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Cine Manthan

Cinema, Theatre, Music & Literature

Dev Bhoomi [Land of the Gods] 2016 : पर्वतों के डेरे पर वापसी

ब्रितानी साम्राज्य से स्वतंत्रता पश्चात दशकों तक मनी ऑर्डर और पेंशन जिसकी आर्थिक रीढ़ रही हो, जहाँ नारी दैनिक जीवनयापन की धुरी बनी रही हो, और जहाँ पक्की सड़कें बन जाने के कारण, कहीं बाज़ार आदि जाने में लगने वाले... Continue Reading →

Vadh (2022) : कर्मफल के चक्रव्यूह में अपराधी कौन?

फ़िल्म "वध" "दृश्यम" (भाग 1 एवं 2) जैसी कसावट ली हुयी सस्पेंस थ्रिलर नहीं है, यह चरित्रों के बीच हाई वोल्टेज ड्रामा रचने के कारण दर्शक को बाँध सकने वाली फ़िल्म भी नहीं है| "वध" में निम्नमध्यवर्गीय जीवन की पारिवारिक... Continue Reading →

रेगिस्तानी हिमपात

अंततः कविराज, जैसे कि पढ़ाई के जमाने से ही वे सहपाठियों में पुकारे जाते थे, की पहली पुस्तक प्रकाशित हो ही गयी। सालों लग गए इस पुण्य कार्य को फलीभूत होने में पर न होने से देर से होना बेहतर!... Continue Reading →

Chup (2022) : बात कुछ बिगड़ ही गई

कहते हैं हिटलर बचपन में एक चित्रकार बनना चाहता था लेकिन आर्ट स्कूल की प्रवेश परीक्षा में वह उत्तीर्ण न हो पाया और आर्ट स्कूल ने उसे अपने यहाँ प्रवेश देने से इनकार कर दिया| हिटलर के अन्दर एक ऋणात्मक... Continue Reading →

कसमें वादे प्यार वफ़ा सब [उपकार (1967)] : किशोर कुमार की नासमझी, मन्ना डे की किस्मत  

  सोचूँ तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गई देखूँ तो एक शख़्स भी मेरा नहीं हुआ (जॉन एलिया) मनुष्य जीवन काटना हमेशा ही दुधारी तलवार पर चलने का काम है| एक तरफ जीवन अपने रस में मनुष्य को इस... Continue Reading →

एंग्री ओल्ड मैन “अशोक कुमार” [Khatta Meetha (1978)] : अभिनय शानदार – 1

बासु चटर्जी निर्देशित फ़िल्म - ‘खट्टा मीठा’ को एक पारिवारिक हास्य फ़िल्म के रूप में ही देखा, समझा और याद किया जाता है| पारसी किरदारों पर बनी, अच्छे संगीत और स्वस्थ हास्य से भरपूर फ़िल्म| महान अभिनेता- अशोक कुमार, जिन्हें... Continue Reading →

चुनरी संभाल गोरी (बहारों के सपने 1967) : मन्ना डे (उत्सवधर्मिता), लता (भावों की बरसात) संग पंचम की संगीत मधुशाला

पंचम संगीत के विशाल सागर में उठी वह तरंग रही है जो आज भी संगीत सागर में न केवल विद्यमान है बल्कि पुरजोर तरीके से संगीत सागर में हिलोरे मार रही है| सागर में उठी तरंगों के कारण अन्दर से... Continue Reading →

कॉमेडी ऑफ़ एरर्स

युगों युगों से महान हिमालय पर्वत श्रंखला के साये में रहने वाले लोग जानते हैं कि उनके आदि पुरुष, देवों में श्रेष्ठतम स्थान पाने वाले शंकर महादेव कितने भोले थे, उन्हे तो भोले शंकर के नाम से भी जाना जाता है। विकट विद्वान महाशय... Continue Reading →

लुट ही गये राम नाम की लूट के फेर में

मानवेंद्र, महाश्य जी के बहुत से किस्से चटखारे लेकर सुनाया करते, और बहुत बार तो महाश्य जी की उपस्थिति में ही, और महाश्य जी खुद भी अपने बारे में नमक मिर्च लगा कर सुनाये गए इन किस्सों को सुनकर ठहाके... Continue Reading →

Mirza Ghalib (1988-89): पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है… (अध्याय 5)

“दुःख तोड़ता भी है, पर जब नहीं तोड़ता या तोड़ पाता, तब व्यक्ति को मुक्त करता है” (अज्ञेय के विलक्षण उपन्यास “नदी के द्वीप” की दो में से एक नायिका का कथन) दुःख एक नितांत निजी मसला है मनुष्य के... Continue Reading →

दुनिया रंग रंगीली ‘बाबा’

महाश्य जी, विद्वान होते हुये भी कई मर्तबा, नादानी कह लें या उनकी मासूमियत, विचित्र स्थितियों में फँस जाते थे। सामान्य जन की परिभाषा से देखें तो हर पहुँचे हुये व्यक्ति की तरह महाश्य जी भी विरोधाभासों से भरे व्यक्ति... Continue Reading →

रजनीगंधा फूल तुम्हारे  (रजनीगंधा – 1974) : जग ने देखी लता मंगेशकर की महकती गायिकी

हिन्दी की सुप्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी की लगभग बीस पृष्ठों में समायी कहानी – ‘ यही सच है ’ पर निर्देशक बासु चटर्जी ने दो घंटे से कुछ कम अवधि की एक बेहद रोचक, नाटकीय और दृश्यात्मक फ़िल्म बनाकर सिद्ध... Continue Reading →

रहें न रहें हम, महका करेंगे (लता मंगेशकर) : ममता (1966)

फ़िल्म – ममता, में संगीतकार रोशन और गीतकार मजरुह सुल्तानपुरी ने सात गीत रचे और गीतों के बोल,  उनकी धुनें और उनके गायन पक्ष, तीनों ही क्षेत्रों में हरेक गीत अपने आप में उम्दा श्रेणी का है| उनमें से एक... Continue Reading →

लता मंगेशकर : भारत का गौरव ही नहीं, स्वाभिमान भी

लता मंगेशकर भारत के पिछले सत्तर- अस्सी सालों के इतिहास का सबसे गौरवमयी नाम हैं जिन्होंने सामान्यजन तक बड़ी आसानी से संगीत कला की उंचाई पहुंचाई है| वे पूरे भारत, विश्व भर में फैले भारतीयों और भारतीय उपमहाद्वीप में बसने... Continue Reading →

Chehre (2021) : चेहरों ने कितनों को लूटा?

  फ़िल्म – चेहरे, का विषय रोचक है और चार मुख्य चरित्रों में वरिष्ठ अभिनेताओं को देखना सुखद है और ज्यादा से ज्यादा ऐसे विषयों पर फ़िल्में बनें तो फिल्मों के स्तर में विविधता और ज्यादा गुणवत्ता आने की संभावना... Continue Reading →

ठीक नहीं लगता : लता मंगेशकर, गुलज़ार और विशाल भारद्वाज की खोई संपत्ति की पुनः प्राप्ति

प्रेम, चित्त को अब तक व्यक्ति द्वारा समझी गई सामान्य स्थिति से विचलित करता ही है| चित्त जब प्रेम में पड़ने के कारण विचलन में आ जाए तब दो स्थितियां हो सकती हैं| अगर व्यक्ति प्रेम का प्रत्युत्तर नहीं चाहता,... Continue Reading →

इरफ़ानियत : अभिनय और इंसानियत के मिश्रण से निकला X- फैक्टर

आम दर्शक किसी अभिनेता को कैसे जाने? अभिनेता नाटक करता हो तो उसके द्वारा नाटक में निभाए गए चरित्रों (चुनाव) के द्वारा या उन भूमिकाओं में उसके अभिनय की गुणवत्ता के द्वारा? अभिनेता सिनेमा के संसार में कार्य करता हो... Continue Reading →

गुलज़ार : नीली नदी के परे गीला सा चांद खिल गया

हिंदी सिनेमा की नदी में तैरते बहते एक दिन “अचानक” यूँ हो जाता है कि व्यक्ति का “परिचय” सतरंगी छटाएं बिखेरते श्वेत-धवल “लिबास” पहने एक संजीदा कलाकार के अनूठे रचनात्मक संसार से हो जाता है और वहां से आगे वह... Continue Reading →

क्या जाग रही होगी तुम भी प्रिये ! (एक प्रेम गीत)

स्त्री-पुरुष के मध्य पनपे प्रेम पर उच्च स्तरीय लेखन करने की आकांक्षा के भाव से दुनिया का हर लेखक एवम कवि अवश्य ही गुज़रता है| हर लिखने वाला चाहता है कि वह एक अमर प्रेम गीत लिख दे फिर चाहे... Continue Reading →

समय साक्षी है (हिमांशु जोशी) : बहुत कठिन है डगर राजनीति की!

एक अच्छी कृति की पहचान यही होती है कि वह समय समय पर जीवित होता रहती है और भिन्न-भिन्न काल की पीढ़ियों को अपने से जोड़ती रहती है। अच्छे सिनेमा का गुज़ारा बिना अच्छे कथ्य के नहीं होता| अब यह... Continue Reading →

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