sankalp1975शायर नज़ीर अकबराबादी (1735-1830) ने बंजारानामा के गीत “सब ठाठ पड़ा रह जावेगा” में मानव जीवन का सच उढ़ेल कर रख दिया।

लाद चलेगा बंजारा” भारत के आध्यात्मिक परिवेश का एक प्रतिनिधि भी है।

टुक हिर्सो-हवा (लालच) को छोड़ मियां,
मत देस-बिदेस फिरे मारा
क़ज़्ज़ाक (डाकू) अजल (मौत) का लूटे है दिन-रात बजाकर नक़्क़ारा
क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतुर (ऊंट)
क्या गौनें पल्ला सर भारा
क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर,
क्या आग, धुआं और अंगारा


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा


ग़र तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर, मिसरी, क़ंद (खांड), गरी क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख़, मुनक़्क़ा, सोंठ, मिरच क्या केसर, लौंग, सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छिम जावेगा
या सूद बढ़ाकर लावेगा या टोटा घाटा पावेगा
क़ज़्ज़ाक़ अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा
धन-दौलत नाती-पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा|

उच्च कोटि की कला और जीवन का संगम इस गीत में दिखता है। जीवन से इस गीत का गहरा जुड़ाव है। जीवन की कड़वी सच्चाई को यह गीत सामने लाता है और एक कला के रुप में मानव को चेताने का और उसके जीवन को संवारने का काम करता है जो कि कला का प्राथमिक कर्तव्य है।

गीत भाईचारा सिखाता है। गीत की आध्यात्मिक कीमत बहुत ज्यादा है। गीत कई हजार वर्षों की शिक्षाओं को एक सार रुप में सामने लेकर आता है।

एक दिन सब मिट्टी में मिल जायेगा सब कुछ फिर से पाँच मूलभूत तत्वों में मिल जायेगा फिर किस लिये इतना छल कपट?

इंसान अकेला आया है अकेला ही जायेगा। खाली हाथ आया था और धरती पर जमा की हुयी हर एक चीज हर एक सम्पत्ति यहीं छोड़ कर जायेगा।

अध्यात्म के उपदेश कहते हैं कि संसार में रहते हुये भी ऐसे अछूते रहना चाहिये जैसे कमल पानी में रहता तो है परन्तु पानी कमल के पत्ते पर ठहर नहीं रह पाता ऐसे ही जीवन में विचरते हुये मानव को सांसारिक लोभ, लालच और मोह आदि इत्यादि से अनछुआ रहने का प्रयास करना चाहिये। आखिरकार बहुत सारे बुरे कर्म आदमी लालच के वशीभूत होकर ही करता है। अपने और अपने परिवार वालों के हित हेतू मनुष्य नीचता भरे कर्म करने से भी नहीं चूकता। जीवन में हर प्रकार की अय्याशी प्राप्त करने की इच्छाऎं मानव को अनैतिक कर्म की और ढ़केलती हैं और और जीवन का भरपूर उपभोग करने की प्रवृति आदमी को इतना अंधा बना देती है कि वह मौत के अस्तित्व को भूल ही जाता है और यदि याद रखता है तो एक ऐसी घटना की तरह जिसके भय के कारण ही वह सब कुछ किसी भी तरह पाना चाहता है। दूसरों को हानि पहुँचा कर भी वह अपने लिये लाभ कमाने में लग जाता है। दूसरों की छाती पर पैर रखकर भी आगे बढ़ने से वह नहीं हिचकता।

नज़ीर अकबराबादी का गीत सांसारिक रहते हुये भी सन्यासी की भाँति रहने की शिक्षा देता है। उनका गीत अनासक्त्त भाव के रस को संक्षेप में प्रस्तुत करता है।

यूँ ही नहीं डाकू बाल्मीकि को संन्यास लेने की इच्छा हुयी जब उसके घर वालों में से किसी ने भी उसके पाप कर्मों का बोझ साझा करने से इंकार कर दिया।

नज़ीर के उपरोक्त्त गीत से प्रेरित होकर मरहूम शायर और गीतकार कैफी आज़मी ने रमेश सहगल की फिल्म संकल्प के लिये निम्नलिखित गीत की रचना की।

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

धन तेरे काम न आवेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

जो पाया है वो बाँट के खा
कंगाल न कर कंगाल न हो
जो सबका हाल किया तूने
एक रोज वो तेरा हाल न हो
इस हाथ से दे उस हाथ से ले
हो जावे सुखी ये जग सारा
हो जावे सुखी ये जग सारा

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

क्या कोठा कोठी क्या बँगला
ये दुनिया रैन बसेरा है
क्यूँ झगड़ा तेरे मेरे का
कुछ तेरा है न मेरा है
सुन कुछ भी साथ न जावेगा
जब कूच का बाजा नक्कारा
जब कूच का बाजा नक्कारा

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

धन तेरे काम न आवेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

एक बंदा मालिक बन बैठा
हर बंदे की किस्मत फूटी
था इतना मोह खजाने का
दो हाथों से दुनिया लूटी
थे दोनो हाथ मगर खाली
उठा जो सिकंदर बेचारा
उठा जो सिकंदर बेचारा

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

हर युग की अपनी एक भाषा होती है और नज़ीर के लगभग दौ सौ साल बाद कैफी आज़मी ने आजकल के मानव की समझ में आने वाली भाषा में गीत की रचना की। उन्होने दर्शन का भाव तो वही लिया जिसने नज़ीर को प्रभावित किया होगा और बीसवीं सदी के सत्तर के दशक में समझ आ सकने वाली भाषा से शब्द लेकर, शब्दों को एकसूत्र में पिरोकर एक नयी माला लोगों के सामने पेश कर दी जिसके मनके जपते जपते सुनने वाला कुछ महत्वपूर्ण बातें ग्रहण कर सकता है।

खय्याम साब ने अपनी धुन से गीत को जीवित कर दिया और स्वर्गीय मुकेश की भावपूर्ण गायिकी ने गाने में एक वांछित असर पैदा कर दिया।

यह गीत उन महत्वपूर्ण गीतों में से एक है जो अपना गहरा असर सुनने वाले पर छोड़ जाते हैं। गीत किसी न किसी रुप में सुनने वाले को छुयेगा ही छुयेगा। आज नहीं तो किसी और दिन सही, पर इसका असर होना ही होना है।

…[राकेश]

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