गीत के नीचे दिये ऑडियो में एक अंतरा ज्यादा है।
…[राकेश]
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गीत के नीचे दिये ऑडियो में एक अंतरा ज्यादा है।
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September 25, 2014 at 5:30 PM
आपके लिखे हुएं मजरूह सुल्तानपुरी का शायराना कलाम “अरे मुझ पे नाज़ वालों ये नया आज़ मन दिया क्यों, है यही करम तुम्हारा तो मुझे न दोगे जीने..” के बारे में मुझे यह लगता हैं कि शायद “नया ज़मन दिया क्यों” where ज़मन = zaman = era, epoch, time, age, earth is the correct usage in the context. Perhaps, someone with access to his writing as published in Urdu for correct literation in Hindi/Roman and meaningcan sustantiate. I do feel the cultural legacy of Urdu shaayari in Hindustani cinema need rigourous academic preservation. What do you think?
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September 27, 2014 at 7:11 AM
अतुल जी, इस गीत के सन्दर्भ में आपका कहना सही हो सकता है| गीत सुनकर इसके बोंल लिखे थे क्योंकि नेट पर हर जगह इस गीत के बोंल गलत ही लिखे पाए जाते हैं|
मसलन इस पंक्ति को देखें [कभी उस परी का है कुछ, कभी इस हसीं की महफ़िल ] जो कि होना चाहिए [ कभी उस परी का कूचा…]
ऐसे ही जिन शब्दों पर आपका ध्यान गया है हर जगह यह लिखा पाया जाता है – [अरे मुझपे नाज़ वालों, ये नयाज़मन्दियां क्यों] गीत और नायक की सिचेशन के हिसाब से “ये नया आज मन दिया क्यों ” भी सही लगा था| zaman का आइडिया था नहीं| यह सही भी लगता है| कुछ जानकारों से पूछताछ करने की कोशिश करता हूँ| शुक्रिया!
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September 27, 2014 at 7:12 AM
हिंदी फ़िल्मी गीतों में उर्दू शायरी के उपयोग के सही सरंक्षण के बारे में आपका कहना दुरुस्त है| हिंदी का ही ह्रास हुआ है तो उर्दू के शब्द समझने का ह्रास तो ज्यादा होगा ही|
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September 30, 2014 at 1:18 AM
अतुल जी,
ज्ञाताओं से “नयाज़मन्दियां” के दो अर्थ मिले हैं , एक है जरूरत (Need) और दूसरा है “कृपा/मेहरबानी”
अरे मुझपे नाज़ वालों, ये नयाज़मन्दियां क्यों = अरे मुझ पर गर्व करने वालों, मुझ पर ये मेहरबानियाँ क्यों?
दूसरी पंक्ति (है यही करम तुम्हारा तो मुझे न दोगे जीने) से जुड़कर पहली में अर्थ दिखाई देता है|
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