कहते हैं जो दुनिया में है वह सब महाभारत में कहा या दर्शाया जा चुका है और जो वहाँ नहीं वह दुनिया में नहीं है| कुछ ऐसा ही भारत रत्न लता मंगेशकर के संगीत के बारे में कहा जा सकता... Continue Reading →
लूला, लंगड़ा, टुंडा, गूंगा, बहरा, काना, अंधा कहकर गाली देते हैं, अपमानित करने के लिए, अपने ही जैसे पूर्ण देह वाले इंसानों को लोग| पहले जिन्हें अपंग, विकलांग आदि कहती थीं, सरकारी परिभाषाएँ, अब “अपूर्ण अंगों” में किसी प्रकार... Continue Reading →
आग, बरसात से होते हुए आवारा तक फिल्म दर फिल्म अपने निर्देशकीय कौशल का परचम ऊंचा और ऊँचा करते हुए Shri 420 में निर्देशक राज कपूर अपनी निर्देशकीय प्रतिभा का शिखर छू जाते हैं| इस गीत के सिनेमाई रूपांतरण में... Continue Reading →
अगर ‘तेरे घर के सामने’ को हिंदी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ रोमांटिक कॉमेडी ड्रामाटिक फिल्म न भी माना जाए तो इस श्रेणी की सर्वश्रेष्ठ पांच फिल्मों में इसे शुमार किया जाना किसी भी तरह के संदेह से परे हैं| ‘तेरे घर... Continue Reading →
सन 1972 से पहले ही भारत में हिंदी फिल्म उधोग के सुपर स्टार के रूप में राजेश खन्ना की अनूठी सफलता की चमक हिंदी सिनेमा के संसार को चुंधियाने लगी थी| आराधना के बाद राजेश खन्ना की लगभग हर फिल्म... Continue Reading →
हृषिकेश मुकर्जी की उल्लेखनीय फिल्म – आनंद, का शीर्षक फिल्म के एक मुख्य किरदार आनंद (राजेश खन्ना) के नाम पर रखा गया है, जो अपने जीवन के गमों और अपनी परेशानियों को दरकिनार करके अपना जीवन इस ईश्वरीय वरदान वाले... Continue Reading →
शरत चंद्र चटर्जी की कहानी पर आधारित खुशबू, एक पीरियड फिल्म है और फिल्म देखते हुए इस बात को ध्यान में रखना जरुरी है क्योंकि आधुनिक दौर की परिभाषाएँ ऐसी फिल्मों पर लागू नहीं होतीं और हो नहीं सकतीं क्योंकि... Continue Reading →
रूप, स्पर्श, स्वर, स्वाद और गंध पांच ऐसे विषय हैं जिनके सम्मोहन से मनुष्य जीवन आदिकाल से बंधा हुआ है और अनंत काल तक, या जब तक धरती पर मनुष्य जीवन उपलब्ध है, बंधा ही रहेगा| यह सिद्ध रूप में... Continue Reading →
किसी भी गीत को उम्दा बनाने के लिये संगीतकार, गायक और गीतकार तीनों के बेहतरीन योगदान की जरुरत होती है और किसी एक का भी योगदान कमतर हो तो गीत की गुणवत्ता और आयु कम हो जाती है। तीनों में... Continue Reading →
सत्यकाम हमेशा विचलित करती है और अगर कोई व्यक्त्ति ईमानदारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर बेहद संवेदनशील है तो उसे शायद इस सशक्त्त फिल्म को नहीं देखना चाहिये क्योंकि यह फिल्म भ्रष्टाचार, बेईमानी, कमजोरियों और समझौतापरस्ती के जिन्न के... Continue Reading →
जागते रहो, पूर्वज फिल्म है जाने भी दो यारो और इस जैसी अन्य फिल्मों की। जागते रहो में जाने भी दो यारो की तरह स्पष्ट हास्य भले ही हर फ्रेम में बिखरा हुआ न हो पर जागते रहो का असर... Continue Reading →
नरेन्द्र (विक्रम) और मामा जी (उत्पल दत्त) जीवन में मनुष्य की स्वतंत्रता और जीवन दर्शन पर बातें कर रहे हैं। एक विषय पर मामाजी अपनी पुत्री सरीखी भानजी सौदामिनी (शबाना आजमी), जिसे सब मिनी कह कर सम्बोधित करते हैं, को... Continue Reading →
यूँ तो खुशबू के सभी गीत एक से बढ़कर एक हैं पर फिल्म की परिस्थितियों के अनुरुप – दो नैनों में आँसू भरे हैं, गीत तो कमाल का बन पड़ा है। यह कहना अतिशयोक्त्ति न होगी कि यह गीत गुलज़ार... Continue Reading →
उमा (जया भादुड़ी) अपने पति सुबीर (अमिताभ बच्चन) को घर ले जाने के लिये सुबीर की दोस्त चित्रा (बिन्दु) के घर आती हैं। उमा और सुबीर की शादी के स्वागत समारोह के बाद यह उमा और चित्रा की दूसरी ही... Continue Reading →
राज कपूर की इस सर्वश्रेष्ठ फिल्म के इस गीत के बोल लिखे थे हसरत जयपुरी ने। फिल्म में ऐसी परिस्थितियाँ बनती हैं कि नादिरा और नीमो द्वारा दी गयी पार्टी में राज कपूर, नरगिस को अपने साथ लेकर जाते हैं। वहाँ... Continue Reading →
यह गीत हृषिकेष मुखर्जी की फिल्म फिर कब मिलोगी (1974) का है। इसे लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी ने और संगीतबद्ध किया था आर.डी.बर्मन/पंचम ने। फिल्म में यह यह गीत दो बार आता है। पहली बार यह एकल गीत के रुप... Continue Reading →
जरुरी नहीं कि एक सलीके से फैला हुआ निबंध वह असर छोड़ जाये जो एक कविता, जो कि पूरी तरह से अतार्किक लगती है, छोड़ जाती है। यूँ ही नहीं कहा जाता कि भावना दिल का मामला है दिमाग का... Continue Reading →
दस्तक उन फिल्मों में से है जिन्हे (जिनकी कहानी को) चाहे पढ़ा जाये या देखा जाये वे एक गहरा असर पाठक और दर्शक पर छोड़ ही जाती हैं। उर्दू कथाकारों की मशहूर तिकड़ी (मंटो, कृष्ण चंदर और राजेन्द्र सिंह बेदी)... Continue Reading →
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