क्या दिलीप कुमार और भारत रत्न के बीच कुछ फासले हैं? यह तो सर्वत्र स्वीकृत बात है कि हिन्दी सिनेमा में नायक की भूमिकाएं निभाने वाले अभिनेताओं में वे चुनींदा सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक रहे हैं बल्कि हिन्दी सिने... Continue Reading →
फ़िल्म – दिल बेचारा, की विशेषता है मौत के निराशा भरे माहौल में प्रेम के आशामयी अंकुर उगाना| मौत का छाता तना होने के बावजूद प्रेम की कोंपले फूट पड़ती हैं और इस तरह यह एक सफल प्रेम की... Continue Reading →
श्रंखला के दूसरे सीज़न में उपस्थित कमजोरियों में सबसे बड़ी कमजोरी हर षड्यंत्र का सूत्रधार गुरुजी को दिखाना ही है| कथा का सारा वज़न इस कोण पर गिर जाता है| दुनिया में बहुत से षड्यंत्रकारी सिद्धान्त चलते रहते हैं| इनमें... Continue Reading →
सिख धर्म का अपमान करना तो श्रंखला के लेखकों, निर्देशकों और प्रस्तोता का आशय बिलकुल भी नहीं रहा होगा पर उन्होने अतार्किक गलती अवश्य की या उनसे ऐसी अतार्किक गलती अवश्य ही हुयी या हो गई| इस पर आने से... Continue Reading →
किसी भी फ़िल्म में बड़े और महत्वपूर्ण चरित्रों को पा जाने वाले अभिनेताओं में अपने आप एक ऊर्जा भर जाती है और हर काबिल अभिनेता उसका लाभ उठाता है| पर अकसर ही कम महत्व वाले या छोटे काल के लिए... Continue Reading →
एक समय तक भारत के हरेक विद्यार्थी को सामान्य ज्ञान की परीक्षाओं में भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े दो प्रश्न काफी परेशान करते थे (शायद अभी भी करते हों)। सवाल थे - दिल्ली चलो का नारा किसने दिया था।... Continue Reading →
“बाबूजी, पेशाब ज़रा उधर कर लेंगे…यहाँ हमारा परिवार सोता है”, फुटपाथ पर तीन छोटे बच्चों के साथ बैठे एक बुजुर्गवार, जॉली वकील (अरशद वारसी) से कहते हैं और बहुत से दर्शक अपने भारत देश की इस विभीषिका पर शर्म से... Continue Reading →
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