अंतरे जैसे मुखड़े से शुरू होकर गीत में तीन अंतरे और हों तो यह तो स्पष्ट ही है कि 2009 में प्रदर्शित फ़िल्म – चिंटूजी में इस गीत का अस्तित्व ऐसे ही समय काटने के लिए नहीं है, बल्कि गीत का फ़िल्म में मुख्य कथा के साथ अन्तर्निहित संबंध है और गीत कथा को आगे बढाने वाला संगीतमयी हिस्सा है| न ही यह गीत लयबद्ध तुकबंदी ही है जहाँ एक या छोटे से दो पंक्तियों के अंतरों से ही बार बार मुखड़े की पहली पंक्ति को गा कर गीत को बीट्स की ध्वनि पर ऊपर उछाला जाता है|

यश भारद्वाज द्वारा लिखे गए गीत के बोल तो आकर्षक हैं ही, रूप कुमार राठौड़ और मधुश्री ने गीत को मध्यम स्वरों में गाकर एक आकर्षक मधुरता प्रदान की है| 2009 में इस तरह के गीत, जो सुनने वाले के कानों पर आक्रमण न करें और जिनकी बीट्स उसके ह्रदय पर आघात न करे बल्कि जिनकी मधुरता उनके दिल में समाये, कम ही बनते थे| अभिषेक इश्तियाक ने इसे एक मधुर रोमांटिक दोगाने के रूप में संगीतबद्ध किया है|

निर्देशक रंजीत कपूर ने जैसा फिल्मांकन इसे दिया है उससे ही पता लग जाता है कि नाटकों के संसार से फ़िल्मी संसार में आये निर्देशक के जीवन में संगीत की पैठ बहुत गहराई तक है और एक सम्पूर्ण कल्पना के अंतर्गत इस गीत को फिल्माया गया है|

मोटरसाइकिल पर चलने वाले चरित्र सपने में भी हवाईजहाज से सीधे यूरोप के देशों की पहाड़ियों में गीत गाने नहीं पहुँच जाते हैं| फिल्म में गाँव- हडबहेड़ी, की लोकेशन जिस क्षेत्र की दिखाई या बताई गयी है उसी के आसपास के पर्वतीय इलाकों में नायक नायिका घूमते हुए इस गीत के माध्यम से अपने भावों का प्रदर्शन करते हैं और उन लम्हों में गीत के बोलों के अनुसार जीवन को जीते हैं|

हिमाचल प्रदेश की छोटी छोटी पहाडी जगहों की स्थानीयता उभर कर गीत में आती है, चाहे वह पहाड़ों, नदियों, और नदी के तट पर बने डेल्टा और विशाल झील की प्राकृतिक सुन्दरता हो या स्थानीय बाज़ार की छवि और रास्ते में पड़ने वाली कुछ उंचाई पर बना कोई छोटा सा मंदिर, जहां से आते जाते वहां वास कर रहे देव के दर्शन कर उन्हें प्रणाम करने के विधान का पालन करने की परम्परा हो|

स्त्री में यह गुण होता है कि वह क्षण में ठहर सकती है, स्थिर रह सकती है, अपनी सकारात्मक उर्जामई उपस्थिति से आसपास के वातावरण को अच्छे भावों से भर सकती है, अपने शोख चुलबुलेपन से माहौल को खुशनुमा बना सकती है, और अगर अपने पसंदीदा साथी के साथ है जिसके प्रति उसके दिल में जीवन साथ बिठाये जाने के भाव हैं तो वह पल में अपने इर्द गिर्द एक रोमांटिक वातावरण रच सकती है|

कुलजीत रंधावा की सिनेमाई उपस्थिति के माध्यम से रंजीत कपूर एक ही गीत में यह सब दिखा जाते हैं और एक साधारण से दिखाई देने वाले रोमांटिक गीत के हर फ्रेम को अर्थों से भर देते हैं| लॉन्ग और वाइड एंगल शॉट्स के माध्यम से प्राकृतिक खूबसूरती को परदे पर बिखेरते हुए सहसा कैमरा नायक नायिका की आँखों और चेहरों के क्लोज-अप शॉट्स पर पहुँचता रहता है और उनके वर्तमान के भावों को दर्शक तक पहुंचाता रहता है| कभी नायक नायिका स्पष्ट रूप से ओठों से गाकर गीत की किसी पंक्ति को जीते हैं तो ज्यादातर गीत पार्श्व में उपस्थित रहता है और वे एक दूसरे की उपस्थिति से उनके बीच पल पल बदल रही स्थितियों को जीकर उन्हें दर्शकों तक पहुंचाते रहते हैं|

चाय हमारे जीवन की ऐसा पेय बन चुका है जिसे अकेले में व्यक्ति अपने अकेलेपन के बावजूद भी आनन्दित होकर पी सकता है और किसी दूसरे के साथ है तो उस साथ को और आनंददायक बनाने के लिए उस दूसरे व्यक्ति के साथ भी पी सकता है| चाय पीना भावों को ऋणात्मक से धनात्मक रूप डे पाने में सक्षम पेय प्रक्रिया है और यह धनात्मक भावों को और ज्यादा प्रसन्नता से भर जाने वाली प्रक्रिया भी है|

गीत कई बार नायक नायिका को अलग अलग पडावों पर चाय पीते हुए दिखता है, कभी नायक चाय लेकर आता है तो कभी नायिका, कभी वे खंडहरों में थर्मस में लाइ चाय पते हैं तो कभी पहाडी स्थल पर सड़क किनारे बनी चाय की टपरी के बाहर बैंच पर बैठ कर चाय पीते हैं|

नायक कुछ अनमना है, और अपने जीवन की किन्हीं चिंताओं में खोया हुआ है| नायिका का महज  साथ होना भी उसे चिंता के इस भंवर से बाहर नहीं निकाल पा रहा है| और तब उसके अन्दर से भाव उठते हैं|   

चलो ज़िंदगी को फिर से पुकारें

दो लम्हें सुकूं के फिर से गुजारें

चाय के बहाने, चाय के बहाने

वह नायिका के प्रति अंदुरनी भाव रखता है पर शायद उससे अपने स्नेह का प्रदर्शन कह कर नहीं कर पाया| उसके स्पर्श और गीत के माध्यम से उसके वर्तमान के भाव को समझ कर नायिका उसके प्रति अधिक जागरूक होती है|

कहाँ खो गयी हैं वो प्यारी सी बातें

सोने से दिन और चांदी सी रातें

चलो चल के ढूंढें बातें पुरानी

मिल जाये शायद कोई तो निशानी

बचपन को ढूंढें नदिया किनारे

के दो लम्हें सुकूं के मिल के गुजारें

चाय के बहाने, चाय के बहाने

नायिका को नायक एक प्रेमी के रूप में स्वीकृत है, वह उसे चिंता करने की अवस्था से बाहर निकाल कर वर्तमान में ही स्थित और स्थिर करना चाहती है और इसके लिए वह अपने व्यक्तव का सारा आकर्षण, अपना चुलबुलापन उपयोग में लाती है| उसके क़दमों के साथ चलने का प्रयास कर उसे छेड़ती भी है और बच्चों के साथ उनकी दुनिया में घुलकर बैठ गए नायक के साथ वही करती है जो वह बच्चों के साथ कर रहां है और उसे आश्वस्त करती है कि वह उसका ख्याल रखेगी|

अपने प्रेम का स्पष्ट प्रदर्शन कर वह उसे अपने संग प्रेम में आ जाने का प्रस्ताव देती है|

अपना समझ ले मुझे पास बुला ले

थोड़े से लम्हें मिलन के चुरा ले

ये बादल, ये पर्वत ये नदिया की धारा

अपनी तरफ है सबका इशारा

चलो बढ़ के हम भी इनको पुकारें

दो लम्हें सुकूं के मिल के गुजारें

चाय के बहाने, चाय के बहाने

जब नायक पूर्णतया वर्तमान में आ जाता है, नायिका संग प्रेम में होने के भाव को स्वीकार और प्रदर्शित करके प्रत्युत्तर में नायिका के प्रेम का साथ पा जाता है तो वह इस साथ से जीवन में आ सकने वाली मजबूती को प्रदर्शित करता है|

नहीं कोई तुमसा है अब तो सहारा

भटकी लहर को मिला है किनारा

अपने हैं ये पल और अपने रहेंगे

सुख हो या दुख हम मिल के सहेंगे

बढ़ते कदम न रुकेंगे हमारे

चाय के बहाने, चाय के बहाने

अभी तक दोनों के अलग अलग कपों/ग्लासों में चाय पीते रहने के क्रम को विराम मिलता है, एक ही ग्लास से चाय पीने के संयुक्त उपक्रम से!

अंतरार्ष्ट्रीय चाय दिवस” पर हिंदी सिनेमा में चाय ही जिस गीत में छाई हुयी हो उससे बेहतर क्या गीत होगा|

निर्देशक रंजीत कपूर ने एक टीवी धारावाहिक बनाया था जिसका शीर्षक “चाय के बहाने” था, उसी के शीर्षक गीत को चिंटूजी में एक सुयोग्य जगह पर एक रोमांटिक गीत के रूप में उपयोग में लिया गया है|

                                          …[राकेश]

https://youtu.be/O5pT75yd7c0?si=gqBlgMkiZTQF2rnS

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