वीरू – यार जय, मैंने कुछ सोचा है| गब्बर सिंह को पकड़ने के बाद इसी गाँव में बसेंगे तो कुछ काम धंधा तो करना पड़ेगा न|

जय- हम्म|

वीरू – क्या हम्म| तूने कुछ सोचा भी है पेट पालने के लिए| ये चोरी चकारी छोड़ने के बाद हमारे पास क्या रह जाएगा, पैसा कमाने के लिए?

जय – तूने सोच तो रखा है| जल्दी से बता दे वरना तेरे पेट में गैस बनने लग जायेगी|

वीरू – हाँ यार वो तो है| जब तक तुझे बता न लूं अपना प्लान, चैन नहीं आयेगा|

जय – तो बता फिर, अपनी योजना| पंच वर्षीय न हो बस|  

वीरू – यार वो टैंकी है ना गाँव में|

जय – हाँ जिस पर चढ़कर तूने बसन्ती और बसन्ती की मौसी को मना लिया| एक बात तो है, नशे में भी तेरा दिमाग खूब चलता है| कौन सोच सकता है एक बेकार पडी टंकी किसी आशिक, वो भी तेरे जैसा, का घर बसाने के काम आ जायेगी| पंडत का काम कर गयी टंकी| सुबह शाम पैर छुआ कर टंकी के|

वीरू – अरे मजाक छोड़| सुन तो| गाँव वालों में अक्ल तो होती है नहीं, बिजली है नहीं और इतनी ऊँची टैंकी बना ली| अब पानी तो चढ़ने से रहा ऊपर| अपन लोग हथिया लेते हैं टैंकी को|

जय- हथिया लेते हैं मतलब? अबे गाँव वाले लेने देंगे तुझे? किसी काम से तो बनाई होगी न| कभी तो बिजली आयेगी न इस गाँव में भी|

वीरू – अरे यार, अपना इतना सिक्का तो इस गाँव में जम ही गया है, कौन साला हमारे खिलाफ मुंह खोलेगा| फिर ठाकुर के मेहमान हैं हम, ठाकुर से ही कहेंगे, देखो ठाकुर तुम्हारे लिए जान जोखिम में डाल रहे हैं| ये टैंकी हमें दे दो ठाकुर| दे देगा आसानी से|

जय – अच्छा चल ठाकुर और गाँव वालों ने टंकी की रजिस्ट्री हमारे नाम कर दी| अबे करेगा क्या वहां पचास मीटर ऊँची टंकी में? पतंग उड़ाने का क्लब बनाएगा?

वीरू – यार तू कभी सीरियस भी होता है? देख मुझे पता है क्या करना है टैंकी का|

जय- अबे बता तो सही, क्या ग़दर चल रिया है तेरे दिमाग में?

वीरू- ज़रा सोच, यानी की सोच, ऊपर एक ढाबा खोल लेते हैं|

जय – ढाबा?

वीरू – हाँ यार| ज़रा सा तोड़ फोड़ करके टैंकी का डिजायन बदल देंगे| टैंकी में खिड़कियाँ दरवाजे वगैरह बनवा लेंगे| लकड़ियों के लिए अपना सूरमा भोपाली है ही, वो बनवाएगा हमारा जय-वीरू हवामहल ढाबा!

जय – चल मान लिया हम लोग उसका हुलिया बदल देंगे| ऊपर चढ़कर टंकी में फिर नीचे उतरेंगे और चारों तरफ के नज़ारे देखकर लोग खाना खायेंगे|

वीरू – हाँ यार सोच जरा, जब गाँव वाले इतनी उंचाई पर जय-वीरू स्पेशल खाना खाया करेंगे तो कितनी दुआएं देंगे|

जय- और खाना कौन बनाएगा? मैं, तू या बसन्ती? मैं तो बस अदरक की चाय बना सकता हूँ| तेरे बारे में भी मुझे यही लगता है कि तूने ज़िंदगी में चावल तक नहीं रांधे होंगे? बची बसन्ती, उससे पूछ ले भाई| उससे बिना पूछे कुछ किया तो तेरी खाल खींच लेगी और पचास गालियाँ मुझे देगी|   

वीरू – अरे रसोइये रखेंगे यार| गब्बर सिंह को पकड़ने का ईनाम मिलेगा कि नहीं| सब हो जायेगा यार|

जय- और ये गांव वाले अपने घर का खाना छोड़ कर हवा में तेरे ढाबे पर खाना खाने क्यूँ आयेंगे?

वीरू – अरे शहर में भी तो गृहस्थ लोग बाहर खाना खाते हैं न| हम लोग वैसा ही सीन यहाँ बनायेंगे| फिर दूर दूर तक प्रचार करेंगे न अपने ढाबे का, बाहर से भी लोग आयेंगे पिकनिक मनाने हमारे ढाबे में|

जय- हाँ यार, ठाकुर से कहके उनका मेहमान घर ले लेंगे और शहरी लोगों को गाँव में कुछ दिन रहने का प्लान बताएँगे| कुछ दिन तो गुजारो हमारे रामगढ़ में!

वीरू – अब आया न तू रस्ते पर|  ज़रा सोच जब पचास पचास कोस दूर से हमारे जय-वीरू ढाबे का नाम लोगों को दिखाई देगा| बना और प्लान बना|

जय- पर यार, अगर बूढ़े लोग आ गए खाने हमारे ढाबे पर तो कैसे ऊपर चढ़ेंगे? कभी मौलवी चाचा को भी चखा सकते हैं ऊपर ले जाकर अपना खाना| फिर बसन्ती की मौसी है, कल को तेरी सास बनेगी|

वीरू – हाँ ये तो समस्या है| कुछ सोच यार, बूढ़े, बच्चे और महिलायें, ये सब कैसे ऊपर ढाबे तक पहुंचेगे|

जय – वीरू तुझे याद है, जब सोनपुर के मेले में हमने एक जेबकतरे को धोया था तो वहां सर्कस में वो जो झूल झूल कर इधर उधर कूदते हैं, उन्हें ऊपर ले जाने के लिए एक बक्से जैसा था, जिसे रस्सी से ऊपर भेज रहे थे| इधर रस्सी को नीचे खींच रहे थे और बक्सा ऊपर जा रहा था|

वीरू – हाँ यार, जैसे कुएं से घिर्री पर रखे रस्से से पानी ऊपर खींचते हैं| ऐसा ही कर लेंगे| हमारी कसरत भी हो जाया करेगी|

जय – हाँ ये काम तो तू ही करियो, बहुत जान है तेरे हाथों में|

वीरू – हां बेटा, तू बैठा वो अपना बाजा बजइयो|

जय – ये तो कमाल रहेगा वीरू| तू एक बार अपनी आशिकी में बिजी था, मैंने एक मुर्गा फांसा था, अपुन को एक होटल में ले गया था| वहां क्या मस्त गीत संगीत बज रिया था|

वीरू – ये तो मजे की बात बता दी तूने| कुछ गाँव वालों को भी बैठा दिया करेंगे, कभी कव्वाली गा लेंगे|

जय- यार वीरू, उस होटल में एक महिला नाच भी रही थी|

वीरू – अरे वो सब शहर के बड़े होटलों में होता है| फिल्मों में देखा है मैंने| और यहाँ कौन नाच लेगा बे|

जय – तू बुरा मान जाएगा| पर कभी ख़ास मौकों पर बसन्ती अपने नाच के जौहर दिखा ही सकती है| तू भी साथ नाच लियो| पहले भी तो तू उसके साथ ठुमक ठुमक नाच गा ही चुका है| होली याद है|

वीरू – अबे जय, तू मेरी टांग तो नहीं खींच रहा कहीं? मेरे सामने कह दिया सो कह दिया, बसन्ती के सामने ये बकवास न कर दियो, तेरी लम्बी टाँगे तोड़कर आधी कर देगी और मेरी कमर चाबुक से लाल कर देगी|

जय- अरे तुझे चढ़ गयी है, मेरी सीरियस बातें भी तुझे दिल्लगी लग रही हैं| पेट भरने के सीरियस मामले में अपुन तुझसे दिल्लगी करेगा क्या भाई?

वीरू – यार जय, अगर अपने ढाबे में एक बार भी खोल दें तो…

जय – हाँ अब कही न तूने अपने मतलब की बात| ग्राहकों का तो पता नहीं पर तू बेचने से ज्यादा तो पी जाएगा और फिर तेरे बखेड़े कौन संभालेगा भाई? तू रोज़ पिटेगा बसन्ती से| नाम न लियो पीने का शादी के बाद|

वीरू -अबे तूने मुझे पियक्कड़ समझा है क्या| यार दारु में बहुत मुनाफ़ा है|

जय- लाइसेंस कौन देगा तुझे? पुलिस रिकार्ड देखा है अपना? इमरजेंसी चालू है भाई सीधा अन्दर जाएगा|

वीरू – चल अभी ठाकुर के पास चलते हैं कि गब्बर सिंह को पकड़ कर ठाकुर के हवाले करने के बाद हमें ज़िंदगी में फिर से बसने के लिए उन्हें हमारा रिकार्ड भी साफ़ करना पड़ेगा| ढाबे और बार का लाइसेंस दिलवाना पड़ेगा|

जय – अबे रात हो गयी है| अब गया न तो वो बर्फ जैसी ठंडी आवाज में बोलेगा – कहो कुछ काम था? कल चलेंगे सुबह|

वीरू – हाँ यार उसकी आवाज सुनकर उससे बात करने में डर तो लगता है| उससे कहेंगे कि हमारे ढाबे का उद्घाटन उसके हाथों हो जाए तो बेहतर!

जय – ठाकुर के हाथों? पगला गया है क्या| रामलाल से कहके तुरंत हमारे भेजे में गोली लगवा देगा ठाकुर|

वीरू – मेरा मतलब था अगर ठाकुर हमारे ढाबे के खोलने के मौके पर, वो क्या कहते हैं उसे, मुख्य अतिथि, बन कर आ जाए तो बढ़िया रहेगा|

जय – हाँ ये तो है, उससे ज्यादा रसूख वाला कोई नहीं आसपास के एरिया में|

वीरू – यार जय, कल तेरी और राधा की बात भी चला ही दें ठाकुर से| डरना क्या है?

जय- तू रहने दे मैं खुद कर लूँगा अपनी बात| मैं तू और बसन्ती तो अनपढ़ ठहरे| राधा को अपने बिजनेस का बही खाता संभालने के काम में लगा लेंगे|

वीरू – हाँ ये ठीक रहेगा| कल को हमारे बच्चे होंगे, तुम लोगों के भी होंगे, उनकी पढ़ाई लिखी सब राधा को ही देखनी पड़ेगी|

जय- सही है वीरू, तूने तो ज़िंदगी सेट कर दी यार| चल अब सो जा, कल हरिया की खोज खबर भी लेनी है सुसरा हथियार लेकर आ रहा है गब्बर को देने|

वीरू – चिंता न कर जय, जला कर राख कर देंगे गब्बर का अड्डा कल|


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