“बाबूजी, पेशाब ज़रा उधर कर लेंगे…यहाँ हमारा परिवार सोता है”, फुटपाथ पर तीन छोटे बच्चों के साथ बैठे एक बुजुर्गवार, जॉली वकील (अरशद वारसी) से कहते हैं और बहुत से दर्शक अपने भारत देश की इस विभीषिका पर शर्म से... Continue Reading →
सर्वप्रथम तो जिक्र इस फिल्म में हीरे की माफिक अलग से चमकने वाला गीत – रंगरेज़…- का ही होना चाहिए। गीत वडाली भाइयों द्वारा गाया गया है। जो फिल्म ऐसे गीत को अपने साथ चलने के लिये आमंत्रित करे उसमें... Continue Reading →
चुनाव खत्म हो चुके हैं। कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है। श्रीमति इंदिरा गाँधी अब प्रधानमंत्री नहीं हैं। मैं वापिस लोकसभा में चुन लिया गया हूँ, जनता पार्टी के सदस्य के रुप में। इमेरजैंसी उठा ली गयी है और... Continue Reading →
हाल ही में दिवंगत श्री राजेन्द्र यादव, हंस पत्रिका के यशस्वी संपादक और प्रसिद्द हिंदी लेखक और चिन्तक, ने कहीं लिखा था कि अब तो अमृत नाहटा इस बात से ही इनकार करते हैं कि उन्होंने कभी "किस्सा कुर्सी का"... Continue Reading →
इजाज़त के शुरु के कुछ मिनट और कतरा कतरा गाने का फिल्मांकन , दोनों बेहद जिम्मेदारी से भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देने का काम कर सकते हैं। हरियाली, पेड़, फूल पत्ते, पहाड़, चटटाने, नदी, आकाश, बादल, सूरज, उजाला, छाया, विम्ब,... Continue Reading →
नमकीन में कहानी के क्षेत्र में गुलज़ार को एक उम्दा कहानी समरेश बसु की तरफ से मिल गयी थी और उस कहानी को उन्होने बड़े ही मोहक, रोचक और प्रभावी अंदाज में दृष्यात्मक बनाकर दर्शकों के सामने एक संवेदनशील फिल्म... Continue Reading →
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