ओटीटी के अस्तित्व से विभिन्न प्रकार की डॉक्यूमेंटरीज़ सामने आ रही हैं| कुछ तो ऐसी हैं जो जीवित लेकिन विवादास्पद लोगों के जीवन आया उनके किसी विशेष स्कैंडल पर बनी हैं| और कुछ को देखकर तो ऐसा ही लगता है मानो अपनी जन-छवि सुधरने के लिए कोई जुगत भिड़ा कर उन्होंने ही अपने ऊपर डॉक्यूमेंटरी का निर्माण करवाया है| विवादास्पद मामलों पर बनी डॉक्यूमेंटरीज़ में लगभग सभी में एक कमी देखने को मिलती है कि वे अंत तक भी स्पष्ट नहीं कर पातीं कि क्या सही था, कौन सही था और पूरे मसले में दोषी कौन है|

ऐसे ही स्पष्ट निष्कर्ष न निकाल पाने वाली एक डॉक्यूमेंटरी है – द डांसिंग ऑन द ग्रेव!

इसने एक बहुचर्चित केस दिखाया है| डॉक्यूमेंटरी में दिखाए गए के सार के अनुसार-

मुरली मनोहर मिश्र/ श्रद्धानंद उत्तर प्रदेश के रामपुर के नवाब खानदान की बेगम का मित्र था और बेगम ने उसे कभी दिल्ली में श्रद्धानंद को मैसूर रियासत के दीवान की पौत्री शकीरे से मिलवाया| शकीरे उस वक्त विदेश सेवा में कार्यरत एम्बेसडर अकबर खलीली की पत्नी थीं| अकबर खलीली विदेश में रहते थे और शकीरे अपनी बेटियों के साथ भारत में| शकीरे ने श्रद्धानंद को जमीन जायदाद के कुछ मामलों में सहायता के लिए बंगलौर आमंत्रित किया| कालांतर में शकीरे ने अकबर खलीली को तलाक देकर या उनसे तलाक लेकर, श्रद्धानंद से विवाह कर लिया|

कुछ अरसे बाद शकीरे गायब हो गयीं और उनकी बम्बई में रहने वाली बेटी के पूछने पर श्रद्धानंद ने उसे बताया कि वह विदेश गयी है| कुछ अरसा ऐसे ही बीतने के बाद बेटी ने पुलिस में अपनी माँ के गायब होने की रिपोर्ट लिखा दी| कुछ और समय के बाद एक कारपेंटर से यह क्लू मिलने के बाद कि श्रद्धानंद ने उससे पहियों वाला लकड़ी का बेड बनवाया था, पुलिस ने श्रद्धानंद को हिरासत में ले लिया और पूछताछ के बाद उसकी निशानदेही के बाद शकीरे का शव/ ढांचा, उसी के घर के आंगन से जमीन के नीचे से एक बेड के अन्दर से बरामद किया| पुलिस के अनुसार बेड की ऊपरी प्लाई की अंदुरनी सतह पर नाखूनों से खरोंचे जाने के निशान थे अर्थात बेड में लिटाने के बाद भी शकीरे ज़िंदा थी और उन्होंने इस ताबूत से बाहर निकलने के प्रयास किये होंगे|

श्रद्धानंद का बयान था कि वह बाहर गया था और जब वह घर लौटा तो शकीरे को मृत पाया और वह घबरा गया, और घबराहट में उसने शकीरे के शव को बेड में लिटाकर बेड को जमीन में दफ़न कर दिया और ऊपर से फर्श बनवा दिया| उसे भय था कि शकीरे की हाई प्रोफाइल फैमिली और ससुराल उसे शकीरे की ह्त्या के आरोप में फंसा सकते हैं क्योंकि उन्होंने कभी उनके विवाह को मंजूरी नहीं दी थी| इसलिए डर के कारण उसने वैसा किया|

लोअर कोर्ट ने परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर दोषी मानते हुए, इसे जघन्य अपराध मानते हुए, श्रद्धानंद को मौत की सजा सुनाई और हाई कोर्ट ने भी इसे ही बरकरार रखा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास (जब तक वह जेल में ही नहीं मर जाता) की सजा में परिवर्तित कर दिया|

इस डॉक्यूमेंटरी को देखने के बाद इस केस के ऊपर कुछ सवाल खड़े होते हैं| डॉक्यूमेंटरी दिखाती तो बहुत कुछ है लेकिन कुछ जरुरी सवाल नहीं उठाती, बल्कि डॉक्यूमेंटरी में बचाव पक्ष की ओर से वे कभी उठाये ही नहीं गए| डॉक्यूमेंटरी देखने के बाद भी जो निरुत्तर रहा जाता है या उलझा हुआ रह जाता है उनमें मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं|

  1. सुप्रीम कोर्ट में उसकी सजा में परिवर्तन क्यों किया गया? क्या सुप्रीम कोर्ट को उसके पक्ष में कुछ दिखाई दिया? केवल परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर मौत की सजा देना सुप्रीम कोर्ट को सही नहीं लगा होगा| इससे एक बात का और स्पेस बनता है कि जब मौत की सजा आजीवन कारावास में बदल सकती है तो क्या श्रद्धानंद के पक्ष में भी कुछ मेरिट हो सकती है? क्या जैसा श्रद्धानंद को भय था कि हाई प्रोफाइल फैमिली और विधर्मी होना उसके विरुद्ध जाएगा, ऐसा ही उसके साथ हुआ?
  2. केस के तकनीकी पहलू में जाएँ तो शकीरे की ह्त्या का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था| डॉक्यूमेंटरी में श्रद्धानंद ने इकबालिया बयान दिया शकीरे की मृत देह को जमीन में बेड के अन्दर रखकर दफ़न करने का| पुलिस ने लकड़ी पर नाखून के निशानों से पडी खरोंचों से यह सिद्ध किया कि दफनाने से पहले वह जीवित थी और दफनाने के बाद मरी| बेड की सतहों पर लगी खरोंचों की क्या वैज्ञानिक जांच से पुष्टि हुयी कि वे शकीरे के ही नाखूनों से बनीं? ऐसी कोई पुष्टि डॉक्यूमेंटरी नहीं करती|
  3. श्रद्धानंद को हिरासत में लिए जाने के कुछ या बहुत दिनों बाद उसकी निशानदेही पर शकीरे का ढांचा उसके घर से बरामद किया गया| और यह इस केस का सबसे कमजोर पहलू है जिस पर श्रद्धानंद के वकील पक्ष ने किसी भी अदालत में प्रश्न नहीं उठाया| पुलिस श्रद्धानंद को लेकर उसके घर जाती है और उसे घर की चाभी देकर घर का ताला खुलवाती है| अर्थात इतने दिनों/हफ़्तों/महीनों, शकीरे और श्रद्धानंद के घर की चाभी पुलिस के पास रही और श्रद्धानंद हवालात में बंद था! उसके वकील कोर्ट में पूछ ही सकते थे कि ऐसी स्थितियों में उस परिसर में क्या घटा उसकी जिम्मेदारी श्रद्धानंद पर कैसे डाली जा सकती है? क़ानून के मुताबिक़ श्रद्धानंद को गिरफ्तार करते हुए उसका घर सील क्यों नहीं किया गया? अगर कोई श्रद्धानंद को फंसा ही रहा है तो सुबूतों से कैसी भी छेडछाड ऐसे में संभव थी| भारतीय क़ानून इस आधार पर चलता है कि बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए गुनाहगार सुबूतों के आधार पर भले छुट जाए| श्रद्धानंद पर शकीरे की मृत काया से छेड़छाड़, सच छिपाने की कोशिश आदि का मुकदमा अवश्य ही चलेगा लेकिन ह्त्या का मुकदमा चलने पर पुलिस की लापरवाही की सजा उसे देना केस पर उसकी तरफ से संदेह उत्पन्न करता है| नींद की गोलियों की शीशी आदि को ऐसी स्थिति में पुलिस ठोस सुबूत सिद्ध नहीं कर सकती|
  4. जैसा डॉक्यूमेंटरी ने दिखाया, श्रद्धानंद ठिगने कद का व्यक्ति है और शकीरे डीलडौल में उससे कद्दावर थी| उसके लिए सीधे सीधे शारीरिक संघर्ष में शकीरे को परास्त कर पाना इतना आसान नहीं हो सकता| अगर उसने नींद की गोलियां खिलाकर सोती हुयी शकीरे को लकड़ी के बेड में बंद किया तो भी उसके लिए कमरे से बाहर अनगन में उस बेड को खींच कर लाना बेहद मुश्किल काम रहा होगा| डॉक्यूमेंटरी जैसे दिखाती है उससे श्रद्धानंद शकीरे के प्रेम में पड़ा हुआ व्यक्ति ही अंततः सिद्ध होता है| क्या उसका पक्ष भी सच हो सकता है कि घबरा कर उससे ये सब कृत्य हो गए? इसमें यह भी बात है कि अगर वह शकीरे को उसकी संपत्ति के लिए मारता तो बाद में तीन साल वहीं क्यों रहता? देश भर में कहीं भी जा सकता था, विदेश में जाकर बस सकता था| पर वह तो उसी घर में रहता रहा| जबकि उसे पता था कि शकीरे के विदेश जाने की बात तो आसानी से झूठ साबित हो जायेगी और उसे यह भली भांति यह भी ज्ञात था कि शकीरे का परिवार और उसकी भूतपूर्व ससुराल उसे ऐसे ही छोड़ नहीं देगी अगर शकीरे की अनुपस्थिति की जांच होती है| इस बात से तो इनकार किया नहीं जा सकता कि एक बेहद अमीर परिवार और प्रसिद्द ससुराल के लिए शकीरे का श्रद्धानंद से विवाह करना अपमान जनक था| शकीरे का अपने ही परिवार में जमीन जायदाद को लेकर कुछ विवाद भी चल रहा था|
  5. इस डॉक्यूमेंटरी से यही पता चलता है कि इस केस के कुछ और पहलू अवश्य ही हैं जो कभी सामने आये ही नहीं| क्या कभी पूरा सच इस केस में सामने आयेगा या श्रद्धानंद के मरते ही यह केस समाप्त हो जाएगा? कुछ समय पूर्व उसकी पैरोल का आवेदन नामंजूर किया गया था तो वह चर्चा में आया था| डॉक्यूमेंटरी देख कर इस केस पर बहुत से प्रश्न उठते हैं और यह ऐसा केस नहीं लगता जिसमें सब कुछ सिद्ध हो गया हो| संभवतः इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदला| श्रद्धानंद दो दशकों से जेल में है, इतने समय में लगभग सभी अपराधी टूट जाते हैं और सच्चाई स्वीकार कर लेते हैं, पर श्रद्धानंद के साथ ऐसा नहीं हुआ है अभी तक| वह अपने को शकीरे की ह्त्या करने वाला नहीं मानता|

अपराध, क़ानून, सजा आदि पर आधारित ऐसी डॉक्यूमेंटरीज़ में और रोचकता बढ़े यह लक्ष्य तभी प्राप्त हो सकता है जब केस के सारे पहलुओं को केस से किसी भी स्तर पर न जुड़े हुए पुलिस अधिकारी और वकील एवं जज आदि के इस केस पर विचारों को भी दिखाया जाए| मौजूदा रूप में तो डॉक्यूमेंटरी इस मामले को अनसुलझा ही छोड़ देती है क्योंकि वह श्रद्धानंद को सौ प्रतिशत गुनहगार साबित नहीं कर पाती केवल परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर उसे दोषी बताया जाना दिखा पाती है| |


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