ताजमहल अगर आपने देखा है तो यमुना के उस पार कुछ दीवारें आपको उठी हुई दिखाई पड़ी होंगी। कहानी यह है कि शाहजहां ने मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए, जैसा संगमरमर का ताजमहल है ऐसी अपनी कब्र के लिए संगमूसा का काले पत्थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था। लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया। ऐसी कथा सदा से प्रचलित थी, लेकिन अभी इतिहासज्ञों ने खोज की है तो पता चला कि वह जो उस तरफ दीवारें उठी खड़ी हैं वह किसी बननेवाले महल की दीवारें नहीं हैं, वह किसी बहुत बड़े महल की, जो गिर चुका—खंडहर है! पर उठती दीवारें और खंडहर एक से मालूम पड़ सकते हैं। एक नये मकान की दीवार उठ रही है— अधूरी है, मकान बना नहीं। हजारों साल बाद तय करना मुश्किल हो जाएगा कि नये मकान की बनी दीवार है या किसी बने बनाए मकान की, जो गिर चुका—उसके बचे खुचे अवशेष हैं, खंडहर हैं।

पिछले तीन सौ सालों से यही समझा जाता था कि वह जो दूसरी तरफ महल खड़ा हुआ है, वह शाहजहां बनवा रहा था, वह पूरा नहीं हो पाया। लेकिन अभी जो खोजबीन हुई है उससे पता चलता है कि वह महल पूरा था। और न केवल यह पता चलता है कि वह महल पूरा था, बल्कि यह भी पता चलता है कि ताजमहल शाहजहां ने खुद कभी नहीं बनवाया। वह भी हिंदुओं का बहुत पुराना महल है, जिसको उसने सिर्फ कनवर्ट किया। जिसको सिर्फ थोड़ा—सा फर्क किया। और कई दफे इतनी हैरानी होती है कि जिन बातों को हम सुनने के आदी हो जाते हैं, फिर उनसे भिन्न बात को हम सोचते भी नहीं!

ताजमहल जैसी एक भी कब्र दुनिया में किसी ने नहीं बनायी। कब्र ऐसी बनायी भी नहीं जाती। कब्र ऐसी बनायी ही नहीं जाती। ताजमहल के चारों तरफ सिपाहियों के खड़े होने के स्थान हैं। बंदूकें और तोपें लगाने के स्थान हैं, कब्रों की बंदूकें और तोपें लगाकर कोई रक्षा नहीं करनी पड़ती। वह महल है पुराना, उसको सिर्फ कन्वर्ट किया गया है कब्र में। वह दूसरी तरफ भी एक पुराना महल है जो गिर गया, जिसके खंडहर शेष रह गए।

ज्योतिष और अध्यात्म ~ ओशो

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ताज महल को अगर तुम पूर्णिमा की रात घड़ी-दो घडी शांत बैठकर देखते रहो तो अपूर्व ध्‍यान लग जायेगा।

सहज योग ~ ओशो


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