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Jagjit Singh

जगजीत सिंह – एक संस्मरण

इलाहाबाद में पहली बार जगजीत सिंह (सुप्रसिद्ध गजल गायक) को आमंत्रित किया गया था। सारा शहर आंदोलित था। कार्यक्रम का पास प्राप्‍त करने की होड़ मची थी। कार्यक्रम का आयोजन 'प्रयाग महोत्सव' के नाम पर प्रशासन की तरफ से हो... Continue Reading →

परेशां रात सारी है … … [सितारों के दोस्त – जगजीत सिंह]

भारत में अक्तूबर उत्सवों की शुरुआत का ही माह नहीं होता बल्कि मौसम के लिहाज से भी ये महीना राहत भरा होता है| दिन में धूप सुहानी प्रतीत होना शुरू हो जाती है| व्यक्तिगत दुखों को छोड़ दें तो प्रकृति... Continue Reading →

Mirza Ghalib (1988-89): अव्यवहारिक एवं दुनियादारी में लापरवाह ग़ालिब धोखे और दुर्भाग्य के घेरे में (अध्याय 4)

ग़ालिब पारंपरिक रूप से धार्मिक नहीं हैं और न ही जड़ता ने उनके दिलो दिमाग पर कोई असर ही डाला है| अपने एक हिन्दू मित्र के घर अन्य हिन्दू साथियों के संग वे दीवाली के अवसर पर चौसर खेल रहे... Continue Reading →

Mirza Ghalib (1988-89): रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’ (अध्याय 3)

अँग्रेज़ भारत के विभिन्न हिस्सों पर अपना कब्जा बढ़ाते जा रहे थे और दिल्ली, लखनऊ जैसी महत्वपूर्ण जगह लोग मोहल्लों में, घरों में, बाज़ारों में मुर्गे लड़ाने में व्यस्त थे| इसका जिक्र ग़ालिब ने एक व्यक्ति पर कटाक्ष करते हुये... Continue Reading →

Mirza Ghalib (1988-89): बंसीधर, ज़ौक़ और शहज़ादा ज़फ़र – ईमानदारी और चापलूसी के बीच घिरे ग़ालिब (अध्याय 2)

ग़ालिब के किशोरवय के काल में उनके ससुर द्वारा उनसे किए जाना वाले दोस्ताना और उनके प्रति सम्मान और प्रशंसा रखने वाले रुख ने ग़ालिब को एक शायर के विकसित होने वाले शुरुआती दौर में बेहद प्रोत्साहन दिया होगा| पिछले... Continue Reading →

मिर्ज़ा ग़ालिब (1988-89) : ‘ग़ालिब का बयान’ वाया गुलज़ार – अध्याय 1

‘हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़े-बयां और’ जब यही बात विनोद सहगल की आकर्षक गायिकी बताती है तो असर कुछ ज्यादा ही पड़ता है और ग़ालिब का सिक्का जम जाता है... Continue Reading →

Mr Singh Mrs Mehta (2010): Nudity or Nakedness?

विवाहेत्तर संबंधों के कैनवास पर उभरते, बनते, बिगड़ते और फिर से कोई नया आकार लेते चित्रों की गाथा कह सकते हैं निर्देशक प्रवेश भारद्वाज की पहली फिल्म को। कभी सधे हुये ढ़ंग से भरे हुये रंग दिखायी देते हैं इस... Continue Reading →

Raavan (1984) : रो रो के पिघलते हैं गुनाहों के पहाड़

तेरे इश्क की एक बूँद इसमें मिल गयी थी इसलिये मैंने उम्र की सारी कड़वाहट पी ली ….( अमृता प्रीतम) एक तो इश्क वह है जो किसी से कोई दूसरा करता है। जिसे यह इश्क मिलता है वह परिवर्तित तो... Continue Reading →

ज़िन्दगी रोज नये रंग में ढ़ल जाती है (Aaj-1990):संगीतकार जगजीत सिंह

जीवन में यदि कुछ स्थायी है तो वह है निरंतर होने वाला परिवर्तन। हर पल कुछ नया हो रहा है। खुशी को स्थायी भाव बनाना चाहता है मनुष्य और दुख को जल्दी से जाने वाला भाव। पर समय कभी एक... Continue Reading →

वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी, बचपन और वो जगजीत सिंह: कौन भूला है यहाँ कोई न भूलेगा यहाँ

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से कहीं भी जाऊँ मेरे साथ-साथ चलते हैं (बशीर बद्र) बीसवी सदी के सातवें और आठवें दशक में जन्मने वाली पीढ़ियों के भारतीयों के लिये जगजीत सिंह वही सितारे थे जो उनके साथ... Continue Reading →

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