हृषिदा के साथ अमिताभ बच्चन का जुड़ाव बहुत ही सफल और फलदायी रहा है| अमिताभ को जो एक अच्छा कलाकार होने का सम्मान, उनके पैन इण्डिया सुपर स्टार होने से इतर मिला उसमें सबसे बड़ी भूमिका हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्मों में निभाई गई भूमिकाओं का सबसे बड़ा हिस्सा है| अगर गुड्डी और गोलमाल में मेहमान भूमिका और बावर्ची में शुरुआत में उनके द्वारा अपनी वाणी द्वारा निभाई गई सूत्रधार की भूमिका को छोड़ दें तो इन दोनों महान कलाकारों ने मिलकर 8 शानदार फिल्में दी हैं और इनमें से प्रत्येक फिल्म में इन दोनों ने कुछ असाधारण रचा ही रचा है। हृषिदा ने हमेशा अमिताभ बच्चन के लिए एक अलग और दिलचस्प किरदार गढ़ा और अमिताभ ने भी उन्हें कभी निराश नहीं किया है बल्कि उन्होंने हमेशा अपने समर्पित अभिनय से फिल्मों के स्तर को ऊपर उठाया है। एक-दूसरे के साथ उनका सफर बेहद दिलचस्प सफर है क्योंकि यह साथ बहुत स्वाभाविक तरीके से आगे बढ़ा है और हृषिदा की फिल्में करते हुए अमिताभ साधारण से बड़े अभिनेता के तौर पर आगे बढे हैं| हृषिदा का साथ और निर्देशन अमिताभ के लिए क्रमिक विकास की सीढ़ी रहा है|

(1) आनंद (1971):

आनंद राजेश खन्ना की फ़िल्म है और आनंद तो परदे पर न रहते हुए भी उपस्थित ही रहता है लेकिन आनंद की सारी चमक अमिताभ को दी गई एक शर्मीले, अंतर्मुखी लेकिन सिद्धांतों वाले व्यक्ति – भास्कर बनर्जी, की भूमिका के कारण ही दर्शकों को दिखाई देती है| भास्कर जो नहीं है, या जो वह नहीं होना चाहता, उसके पीछे चाहे उसके व्यक्तित्व की ही कमियाँ क्यों न हों, वे सब की सब आनंद में खूबियों के रूप में हैं| आनंद और भास्कर 180 डिग्री की सीधी रेखा पर एक दूसरे से उलट खड़े हैं और आनंद के जो प्रयास हैं वे भास्कर को कभी धीरे धीरे और कभीपूरी ताकत से झटके से अपनी ओर खींच कर लाने के हैं| भास्कर के बारे में कोई सटीक आकलन नहीं कर सकता. उसके संपर्क में आने वाले लोग यह राय तो बना सकते हैं कि चूँकि वह कम बोलता है और केवल अपने काम से सरोकार रखता है इसलिए वह एक रूखे किस्म का व्यक्ति है जो अपने चारों ओर बोरियत पैदा करके रखता है, लेकिन फ़िल्म जैसे जैसे आगे बढ़ती है दर्शक स्वंय ही पाता है कि यह एक बाहरी व्यक्ति का अवलोकन है| जैसे जैसे आनंद उसके जीवन में प्रवेश करता जाता है भास्कर भी आनंद की जीवंत ऊर्जा द्वारा सुव्यवस्थित समय के प्रवाह में शामिल हो जाता है। एकांत पसंद करने वाला भास्कर आनंद के साथ बंधन में बंध जाता है। आनंद उसे यह स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है कि उसे एक लड़की पसंद रही है और उसका लेखन की ओर झुकाव है। आनंद भास्कर के भीतर एक नए बाबू मोशाय का अनावरण करता है| आनन्द के कारण ही तो जगत को पता लगता है कि बाहर से इतना कठोर दिखाई देने वाला भास्कर कितना कमजोर, भावुक और संवेदनशील इंसान है| और कौन सा निर्देशक अपनी फ़िल्म के सहनायक के चरित्र को इतना जबरदस्त आर्क देता है? वह भी तब नायक की भूमिका भारत के सबसे बड़े सुपर स्टार अभिनेता राजेश खन्ना निभा रहे हों? पर हृषिदा ये करते हैं और अमिताभ को हिन्दी सिनेमा में एक समर्थ अभिनेता के रूप में खड़ा कर देते हैं और अमिताभ इस अवसर का सौ प्रतिशत लाभ उठाते हैं| वे तब तक सितारा क्या एक कम सफल अभिनेता भी नहीं बने थे इसलिए उनके हरेक दृश्य में सितारे अभिनेता की झलक नहीं बल्कि कुछ करके दिखाने की अभिलाषा लिए हुए युवा अभिनेता की ताजगी दिखाई देती है|

राजेश खन्ना तो ध्रुव तारे सरीखे चमकीले हैं हीं लेकिन भास्कर के जटिल चरित्र को निभाने वाले अमिताभ बच्चन भी दर्शक की अच्छे अभिनय की लालसा को तृप्त कर देते हैं|

आनंद देखने वाला बाबू मोशाय को सारी उम्र नहीं भूल सकता|

निराशा की उस चरम सीमा पर पहुंचे डॉक्टर, जो अपने जीवन के सबसे मूल्यवान मित्र को जीवन के दो पल नहीं दे सकता, उसकी अंतिम घड़ियों में चमत्कार की आशा लिए हुए होमियोपैथी की दवाई लेकर भागकर आये एक एलोपैथी डॉक्टर का चीखना सुनिए, दर्शक उसके साथ दहाड़ें मारकर रोना चाहता है

बातें करो मुझसे….”

और इस चीख से जो अभिनेता उदय हुआ तो बस …

क्या आवाज़ और क्या अभिनय का अंदाज़ !

हृषिदा+अमिताभ बच्चन की आठ भागों वाली संयुक्केत रचनावली के प्रथम अध्याय का अस्तित्व बेहद प्रभावशाली है!

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2) अभिमान (1973) :

हृषिदा ने यहां अमिताभ के लिए स्टार जैसा कोई किरदार नहीं बनाया क्योंकि इससे किरदार की गतिशीलता खत्म हो जाती है। फ़िल्म में वह एक उभरते हुए गायक (सुबीर) से सफल गायक की यात्रा पूरी करता है|

मीत ना मिला रे मन का

गीत गाते समय के आशावाद और ऊर्जा को परदे पर झलकाते हुए अमिताभ को देखिये, किस तन्मयता से वे भूमिका और दृश्य में खो गए हैं!

सुबीर एक गायिका (जया भादुड़ी/बच्चन) से शादी करता है और उसे अपने साथ गाने के लिए लगभग मजबूर कर देता है। उसका अहंकारजनित मनमौजी और स्वहित को ऊपर रखने वाला स्वभाव, सभी कमजोरियां उसके विवाहित जीवन में समस्याएँ पैदा करने वाली हैं। उसका अहंकार इतना बढ़ जाता है कि उसे अपने पुराने दोस्त और सचिव (असरानी) का अपमान करने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सुबीर के चरित्र की जटिलता देखिये उससे मूक प्रेम करने वाली सखी (बिंदू) के सामने उसका अहंकार उसे समर्पण करने से नहीं रोकता। इस फिल्म में हृषिदा द्वारा बहुत यथार्थवादी स्थितियाँ बनाई गईं और उनके सभी कलाकारों ने उनकी दृष्टि को बहुत सक्षम तरीके से पूरा किया और विभिन्न चरित्रों से सुबीर के रिश्ते इतने उतार चढ़ाव वाले रखे गए कि अमिताभ बच्चन को अपने अभिनय की विविधता और गहराई दिखाने का भरपूर मौका मिला और कहने की बात है ही नहीं कि हृषिदा के कुशल नेतृत्व में अमिताभ बच्चन ने अपने चरित्र के विविध रंगों में अपने अभिनय की छटा बिखेरी|

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(3) नमक हराम (1973):

अमिताभ को यहां एक अमीर व्यक्ति विक्की की भूमिका मिलती है, लेकिन बचपन से केवल अमीर और बेहद व्यस्त पिता के साए में बड़ा होते होते वह अपना असली घर अपने गरीब दोस्त शोमू (राजेश खन्ना) के घर को समझता है| गरीब होने के कारण शोमू जीवन की कड़वी सच्चाई और सीमाओं से थोड़ा अधिक परिचित है लेकिन विक्की किसी भी प्रकार की सीमाओं से पूरी तरह से अनभिज्ञ है। पैसे से उसके लिए किसी भी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधा खरीदी जा सकती है और उसकी भावनात्मक ज़रूरतें शोमू, उसकी बहन और माँ द्वारा पूरी की जाती हैं। उसे और क्या चाहिए? वह सोचता है कि जिंदगी ऐसे ही गुजर जाएगी।

जीवन अप्रत्याशित है और एक घटना उसके आसान चल रहे जीवन में उथल-पुथल पैदा कर देती है। वास्तविक दुनिया में व्यावहारिक अनुभव की कमी से उसका अहंकार गहरा आहत होता है और वह इस तथ्य को पचाने में असमर्थ होता है कि उसे अपने कारखाने के एक गरीब कर्मचारी से माफी मांगनी पडी|

अहंकार पोषित अनुभवहीन युवक के अहंकार पर जब चोट लगती है तो उसका चालाक व्यापारी पिता उसे सीख देता है कि इस अपमान को याद रखना, लेकिन विक्की व्यापारी नहीं है न उस ढंग से सोचता है और मानसिक रूप से घायल विक्की की शोमू से मुलाकात में अमिताभ का अभिनय देखने लायक बात है| अपमान पचा पाने में असमर्थ विक्की ने जीवन में पहली बार ही ऐसी स्थिति का सामना किया है, इस समय उसे भावनात्मक सहारा शोमू और उसके परिवार से ही मिल सकता है लेकिन शोमू से मिलने के बाद भी वह शब्दों में अपनी हालत बयान नहीं कर पाता| मूक, अपमानित विक्की की आँखों में भरे आँसू, अमिताभ के सच्चे अभिनय के प्रतिनिधि बनकर ढलकते हैं|

नमकहराम में कम से कम चार ऐसे भावनाओं से भरे दृश्य हैं जिनमें अमिताभ को भावनाओं का विस्फोट होते परदे पर दिखाना था और इन सभी दृश्यों में अपनी उत्कृष्टता दिखाकर अमिताभ ने चारों ओर घोषणा कर दी थी कि दुनिया वालों एक सितारे का हुआ है जनम! अमिताभ बच्चन के पूरे अभिनय करियर में नमक हराम में निभाए गए तीन दृश्यों में किये अभिनय प्रदर्शन तो बेहद अहम हैं।

शोमू की पोल फैक्ट्री वर्कर्स के सामने खुल जाने से वर्कर्स उसे पीट देते हैं और यह सूचना विक्की को मिलती है तो वह सब भूल कर वर्कर बस्ती में पहुँच कर घायल शोमू को देख गुस्से से भर जाता है और बाहर सड़क पर पूरी बस्ती को ललकारता है|

अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण इंसान, अपने गहरे मित्र को घायल देख अन्तर उमड़ते रुआँसेपन , और क्रोध, से फट पडी आवाज़ में ललकारते अमिताभ और बाद में कमरे के भीतर राजेश खन्ना के साथ भावुक मुठभेड़ करते हुए परदे पर देखना दर्शक के अन्दर सिरहन पैदा करके उसे कुछ शानदार देखकर निहाल हो जाने की स्थिति में ले जाता है|

कुछ घटनाओं के कारण विक्की को लगता है कि शोमू उसे धोखा दे रहा है। बाहर से वह शोमू को डांटता है और उसे विश्वासघाती कहता है लेकिन अंदर ही अंदर वह शोमू और उसके परिवार से प्यार करना बंद नहीं कर पाता है।

विक्की शोमू के साथ बहस कर रहा है और बातों में ही उसे पता चलता है कि शोमू की मां और बहन शोमू के नए घर में आ रही हैं, इस सूचना से घबराया और तड़पाया हुआ विक्की शोमू को चेतावनी देता है कि

तेरे मेरे बीच जो हुआ सो हुआ इस बारे में मां को कुछ भी पता चला तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!

एक अन्य दृश्य में विक्की को पता चलता है कि उसके अपने पिता ने शोमू को नुकसान पहुंचाने की हरकत उसके अमीर पिता की थी और वह अपने पिता से भिड़ जाता है ,

अगर किसी माई के लाल ने शोमू पर हाथ उठाया तो …

पिता द्वारा उससे पूछने पर कि उसे धोखा देकर मजदूरों के साथ जाने वाले धोखेबाज के लिए उसके मन में इतना दर्द, एक नमकहराम के लिए …?

विक्की गुस्से से भर जाता है

डैड ये मेरा ज़ाती मामला है, जो कुछ हुआ मेरे और शोमू के बीच हुआ कोई तीसरा उसमें ….

लेकिन एक बात कह देना चाहता हूँ, आज के बाद अगर किसी ने शोमू पर हाथ उठाया तो मैं उसे…

विक्की के गुस्से उसकी कुंठा, उसकी विवशता को उपरोक्त दृश्यों में जैसे अमिताभ ने निभाया है, उसके लिए मुक्त कंठ से की गई सराहना ही की जा सकती है|

और ये गुस्से एंग्री यंग मैन वाले फार्मूला फिल्मों वाले गुस्से नहीं हैं बल्कि एक सिलेसिलवार तरतीब से बसाए गए चरित्र के जीवन की स्थितिवश फूट पडी भावनाओं के अंग हैं|

हृषिदा के निर्देशन में निभाये ऐसे दृश्यों से ही इस बात का पता चलता है कि क्यों अमिताभ हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेताओं में से एक बन गए|


…[राकेश]


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