रिश्तों में गर्माहट का स्थान ठंडक और परस्पर दूरियां ले लें तो इसके लिए उपमा देने के लिए नई सदी में तो गुलज़ार ही श्रेष्ठ विकल्प हो सकते हैं| गुलज़ार के सृजन आवश्यक नहीं कि काल खंड पर सिलसिलेवार ही अस्तित्व में आयें वे आगे पीछे भी जन्मते हैं लेकिन उनका आपस में एक अन्तर्निहित सम्बन्ध अवश्य ही होता है क्योंकि गुलज़ार फिल्मों में फ़िल्मी स्थितियों के लिए लिखते जरुर हैं लेकिन वे रचनाएं भी एक बड़े सृजन का एक हिस्सा मात्र होती हैं|

एक बार वक्त से

लम्हा गिरा कहीं

वहां दास्ताँ मिली 

लम्हा कहीं नहीं

फ़िल्म गोलमाल के गीत की उपरोक्त पंक्तियों में कहीं न कहीं गुलज़ार के रचने की प्रक्रिया भी सम्मिलित है|

टूटते रिश्ते से सम्बंधित उनकी एक पुराने नज़्म को याद करें

रात भर सर्द हवा चलती रही

रात भर हमने अलाव तापा

मैंने माज़ी से कई खुश्क सी शाखें काटी

तुमने भी गुजरे हुए लमहों के पत्ते तोड़े

मैंने जेबों से निकाली सभी सूखी नज़्में

तुमने भी हाथों से मुरझाए हुए ख़त खोले

अपनी इन आँखों से मैंने कई मांजे तोड़े

और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकी

तुमने भी पलकों पे नमी सूख गई थी, सो गिरा दी

रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हमको

काट के डाल दिया जलते अलावों में उसे

रात भर फूकों से हर लौ को जगाए रखा

और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रखा

रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने…

उपरोक्त नज़्म की जीती जागती परिस्थितियाँ उन्हें फ़िल्म लीला में मिलीं| जब नायिका लीला (डिम्पल कपाडिया) अमेरिका से फोन पर अपने पति नाशाद (विनोद खन्ना) से बात करते हुए समझती है कि उसकी अनुपस्थिति में नाशाद घर पर किसी दूसरी स्त्री को ले आया है और इस कुंठा, क्रोध और निराशा में वह अपनी भावनाओं के वशीभूत होकर अपने अमेरिकी छात्र 18 वर्षीय कृष्णा (अमोल म्हात्रे) से शारीरिक सम्बन्ध बना बैठती है, कृष्णा पहले से ही उस पर आसक्त है, उसके देह आकर्षण में बंधा रहता है और उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने का प्रयास पहले कर चुका है| हालांकि लीला कृष्णा की माँ (दीप्ती नवल) की सहकर्मी है और लीला और कृष्णा का दैहिक सम्बन्ध कृष्णा की माँ, और अन्य लोगों के लिए अनैतिक है और कृष्णा को बरगलाने के आरोप लीला पर लगते हैं| नाशाद अमेरिका पहुँचता है लीला को मनाने और कृष्णा को देखकर, लीला और कृष्णा के बारे में कानाफूसी सुनकर, कृष्णा की उपस्थिति में लीला के मानसिक और शारीरिक हाव भावों को देख उनके मध्य के सम्बन्ध को समझ जाता है| लेकिन वह इसे हलके में लेकर समझता है कि वह फिर से लीला को अपने आकर्षण के घेरे में लेकर उसे भारत वापिस ले जाएगा| लीला और उसमें भारत वापसी को लेकर चर्चा होती है जिसमें लीला कुछ समय के लिए नाशाद से दूरी चाहती है और उसकी यह मांग नाशाद को धक्का पहुंचाती है| अगले दिन नाशाद अमेरिका में बसे भारतीयों, और उनके अमेरिकी मित्रो से भरी महफ़िल में गाता है

जाग के काटी सारी रैना

नैंनों में कल ओस गिरी थी

जाग के काटी सारी रैना

दिलफेंक शायर और गायक नाशाद विभिन्न स्त्रियों संग फ्लर्ट करने को अपने व्यक्तिव का हिस्सा बना चुका है और यह उसे अपने कलाकार के जीवन का अभिन्न भाग लगता है| वह अपनी पत्नी लीला से प्रेम भी करता है लेकिन वह गहरे में एक स्त्री वाला पुरुष नहीं है| स्त्रियाँ उसके आकर्षक व्यक्तित्व, उसकी कला, उसकी सफलता आदि के सम्मोहन से बंध कर उसके इर्द गिर्द मंडराती हैं और यह परिदृश्य नाशाद को बेहद भाता है| वह अपनी पत्नी लीला के लिए भी यही समझता है कि 18-19 वर्ष की वय से उसके संग रह रही लीला के लिए वह अपरिहार्य है और वह उससे अलग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती| लीला द्वारा कुछ समय की एच्छिक दूरी मांगना उसे कडवा धक्का दे जाता है और कातर स्वर में वह लीला से निवेदन करता है कि लीला उसे अपने से दूर न करे| इन स्थितियों में लीला और नाशाद ने जो रात बिताई है यह गीत उसका वर्णन बखूबी करता है|

अभी तक स्वीकृत परिभाषाओं से चलते जीवन में अलगाव की तपिश आई है सो नींद तो कैसे दोनों को आयेगी| संबंध है कि टूटता नहीं और भावनाएं हैं कि मिश्रित हो चुकी हैं| सहा भी न जाए रहा भी न जाए की स्थिति में लीला है|

जाग के काटी सारी रैना

यह तो सरल सी समझ आने वाली स्थिति है कि दोनों ने रतजगे में सोच विचार में रात व्यतीत की है|

नैंनों में कल ओस गिरी थी

बहुअर्थी पंक्ति है| इसका सीधा अर्थ तो यह भी हो सकता है कि चिन्ता में बाहर घूमते हुए समय काटते हुए रात के सर्द वातावरण में आँखों को ओस की ठंडी नमी भीगा देती है| और दूसरे अर्थ में स्थिर बैठे हुए भी घर के अन्दर मानसिक उलझनों के दबाव में आँखों में जो आंसू बार बार छलक उठाते हैं, उनके वर्णन के लिए ओस की उपमा का उपयोग किया गया है|

प्रेम की अग्नि बुझती नहीं है

बहती नदिया रुकती नहीं है

सागर तक बहते दो नैना

जाग के काटी सारी रैना

लीला और नाशाद के सम्मुख उनके रिश्ता अपनी नग्न सच्चाई के रूप में खड़ा है| ऐसा नहीं कि उनके मध्य प्रेम नहीं है, वह तो इन दिल तोड़ने वाली घटनाओं के बाद भी बचा और बना हुआ है| लेकिन जुड़ाव और अलगाव के मिश्रित भाव रुदन उत्पन्न कर रहे हैं| नदी सागर तक बहती है और उसमें विलीन हो जाती है| नदी को कृत्रिम तरीकों से ही रोका जा सकता है वर्ना वह समय की भांति उंचाई से निचाई की ओर बहती जाती है| रिश्ते की स्मृतियाँ नदी की तरह बहती है और नैनों से बहती अश्रुधारा के ऊपर भी स्मृतियाँ बहती जाती हैं| आसुंओं की नदी स्मृतियों के पुंज रुपया सागर की गहराइयों में विलीन तो होती है लेकिन मसला इतना सीधा नहीं है कि बस बहुत हो गया और अब हम अलग अलग रास्ते नापेंगे|

रूह के बंधन खुलते नहीं हैं

इतने बरस के स्नेह के मोहपाश के बंधन खुलना इतने आसान नहीं होते|

दाग हैं दिल के धुलते नहीं हैं

दोनों समझते हैं कि न तो दिल के बंधन ही तोडना आसान है और न ही दिल पर जो दाग आ गए हैं उन्हें साफ़ करना ही इतना सहज है|

शायद वक्त का तकिया ही इन धक्कों के दबाव को सहन करने लायक उनके अस्तित्व को बनाएगा|

करवट करवट बांटी रैना

जाग के काटी सारी रैना

उधेड़ बुन में जहां दोनों के मध्य अब बोलकर संवाद नहीं होना है, लेकिन दोनों के अन्दर विचारों के झंझावात चल रहे हैं, करवट बदल बदल कर उन्होंने रात काटी है, जहां प्रत्येक की प्रत्येक करवट का एक अर्थ है, एक अर्थ अपने लिए और एक अर्थ दूसरे के लिए| जहां करवट लेते हुए संकोच भी होगा कि अब करवट ली तो पास लेते साथी को और गहरा धक्का लगेगा और एक निष्ठुरता भी कि अब जब स्वयं का ही अर्थ जानने की प्रक्रिया चल रही है तो कठोर निर्णय लेने ही पड़ेंगे|

एक शास्त्रीय कठिन आलाप लेकर नाशाद, अपरोक्ष रूप से कृष्णा को उसकी अनुभवहीनता का बोध करा देता है, लेकिन साथ ही उसकी हौंसला अफजाई भी करता जाता है|  

एक छोटे से गीत में गुलज़ार ने अपनी कला की श्रेष्ठता सदैव की भांति दर्शाई है| जगजीत सिंह ने इसे एक जटिल लेकिन सिद्धहस्त कलाकार गायक के लिए जैसे गाया जाना चाहिए वैसे इसे गाया है| यह फ़िल्म सरफरोश के एक गायक (होशवालों को खबर…) से नितांत अलग अंदाज़ में गाया गया है|

विनोद खन्ना के लिये तो कहा ही क्या जाए? वे ऐसे ही जटिल चरित्रों को निभाने के लिए ही बने थे| व्यावसायिक फिल्मों ने उन्हें एक स्टाइलिश अभिनेता बना दिया हो वह एक अलग बात है लेकिन चरित्र की गहराई में जाकर उसकी मानसिकता को परदे पर उभार कर रख देना उनकी विशेषता थी| नाशाद के जटिल व्यक्तित्व को विनोद खन्ना ने बेहद ख़ूबसूरत पारंगता के साथ निभाया है|

इस गीत के बोल (गुलज़ार), इसका संगीत और गायन (जगजीत सिंह) और इस पर अदायगी (विनोद खन्ना) तीनों मिलकर कमाल रचते हैं|

निर्देशक सोमनाथ सेन ने इस गीत के फिल्मांकन के लिए एक अनौपचारिक माहौल को बेहद कुशलता से रचा है|

…[राकेश]


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