा
इस गीत का ऐसा फिल्मांकन देव आनंद की सिनेमाई छवि और उनके निजी स्वभाव से एकदम मेल खाता था इसलिए वहीदा रहमान से दूर जाकर हाथ बढाते देव आनंद अभिनेता जैसे नहीं लगते बल्कि एक देव पुरुष जैसी छवि लगते हैं|
4. पिया तोसे नैना लागे रे
यह गीत तो राजू द्वारा रोजी की कला की उत्कृष्टता को दुनिया के सामने पूरे विश्वास से लाने की यात्रा है| भारत भर में भ्रमण करते हुए और बदलते मौसम को दिखाने के लिए विजय आनंद ने भारत में मनाये जाने वाले विभिन्न पर्वों का सहारा लिया है और साथ ही घर में कलाकार नायिका और उसके मैनेजर बनते जा रहे प्रेमी के मध्य घनिष्ठता दिखाने के दृश्यों को भी इसके फिल्मांकन में समाहित किया गया है जिससे कहानी की प्रगति गीतों के कारण रुके नहीं|
शुरू में राजू के पास साधन नहीं हैतो वह स्कूल कॉलेज से शुरुआत करता है, अपने हाथों से ऐसे प्रयास करता है कि मंच पर नृत्य करती रोजी के नृत्य का प्रभाव और बढे| अभी तक अनजाना रहा कलाकार अपनी स्तरीय कला के सार्वजानिक प्रदर्शन के साथ कैसे प्रसिद्धि प्राप्त करता है और वह इसका अधिकारी भी है, यह बड़े सिलसिलेवार तरीके से एक ही गीत में विजय आनंद ने दिखा दिया|
देव आनंद की फिल्मों में उनके ऊपर फिल्माए गए गीतों का एक विशेष स्थान रहा है और यहाँ गाइड में शुरू में लगभग सभी गीत (आज फिर जीने की तमन्ना, पिया तोसे, सैयां बेईमान) वहीदा रहमान के ऊपर फिल्माए गए थे और देव आनंद ने निर्देशक विजय आनंद से कहा कि मेरे जैसा अभिनेता बिना गाना गए कैसे रहेगा?
देव साब के हठ के कारण उन्हें तीन गीत परदे पर गाने के लिए जन्माये गए| और एक गीत तो फ़िल्म पूरी बन जाने के बाद अलग से जोड़ा गया| विजय आनंद किस स्तर के निर्देशक थे यह इसी से पता चलता है कि अलग से जोड़े गए गीत को भी दर्शकों का बहुमत पहचान नहीं सकता कि यह अतिरक्त प्रभार पाया हुआ अधिकारी है|
गाइड का हरेक गीत अपने आप में एक स्वतंत्र लेख का अधिकारी है|
…[राकेश]
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