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Cinema, Theatre, Music & Literature

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August 2021

गुलज़ार : नीली नदी के परे गीला सा चांद खिल गया

हिंदी सिनेमा की नदी में तैरते बहते एक दिन “अचानक” यूँ हो जाता है कि व्यक्ति का “परिचय” सतरंगी छटाएं बिखेरते श्वेत-धवल “लिबास” पहने एक संजीदा कलाकार के अनूठे रचनात्मक संसार से हो जाता है और वहां से आगे वह... Continue Reading →

क्या जाग रही होगी तुम भी प्रिये ! (एक प्रेम गीत)

स्त्री-पुरुष के मध्य पनपे प्रेम पर उच्च स्तरीय लेखन करने की आकांक्षा के भाव से दुनिया का हर लेखक एवम कवि अवश्य ही गुज़रता है| हर लिखने वाला चाहता है कि वह एक अमर प्रेम गीत लिख दे फिर चाहे... Continue Reading →

समय साक्षी है (हिमांशु जोशी) : बहुत कठिन है डगर राजनीति की!

एक अच्छी कृति की पहचान यही होती है कि वह समय समय पर जीवित होता रहती है और भिन्न-भिन्न काल की पीढ़ियों को अपने से जोड़ती रहती है। अच्छे सिनेमा का गुज़ारा बिना अच्छे कथ्य के नहीं होता| अब यह... Continue Reading →

Shershah (2021) : कैप्टेन विक्रम बत्रा (पीवीसी) की शहादत

कारगिल का युद्ध एक ऐसा कड़वा इतिहास है जो भारतीय जनमानस से आसानी से हट नहीं पायेगा| जिसने भी उस दौर का मंजर देखा है, उसे कश्मीर की तरफ कूच करती बोफोर्स तोपें और सेना की टुकडियों के वाहनों की... Continue Reading →

राग-विराग (श्रीलाल शुक्ल) : छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार

प्रसिद्द लेखक दिवंगत श्रीलाल शुक्ल जी की यह बेहद अच्छी पुस्तक एक अच्छी फ़िल्म के लिए सम्पूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है| इस प्रेम कहानी में जातिगत भेदभाव का समाज पर और अंततः व्यक्तियों पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह बड़े... Continue Reading →

तुम्हारे लिए (हिमांशु जोशी) : गहन दुख में पगी एक प्रेमकथा

हिन्दी सिनेमा ने शरतचंद्र चटर्जी, टैगोर, बिमल मित्र, समरेश बसु, आदि बंगलाभाषी साहित्यकारों की रचनाओं पर आधारित फ़िल्में बनाई हैं और इन पुस्तकों के कारण ठोस विषय सामग्री मिल जाने के कारण इन सभी फिल्मों का स्तर सराहनीय रहा है|... Continue Reading →

रिम-झिम गिरे सावन (Manzil 1979) : आई बरसात तो लता मंगेशकर ने समां बाँध दिया

इस गीत के स्त्री गायक संस्करण ने दर्शक को बरसात का आनंद खुले आसमान के नीचे दिलवाया है| गीत के लता मंगेशकर संस्करण का फिल्मांकन बम्बई के 1978-79 के दौर का दस्तावेज है| तब बारिश से बम्बई में आतंक नहीं... Continue Reading →

रिम झिम गिरे सावन (Manzil 1979) : महागायक “किशोर कुमार” का सावन वर्णन

बासु चटर्जी द्वारा निर्देशित फ़िल्म – मंजिल, के इस गीत का फिल्मांकन उस दौर के सामाजिक परिवेश के संकेत देता है| मित्र की शादी के समारोह में उसके घर पर आयोजित पार्टी में वे सबके कहने पर एकदम घरेलू माहौल... Continue Reading →

राह पे रहते हैं (Namkeen 1982) : जल गए जो धूप में तो साया हो गए

वर्तमान में गुलज़ार साब की फिल्मों को जब जब देखा जाता है, तब तब उनके अपने सिनेमाई क्लब के तीन सदस्यों क्रमशः संजीव कुमार, किशोर कुमार और राहुल देव बर्मन, का फ़िल्मी परिदृश्य पर न होना बेहद खलता है| गुलज़ार... Continue Reading →

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