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Om Puri

दिलीप कुमार : अभिनेताओं के अभिनेता का कालजयी खुमार

...[राकेश] ©

Grahan (2021): सन चौरासी का दाग भरा इतिहास

किताब पर बनी फ़िल्म में यह अक्सर ही होता है कि किताब भारी पड़ जाती है और उसमें उपस्थित बातें परदे पर रूपांतरित नहीं हो पातीं| लेकिन ग्रहण कई बार किताब से ऊपर चली जाती है और किताब में संक्षिप्त... Continue Reading →

Chintu Ji (2009) : आधी हक़ीक़त आधा फ़साना

सम्पूर्ण परिवार के संग देखी जाने वाली चंद आधुनिक स्वस्थ हास्य फिल्मों में चिंटू जी को रखा जा सकता है| फिल्म की टैग लाइन - This film is part reality, part illusion and part fact, part fiction फ़िल्म को बेहतर... Continue Reading →

Sacred Games (2018,2019) : खोजा परमाणु बम, निकला गुरुजी!

श्रंखला के दूसरे सीज़न में उपस्थित कमजोरियों में सबसे बड़ी कमजोरी हर षड्यंत्र का सूत्रधार गुरुजी को दिखाना ही है| कथा का सारा वज़न इस कोण पर गिर जाता है| दुनिया में बहुत से षड्यंत्रकारी सिद्धान्त चलते रहते हैं| इनमें... Continue Reading →

Sacred Games (2018,2019) : क्या श्रंखला सिख संप्रदाय का अपमान करती है?

सिख धर्म का अपमान करना तो श्रंखला के लेखकों, निर्देशकों और प्रस्तोता का आशय  बिलकुल भी नहीं रहा होगा पर उन्होने अतार्किक गलती अवश्य की या उनसे ऐसी अतार्किक गलती अवश्य ही हुयी या हो गई| इस पर आने से... Continue Reading →

Sacred Games (2018,2019) : दर्शक के भ्रम की आंच पर पकता खेल

किसी भी फ़िल्म में बड़े और महत्वपूर्ण चरित्रों को पा जाने वाले अभिनेताओं में अपने आप एक ऊर्जा भर जाती है और हर काबिल अभिनेता उसका लाभ उठाता है| पर अकसर ही कम महत्व वाले या छोटे काल के लिए... Continue Reading →

इरफ़ान (1966-2020) : चकाचौंध मचाता सितारा डूब गया गुलशन सारा उदास छोड़ कर

अच्छे सिनेमा की शक्ति मनुष्य के ऊपर ऐसी होती है कि जिस अंत के बारे में दर्शक निश्चित ही जानते हैं, उसके बारे में भी एक और बार फ़िल्म देखते हुये भावनाओं के वशीभूत होकर बदलाव की आशा रख बैठते... Continue Reading →

Mr Kabaadi (2017) :  भारत में काम होता बड़ा या छोटा, बनाता मनुष्य को चलता या खोटा

फ़िल्म के अंतिम दृश्य में कैमरे की ओर पीठ करे सड़क पर जा रहे रूहानी सुकून देने वाले इत्र और सुरमा प्रदानकर्ता छन्नू खान (ओम पुरी) अचानक पलटते हैं और कैमरे की मार्फ़त अभिनेता ओम पुरी दर्शकों से मुखातिब होते... Continue Reading →

Kalyug (1981) : महाभारत के संघर्ष आधुनिक परिवेश में

...[राकेश]

Holi (1984) : केतन मेहता की, फिल्ममेकिंग पर, रची गाइड

...[राकेश]

Jai Ho! Democracy : भारत-पाक तनाव की निरर्थकता को उकेरती एक एंटी वार फिल्म

भारत- पाकिस्तान के बीच तनाव का आलम ऐसा है कि बिना आग भी धुआँ उठ सकता है और बिना मुददे के भी दोनों देश लड़ सकते हैं, इनकी सेनाएं जंगे-मैदान में दो –दो हाथ न करें तो क्रिकेट के मैदान... Continue Reading →

रंजीत कपूर : थियेटर के एवरेस्ट पर झण्डारोहण से फिल्मों के सृजन तक

...[राकेश]

शशि कपूर : ‘दादा साहेब फाल्के’

...[राकेश]

Jolly LLB (2013) : प्रेमी वकील बाबू vs. कानून के अंधेपन के दलाल

“बाबूजी, पेशाब ज़रा उधर कर लेंगे…यहाँ हमारा परिवार सोता है”, फुटपाथ पर तीन छोटे बच्चों के साथ बैठे एक बुजुर्गवार, जॉली  वकील (अरशद वारसी) से कहते हैं और बहुत से दर्शक अपने भारत देश की इस विभीषिका पर शर्म से... Continue Reading →

Road to Sangam (2010) : गाँधी कलश यात्रा

...[राकेश]

Life Goes On (2009) : यादों और सांस्कृतिक टकराव के चक्रव्यूह

किसी भी परिवार के मुखिया की पत्नी उस घर की धुरी बन जाती है। मुखिया, उसकी संताने सभी लोग उस एक महिला के कारण आपस में जुड़ाव महसूस करते हैं। उन लोगों के आपस में एक दूसरे से अलग विचारधारायें... Continue Reading →

Haat The Weekly Bazaar : सामंतवादी पुरुष समाज में चीरहरण सहने को विवश स्त्री शक्त्ति की विजय गाथा

औरत ने जनम दिया मरदों को, मरदों ने उसे बाज़ार दिया जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा धुत्कार दिया तुलती है कही दिनारो में, बिकती है कही बाजारों में नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में ये... Continue Reading →

Raavan (1984) : रो रो के पिघलते हैं गुनाहों के पहाड़

तेरे इश्क की एक बूँद इसमें मिल गयी थी इसलिये मैंने उम्र की सारी कड़वाहट पी ली ….( अमृता प्रीतम) एक तो इश्क वह है जो किसी से कोई दूसरा करता है। जिसे यह इश्क मिलता है वह परिवर्तित तो... Continue Reading →

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