किशोर कुमार ने एक शानदार आवाज के धनी अभिनेता अमिताभ बच्चन के लिए गाने गाना फ़िल्म संजोग (1971) में गाये गीत – रूप ये तेरा किसने बनाया, से आरम्भ कर दिया था| लेकिन इस जोड़ी को पहली प्रसिद्धि मिली बॉम्बे टू गोवा के ऊर्जा भरे गीत – देखा न हाय रे जाना न हाये रख दी निशाने पे जां|
बस में फिल्माए गए इस गीत के फिल्मांकन के लिए उनके शुरुआती दौर के मार्गदर्शक अभिनेता महमूद को बहुत पापड़ बेलने पड़े क्योंकि नवोदित अभिनेता अमिताभ बच्चन को कैमरे के सामने नाचने के ख्याल मात्र से ज्वर आ गया, वे सेट पर नर्वस होकर रोने लगे कि नृत्य जैसा काम उनसे नहीं होगा|
एक अभिनेता की यात्रा जाने कितने पडावों से होकर गुजरती है| पुराने दौर के अभिनेता निर्देशक और बाद में चरित्र अभिनेता के रूप में प्रसिद्द भगवान् दादा के लोच भरे नृत्य से प्रेरणा लेने वाले अमिताभ बच्चन ने उस शुरुआती हिचक के बाद अभिमान के गीत – मीत न मिला रे मन का, के बाद परदे पर अपने नृत्य भरे गीतों से जो धमाल मचाया है वह तो जगत के सामने है ही|
और कभी कभार मुकेश और कई मर्तबा रफ़ी और एक दो बार येसुदास द्वारा अमिताभ पर फिल्माए गीतों को गाने के बावजूद किशोर कुमार का गायन ही उनके लिए श्रोताओं और दर्शकों के लिए जाना पहचाना बन गया|
अमिताभ– किशोर कुमार की अभिनेता-गायक की जोड़ी एक से बढ़कर एक हिट गीत देती रही| इनके साथ का आलम ऐसा रहा कि अमर अकबर एंथोनी में प्रस्तुत कव्वाली – पर्दा है पर्दा , को ऋषि कपूर के लिए रफ़ी ने गया है और यह उस दौर में रफ़ी के बड़े हिट गीतों में से एक है, लेकिन अंत में इस कव्वाली में अमिताभ बच्चन के लिए किशोर कुमार मात्र एक पंक्ति गाते हैं – तो अकबर तेरा नाम नहीं, फ़िल्म देखते हुए तो बात ही अलग है लेकिन अगर केवल इसी गीत को यूट्यूब पर देखा जाए तो उस एक पंक्ति में किशोर का गीत में प्रवेश करना और अमिताभ का उस पर अभिनय करना, गीत में ऊर्जा ही बदल कर रख देता है|
डॉन के गीत – खाई के पान बनारस वाला, ने लोकप्रियता के सारे सोपान प्राप्त किये| इसके गायन और उस पर अमिताभ के सुयोग्य अभिनय ने इसे एक अमर गीत बना दिया|
अमिताभ और किशोर कुमार के साथ का सफ़र चलता जा/आ रहा था कि अमिताभ के परम मित्र निर्देशक मनमोहन देसाई, जिनके प्रिय पुरुष गायक मोहम्मद रफ़ी थे, ने यह सिलसिला जाने किस सनक में अपनी फ़िल्म – कुली में तोड़ दिया| उन्हें लगा कि नए गायक शब्बीर कुमार की आवाज मोहम्मद रफ़ी से मिलती है इसलिए उनकी फ़िल्म के नायक के गीत शब्बीर कुमार ही गायेंगे| अमिताभ के सम्पूर्ण फ़िल्मी जीवन के सबसे कमजोर गीत वही हैं जिन्हें शब्बीर कुमार और मोहम्मद अज़ीज़ ने गाये हैं|
यह एक बहस का मुद्दा है कि अगर अमिताभ बच्चन के एक्सीडेंट वाला मुद्दा न होता तो क्या कुली को उतनी बड़ी सफलता मिलती जितनी उनके रिकवर करने के बाद फ़िल्म को प्रदर्शित करने के बाद मिली? फ़िल्मी गुणवत्ता को देखा जाए तो गंगा जमुना सरस्वती से पहले कुली और मर्द में ही मनमोहन देसाई अमिताभ बच्चन के लिए नया रच पाने में असमर्थ हो चुके थे इन दोनों ही फिल्मों में ऐसा कुछ नहीं था जो अमिताभ पहले ही मनमोहन देसाई की फिल्मों में कर नहीं चुके थे|
अमिताभ बच्चन की फिल्मों को सिलेसिलवार (1969 से शुरू करके) देखने वाले आज के दर्शक भी मुश्किल से मनमोहन देसाई के इस करतब को अनदेखा कर पायेंगे|
उनसे उलट उस दौर में अमिताभ बच्चन के दूसरे नियमित निर्देशक प्रकाश मेहरा, जिन्होंने अमिताभ को उनकी पहली बड़ी हिट फ़िल्म – ज़ंजीर दी, ने अपनी फिल्मों में अमिताभ के लिए किशोर कुमार से ही गीत गवाए|
एक अभिनेता के तौर पर अमिताभ की साख पुकार, कुली और मर्द जैसी फिल्मों से अगर नीचे नहीं गिरी तो ऊपर भी नहीं उठी| उस दौर में जिस फ़िल्म ने अमिताभ बच्चन को गुणी अभिनेता की साख पुनः दिलवाई वह थी- शराबी |
इसमें कुछ अरसे के बाद पुनः अमिताभ बच्चन के लिए किशोर कुमार के लिए गीत गाने आये थे| और किशोर कुमार का जलवा देखा जाए तो उस साल के फिल्मफेयर पुरस्कारों में शराबी के चार गीतों के लिए किशोर कुमार का नामांकन हुआ था और जिस गीत ने उन्हें यह पुरस्कार दिलवाया, वह था – मंजिलें अपनी जगह है और रस्ते अपनी जगह|
कुली और मर्द के बीच के दौर के बारे में ऐसी कहानियों का भी सन्दर्भ दिया जाता है कि किशोर कुमार अमिताभ से नाराज़ थे इसलिए उनके गीत नहीं गा रहे थे|
जो भी कारण रहा हो, अब यह एक इतिहास है कि मनमोहन देसाई की कुली और मर्द में अमिताभ के लिए किशोर कुमार की गायिकी नहीं थी लेकिन इस बीच किशोर कुमार अमिताभ के लिए प्रकाश मेहरा की लावारिस और नमक हलाल में गा रहे थे, बल्कि जीवित रहते किशोर कुमार ने प्रकाश मेहरा की हरेक फ़िल्म में गीत गाये|
शराबी के सभी गीत हिट रहे हैं| जिस तरह फ़िल्म के नायक के दुःख को किशोर कुमार ने गीत – “मंजिलें अपनी जगह हैं और रास्ते अपनी जगह हैं” में व्यक्त किया है वह दुःख भरे महान गीतों में इसे सम्मिलित कर देता है यह अमिताभ बच्चन और किशोर कुमार का एक उत्कृष्ट गीत है
प्रकाश मेहरा के लिखे इस गीत की शुरुआत जिस भाव और आवाज़ से किशोर कुमार एक शेर गाते हुए करते हैं उसे सुनकर ही दुःख चारों ओर प्रसार पाने लगता है और जैसे ही वे मुखड़े की दूसरी पंक्ति में “साथ” शब्द को गाते हैं, गीत के दुःख की गाडी एक पायदान ऊपर के गियर के साथ दौड़ने लगती है और उसके बाद तो जैसे जैसे गीत आगे बढ़ता है, पहले अंतरे में चरित्र के दुःख की मात्रा अगर 10 में से आठ है तो दूसरे अंतरे में यह नौ हो जाती है और तीसरे अंतरे का आरम्भ ही 10 में से 10 से होता है और चरित्र के ह्रदय के चीत्कार को प्रदर्शित कर जाता है| जिस तरह से किशोर कुमार ने तीसरे और अंतिम अंतरे में “हौंसला” शब्द को गाया है, वह परदे पर अमिताभ के सह कलाकार दीपक पाराशर की आँखों से ही आंसू नहीं निकाल देता बल्कि श्रोता को भी दुःख के भारी भरकम बोझ से दबा देता है|
महानायक की उपाधि जिसे मिली हो, ऐसे अभिनेता अमिताभ बच्चन के लायक ऐसी ही गायिकी की आवश्यकता रही है, जिससे परदे पर गीत में प्रयुक्त भावों को प्रदर्शित करने के लिए अन्दर से चुनौती मिले| जिस तरह डूब कर किशोर कुमार ने इस गीत को गाया है, उसी तरह डूब कर अमिताभ बच्चन ने परदे पर इस गीत पर अभिनय भी किया है| यह सोने पर सुहागा वाली स्थिति का गीत है| गीत के फिल्मांकन में अमिताभ बच्चन का जबरदस्त अभिनय ही दर्शनीय बात है|
किशोर कुमार ने इतना दर्द भरा गीत गाया और इसी फ़िल्म में दे दे प्यार दे, जहाँ चार यार मिल जाएँ, मुझे नौलखा माँगा दे, और इन्तेहाँ हो गई इंतज़ार की, जैसे मस्ती भरे और अलग भावों के गीत भी गाये|
मंजिलें अपनी जगह हैं, गीत का फिल्मांकन देखेंगे संगीत रसिक तो ध्यान देंगे कि गीत के अंत में दीपक पाराशर, अमिताभ बच्चन को 13 नंबर के घर में अन्दर ले जाते हैं|
जिन्होंने शराबी फ़िल्म नहीं देखी है, उनके लिए इस गीत की पृष्ठभूमि ऐसी है कि नायक (अमिताभ बच्चन) को पता लगा है और उसे बताया गया है कि उसकी प्रेमिका (जया प्रदा) की मौत हो चुकी है| उसी ग़म में वह यह गीत गा रहा है| करोडपति पिता की इकलौती संतान के रूप में उसने कभी सह-नायक (दीपक पाराशर) की पढ़ाई का खर्चा उठाया था और अब पुलिस इन्स्पेक्टर बनकर सह-नायक अपने हमदर्द की सहायता करना चाहता है, इसलिए उसने नायक को अपने घर एक पार्टी पर आमंत्रित किया है|
नायक को उस 13 नंबर के घर में प्रवेश करने के बाद उस वक्त अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी मिलती है|
फ़िल्मी लोग अन्धविश्वास से घिरे पाए जाते हैं| ऐसे निर्देशक या निर्माता रहे हैं जो किसी विशेष अक्षर से ही अपनी फिल्मों के नाम रखते रहे हैं| ऐसे अभिनेता हुए हैं जो, अगर उनके लिए सही बताये वक्त पर प्लेन न उड़े, तो एयरपोर्ट से वापिस चले गए हैं, भले उनके निर्माता का कितना ही नुकसान क्यों न हो जाए|
ऐसे में प्रकाश मेहरा 13 नंबर से नायक के लिए प्रसन्नता का सन्देश आया दिखाते हैं तो निस्संदेह वे इससे जुड़े मिथक को तोड़ रहे होंगे|
…[राकेश]
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