नवोदित निर्देशक के तौर पर आर्यन खान ने आत्मविश्वास से भरी शुरुआत की है| उनकी वेब सीरीज की सामग्री को देखा जाए तो भाषा के स्तर पर वह कुछ वर्षों पूर्व AIB के एक कुख्यात कार्यक्रम जैसी है, जिसे अंततः अश्लील भाषा के उपयोग वाला कार्यक्रम बता कर बैन कर दिया गया था| ज़ोया अख्तर निर्देशित पहली फिल्म – लक बाय चांस और AIB की उस क़िस्त को मिला दें तो आर्यन खान की इस श्रंखला की रीढ़ तैयार हो जाती है|

बॉलीवुड के ग्लैमर से भरे चमचमाते महल में भी गंदगी सीवेज में ही नहीं बहती बल्कि उसका अस्तित्व हर जगह है बस उसे कालीन के नीचे,, आकर्षक सजावट के पीछे छिपा दिया जाता है| इस फ़िल्मी संसार में जगह बनाने के लिए कौन किसकी पीठ पर चढ़ कर दीवार लांघ जाएगा, कौन किसकी छाती पर लात मारकर उसे घायल कर गिराकर आगे बढ़ जाएगा, कौन किसी को बदनाम कर और करवा कर अपने लिए प्रसिद्धि निश्चित करेगा, कौन किसे किसी फिल्म से हटवा कर अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा, इन सब गतिविधियों को जानते सभी रहे हैं, ऑफ द रिकॉर्ड इन सब चालबाजियों की चर्चा भी होती रही है, लेकिन फिल्मों के संसार पर बनी फिल्मों में अभी तक ऐसी सारी गन्दगी को सांकेतिक रूप से ही दिखाया जाता रहा है|

गुरुदत्त की कागज़ के फूल (1959), हृषिकेश मुकर्जी की गुड्डी (1971), विनोद पांडे द्वारा निर्देशित एक बार फिर (1980), हीरेन नाग की फिल्म ही फिल्म (1983), मीराज़ की सितारा (1980) , राम गोपाल वर्मा की रंगीला (1995), मंसूर खान की अकेले हम अकेले तुम (1995), नागेश कुकुनूर की बॉलीवुड कालिंग (2001), दीपा मेहता की बॉलीवुड हॉलीवुड (2002), ज़ोया अख्तर की लक बाय चांस (2009), मधुर भंडारकर की हीरोइन (2012), , आदि फिल्मों ने फ़िल्मी दुनिया के विभिन्न पहलुओं की निचाईयों को दिखाने की चेष्टा की है| इनके अलावा भी कुछ अन्य फ़िल्में हैं जहाँ बाहर से चमकते दमकते दिखाई देने वाले फ़िल्मी संसार के अंधेरों को दर्शकों तक लाया गया है|

ओटीटी के भारत में पदार्पण करने के बाद तो फ़िल्मी दुनिया से संबंधित कई वेब सीरीज सामने आ चुकी हैं, जो वहां बसते सितारों या उनके परिवार के लोगों के जीवन के बहाने उस दुनिया की कुछ बातों को आम दर्शकों को दिखाती रही हैं| फ़िल्मी सितारों की बातों की झलक करण जोहर के टॉक शो – कॉफ़ी विद करण , से मिलनी शुरू हो गयी थी और वहां परस्पर जलन, और वास्तविक जीवन में भी अभिनय करते रहने की कला के दर्शन हो जाते रहे हैं |

पिछली तमाम फिल्मों और वेब श्रंखलाओं में दिखाई सामग्री के बीच कहानी पिरोकर आर्यन खान की श्रंखला बनी दिखाई देती है| कहानी के स्तर पर यह उतनी ठोस नहीं लगती जितनी अपने प्रेजेंटेशन में लगती है| सीरीज में तकनीकी श्रेष्ठता के साथ आर्यन खान की अभिनेताओं से बेहतर अभिनय करवाने की कला दिखाई देती है|

सीरीज की भाषा इतने अश्लील स्तर पर क्यों गिराई गयी, इसका कोई वाजिब सा दर्शन आर्यन खान और शाहरुख़ खान के पास होगा? शाहरुख़ खान ने अपने बहुत बड़े स्टारडम में देह- निकटता के दृश्य अवश्य किये लेकिन कभी परदे पर गालियाँ नहीं दीं, उन्होंने इससे परहेज रखा, अधिक से अधिक किसी फिल्म में अंगरेजी में एफ शब्द बोला हो तो अलग बात है| उनके समकालीन आमिर खान ने भी उन्हीं जैसा दर्शन अभी तक स्वीकार किया है| सलमान खान ने इन दोनों से ज्यादा संयम दिखाते हुए परदे पर न तो देह-नजदीकी के दृश्य कभी किये न गालियां दीं| सलमान खान को भली-भांति ज्ञात है कि उनकी फिल्म पारवारिक दर्शक बेखटके देख सकते हैं उन्हें पता है कि उनमें ऐसे कोई दृश्य या संवाद न होंगे जो बच्चे नहीं देख सकते या दो पीढियां एक साथ बैठकर नहीं देख सकतीं|

आर्यन खान इन वर्जनाओं को तोड़ते हैं| यह अच्छा है या गलत है, यह भविष्य तय करेगा| यह अवश्य है कि इस नई पीढ़ी के निर्देशकों और लेखकों के लिए परदे पर की अश्लील भाषा कोई मुद्दा है ही नहीं| इसका एक बहुत बड़ा कारण यही हो सकता है कि ये सभी किसी भी भारतीय भाषा के स्कूलों में कभी नहीं पढ़े, फिल्मों के नाम पर इन्होंने बचपन से विदेशी फ़िल्में ही देखीं हैं क्योंकि इनके माता-पिता उन्हें देखते रहे हैं प्रेरणा लेने के लिए| तो भाषा को लेकर उनकी संवेदनाएं विदेशी फिल्मों वाली हैं जहाँ एडल्ट रेटिंग की फिल्मों में हर बात स्वीकृत है| आर्यन से पहले विशाल भारद्वाज के सुपुत्र आसमान अपनी निर्देशकीय पारी की आरंभिक फिल्म कुत्ते में परदे पर गालियों का धाराप्रवाह प्रदर्शन करवा चुके हैं| यह भी हो सकता है कि ये नौजवान निर्देशक गण सदा केवल वयस्कों वाली फ़िल्में बनाने की नीति पर काम करना ठान कर ही फिल्मों में आये हैं|

आर्यन खान इस समय, इस उम्र के शाहरुख खान जैसे दिखाई देते थे, उनसे ज्यादा बेहतर दिखाई देते हैं और पिता के स्टारडम, और एक निर्माता भी होने के कारण वे आसानी से फिल्मों में अभिनय करना ठानकर किसी बड़े बजट की फिल्म से नायक की पारी खेलना आरम्भ कर सकते थे| उन्होंने और उनके पिता ने शायद यह बेहतर निर्णय ही लिया कि वे एक निर्देशक के रूप में ही अपनी फ़िल्मी पारी शुरू करें| आरम्भ में ही वे एक अभिनेता बन जाते तो ऐसा असंभव था कि आर्यन की तुलना पिता शाहरुख़ खान से न हो और यह स्थिति एक नवोदित अभिनेता के लिए बेहतरी की तो नहीं ही होती| फिल्म अच्छी सफलता प्राप्त कर ले तो कोई समस्या आड़े नहीं आती लेकिन अगर फिल्म सफल नहीं हो पाती तो नवोदित अभिनेता के लिए इस इन्टरनेट और सोशल मीडिया के युग में बहुत मुश्किल हो जाती है| इस लिहाज से आर्यन खान ने अपने पिता से तुलना का रास्ता ही बंद कर दिया और निर्देशन में अपनी कुशलता दिखाकर बड़ी संभावनाओं के द्वार खोल लिए|

काश कि वे गालियों के उपयोग के बिना इसे बनाते तो यह श्रंखला पूरे भारत के हर उम्र के दर्शकों के लिए एक मिसाल देने वाली श्रंखला लिए बन जाती| फ़िल्मी दुनिया का और इसके ग्लैमर का आकर्षण इतना बड़ा है कि किशोर और युवा तो एक तरफ बहुत से लोग बड़ी उम्र तक में वहां जाने का ख़्वाब देखते हैं| लाखों इच्छुक लोगों में से कितनों को वहां कायदे का काम मिल सकता है, यह समझना कोई बड़ी बात नहीं है| बाहर से जाने वाले आकांक्षी के जीवन में बहुत संघर्ष होते हैं और वह संघर्ष आर्यन खान की सीरीज से नदारद है| सीरीज का नायक -आसमान, शुरू से ही एक फिल्म में नायक की भूमिका निभा रहा है, उसका चाचा डेढ़ दो दशकों से संगीत के क्षेत्र में संघर्ष कर रहा है लेकिन उसका एक घर है जहाँ आसमान रहता है| कैसी भी सहायता करने वाला एक दोस्त उसके साथ रहता है| उसकी एक मैनेजर भी है| उसकी माँ भी उसके जन्म से पहले फिल्मों में काम करने आयी थी लेकिन बैक ग्राउंड डांसर ही बन पाई सो इस दुनिया को छोड़ गयी| आसमान का संघर्ष इस दुनिया से नितांत अजनबी नवोदित अभिनेता का संघर्ष नहीं है| अगर इस बात को दिखाया जाता कि उसे पहली फिल्म कैसे मिली तब शायद उसके संघर्ष की बेहतर झलक देखने को मिलती| किशोरों के लिए फ़िल्मी दुनिया की सच्चाई जाना आवश्यक होता है ताकि वे किसी काल्पनिक दुनिया में न जीते हुए वहां जाकर जीवन नष्ट न करें| आर्यन खान अश्लील भाषा के अत्याधिक प्रयोग से 18 साल से कम के दर्शकों के संसार से इस सीरीज को जोड़ने की राह बंद कर देते हैं| उनमें से बहुत से इसे देख लेंगे इधर उधर से इन्हीं गालियों और अन्य बातों को सुनकर| लेकिन इसे वे अपने माता पिता के साथ न देख पायेंगे न उनके साथ इस पर चर्चा कर पाएंगे| अतः उनके लिए इसका उपयोग बहुत कम रह जाता है|

कोविड काल में आर्यन खान को एक कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ा| वे शाहरुख़ खान जैसे बड़े सितारे के बेटे न होते तो शायद इतनी मुश्किल उनके सामने न आती और नियमानुसार उन्हें शीघ्र ही बेल मिल जाती| नारकोटिक्स अधिकारी ने हो सकता है अपने अहं में उनकी मुश्किलें बढ़ाई हों, क्योंकि ऐसा करना उनके अधिकार क्षेत्र में था| लेकिन अधिकारी के हमशक्ल जैसा चरित्र गढ़ कर उसका उपहास करने का विचार गलत है| आप फिल्म बनाने में सरकारी अधिकारी का चरित्र रख सकते हैं लेकिन एक अधिकारी विशेष का हमशक्ल प्रस्तुत करना कहीं से उचित नहीं| यह क्षेत्र आपके अधिकार में है तो आप भी वही कर रहे हैं जो उसने आपके साथ किया| किताबें, फ़िल्में, या कलाएं बदला लेने के माध्यम तो हैं नहीं| इससे बेहतर तो सबंधित अधिकारी पर अदालत में केस करना है|

वेब सीरीज का ढांचा इतना बड़ा होता है कि इसमें हमेशा गुंजाइश होती है कि बहुत कुछ काट छांट कर एक ठोस सामग्री बनाई जा सकती थी, और उस लिहाज से आर्यन खान की एक निर्देशक के रूप में एक और परीक्षा एक फीचर फिल्म के निर्देशन के साथ देनी होगी| इस सीरीज के समय तो लोगों को उनसे बहुत अपेक्षा नहीं रही होगी, और सीरीज को लोग अपनी सुविधा से आगे बढाकर, कुछ छोड़कर देख लेते हैं| जब तक बहुत ही अच्छी या बेकार न हो, सामान्यतः वेब सीरीज के संसार में निर्देशक के ऊपर आम दर्शकों का ध्यान जाता ही नहीं| पंचायत जैसी व्यापक सफलता पायी श्रंखला में भी सबसे ऊपर अभिनेतागण और उसके बाद लेखक की चर्चा रहती है, निर्देशक का नाम इनके बाद ही आता है|

जबकि इस सीरीज को आर्यन खान की सीरीज के रूप में पहचान और मान्यता मिली है जो कि एक नवोदित निर्देशक के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है|

जिस कुशलता से आर्यन खान ने वरिष्ठ अभिनेताओं – मनोज पाहवा, मोना सिंह, गौतमी कपूर, मनीष चौधरी, रजत बेदी, अरशद वारसी, और बॉबी देओल, आदि से काम लिया है वह प्रशंसनीय है| इनके साथ वे बड़ी दक्षता से नए कलाकारों – लक्ष्य लालवानी, सेहर बांबा, राघव जुयाल, आन्या सिंह और दिविक शर्मा के अभिनय का ही नहीं करा देते बल्कि दो पीढ़ियों केअंतर के बावजूद सह-अस्तित्व को भी दर्शनीय बना कर दिखा देते हैं|

निर्देशक के रूप में आर्यन खान ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है|

…[राकेश]


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