kahinbekhyalऐसा कोई भारतीय संगीत प्रेमी ढ़ूँढ़े से न मिल पायेगा जो देव आनंद अभिनीत तीन देवियाँ फिल्म के, मो. रफी की नाजुक और मखमली गायिकी से सजे इस गीत को सुने और इसे पसंद न करे। इस गीत को पहली बार सुनने वाले और रफी के गानों को दीवानगी की हद तक पसंद करने वाले, दोनों तरह के श्रोताओं के लिये यह रफी के गाये दस पसंदीदा गीतों में शुमार होगा या हो जायेगा।

रफी ने यूँ तो हर संगीत निर्देशक में गीत गाये हैं और नौशाद, शंकर जयकिशन और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ तो उनकी जोड़ी बहुत ज्यादा सराही जाती है। वे दिलीप कुमार, बिश्वजीत, धर्मेन्द्र, शम्मी कपूर, जॉय मुकर्जी, और राजेंद्र कुमार आदि सितारों की आवाज माने जाते रहे हैं। पर इन तथ्यों के थोड़ी सी ही पीछे रहने वाली सच्चाई यह भी है कि रफी द्वारा गाये गये बेहतरीन गानों में से कुछ गीत उन्हे देव आनंद की फिल्मों में मिले हैं और ज्यादातर ऐसे गीत सचिन देव बर्मन ने संगीतबद्ध किये हैं (हम दोनों में जयदेव के संगीत को छोड़कर)। देव आनंद के लिये गाये गये बहुत सारे गीत रफी के शीर्ष गीतों में आते हैं। उन्ही बहुत सारे गीतों में से एक है तीन देवियाँ फिल्म का यह गीत – कहीं बेख्याल होकर यूँ ही छू लिया किसी ने…।

गीत की पृष्ठभूमि में ऐसा है कि युवा कवि देव (देव आनंद) प्रसिद्धि छूने के कगार पर खड़ा है। उसकी पहली किताब हाल ही में छपी है और हिट है। निम्न मध्य वर्गीय नंदा (नंदा), धनी अभिनेत्री कल्पना (कल्पना) और लखपति समाजसेविका सिमी/राधा (सिमी ग्रेवाल), तीनों ही युवतियाँ देव से प्रेम करती हैं। सिमी, देव को शोहरत और सफलता की ऊँचाइयों पर ले जाने के लिये प्रतिबद्ध है और इसी सिलसिले में उसे कश्मीर में हो रहे अखिल भारतीय मुशायरे में शिरकत कराने के लिये लेकर आयी है।

देव को पता है कि तीनों युवतियाँ उससे प्रेम करने लगी हैं पर उसे यह पक्का नहीं पता है कि वह किस युवती से प्रेम करता है। वह तीनों को पसंद करता है। तीनों से उसे लगाव भी है। तीनों से उसकी अच्छी दोस्ती है। तीनों के साथ समय व्यतीत करना उसे अच्छा लगता है पर उसका दिल अभी तक उसे यह नहीं बता पाया है कि उसे सच्चा प्रेम तीनों में से किस युवती के साथ है?

देव एक खुशमिजाज़ और दोस्ताना रुख रखने वाला युवक है, जिसके पास कुछ कर दिखाने के सपने हैं, काव्य रचने की प्रतिभा है।

जब देव तिराहे पर खड़ा है और स्थितियाँ उस स्तर पर पहुँच गयी हैं जहाँ उसे निर्णय लेना ही लेना है इन तीन युवतियों में से किसी एक से प्रेम के इज़हार करने के प्रति, तब वह कश्मीर आया है।

गीत के सृजन में बरती गयी पूर्णता की बानगी ऐसी है कि चूँकि यह गीत कश्मीर में सम्पन्न हो रहे मुशायरे में प्रस्तुत हो रहा है सो रफी द्वारा गीत के बोल गुनगुनाने से पहले पश्तो रबाब से निकली धुन गीत के बोलों के लिये एक वातावरण तैयार कर देती है।

कहीं बेख्याल होकर यूँ ही छू लिया किसी ने
कई ख्वाब देख डाले यहाँ मेरी बेखुदी ने

मजरुह सुल्तानपुरी की कलम का जादू देखिये। उनके रचे शब्द किस खूबसूरती से देव के मन की भावनाओं का चिट्ठा लिख देते हैं!

देव को पता भी नहीं चला कि कब युवतियाँ उसके दिल में घर कर गयीं और उसके अंदर उमंगे जगा गयीं।

मेरे दिल में कौन है तू के हुआ जहाँ अंधेरा
वहीं सौ दिये जलाये तेरे रुख की चाँदनी ने

देव को सहारा मिलता है इन युवतियों के साथ रहने से। उनका साथ जीवन में आने वाली मुश्किलों से लड़ने का हौसला देव को देता है। उसे बस यही पता नहीं है कि क्या किसी एक विशेष युवती के प्रेम के कारण ऐसा होता है या तीनों ही उसे रचनात्मक और आशावान बनाये रखने में सहायक हैं।


कभी उस परी का कूचा कभी इस हसीं की महफिल
मुझे दरबदर फिराया मेरे दिल की सादगी ने

देव का अपना खुले दिल वाला व्यक्त्तिव, जो किसी को भी नाराज नहीं करना चाहता, प्रेम के मामले में उसकी भ्रमात्मक स्थिति के पीछे का एक बहुत बड़ा कारण है। वह आसानी से लुभाया जा सकता है। वह आसानी से दोस्त बन जाता है। नजदीक हो जाता है लोगों के। सामाजिक रुप से यह बहुत अच्छा है पर नारी से प्रेम के मामले में यही खुलापन और सादगीपन परेशानी खड़ी कर रहा है।

है भला सा नाम उसका मैं अभी से क्या बताऊँ
किया बेकरार अक्सर मुझे एक आदमी ने

देव को खुद ही नहीं पता कि उसे किस नारी से सच्चा और गहरा प्रेम है? उसे इतना पता है कि हाँ उसके दिल में भी प्रेम पनप रहा है और निरंतर विकास कर रहा है पर प्रेमी की ठीक ठीक शक्ल उसके दिल ने उसे दिखायी नहीं है।

रेडियो के द्वारा उसके गीत का रस कलकत्ता और बम्बई में बैठी कल्पना और नंदा भी ले रही हैं। सिमी, नंदा और कल्पना तीनों ही खुद को गीत में मौजूद अजनबी मान रही हैं।

अरे मुझ पे नाज़ वालों ये नयाज़मंदियां क्यों
है यही करम तुम्हारा तो मुझे न दोगे जीने
कई ख्वाब देख डाले यहाँ मेरी बेखुदी ने
कहीं बेख्याल होकर…

तीन तीन दिशाओं से मिल रहा प्रेम ही उसकी परेशानी नहीं बन रहा बल्कि अपने व्यक्तित्व और प्रतिभा के कारण वह बहुत सारी नारियों की पसंदगी का लक्ष्य बनता जा रहा है और अब यह सब उसे परेशान करने लगा है। या तो वह एक उन्मुक्त्त जीवन जिये या वह किसी एक के साथ प्रेम की भावनाओं को घनीभूत करे।

अपनी काव्य प्रतिभा के प्रति उसकी निष्ठा गंभीर है और वह ऐसा जीवन नहीं जीना चाहता जहाँ उसकी रचनात्मकता खो जाये।

उसके संशय को मजरुह सुल्तानपुरी द्वारा रचित गीत बहुत ही प्रभावी ढ़ंग से प्रदर्शित करता है। एस.डी.बर्मन का संगीत संयोजन, रफी की गायिकी और देव आनंद का अभिनय इस गीत को बेहद खूबसूरत और विशिष्ट बनाते हैं।

इस गीत की अत्मा को देव आनंद बखूबी परदे पर प्रदर्शित कर पाते हैं। देव खुद को मिल रहे प्रेम और अपने अंदर पनप रहे प्रेम, दोनों का आनंद भी उठा रहा है पर साथ ही साथ प्रेम की इस बहुलतावादी प्रकृति के वास्तविक खतरों से भी रुबरु हो रहा है। मुशायरे जैसे सार्वजनिक कार्यक्रम में वह अपने निजी भाव बहुत खुले रुप में प्रदर्शित नहीं कर सकता अतः हल्के अंदाज़ में ही उसके मनोभाव बाहर आते आते रुक जाते हैं। कभी देव अपने अंदर खो जाता है और कभी दर्शकों के अस्तित्व का ख्याल से चेतन होकर महफिल में वापिस आ जाता है। सिमी और बाकी लोगों को देव के अंदर चल रहे द्वंदों का पता नहीं है और वे उसके चुम्बकीय व्यक्तित्व, उसकी नशीली गायिकी और उसके रचनात्मक बोलों के रस से सराबोर हो रहे हैं।

इस गीत के नशे से बचना मुमकिन नहीं लगता।

गीत के नीचे दिये ऑडियो में एक अंतरा ज्यादा है।

…[राकेश]

Advertisement