भारत की अतिलोकप्रिय फ़िल्म “शोले” में गब्बर सिंह द्वारा उनके परिवार पर आतंकी हमले के कुछ अरसा बाद बदले की भावना से पीड़ित व परिजनों के सामूहिक क़त्ल के दुःख से कुंठित ठाकुर बलदेव सिंह अपनी सर्द आवाज़ में कहते हैं – “लोहे को लोहा काटता है“|

शल्य चिकित्सा के लिए चाकू की आवश्यकता होती ही है| कई बार माहौल ऐसा हो जाता है कि बेहद स्पष्ट सोच और दृष्टिकोण वाले लोग भी चाहिए होते हैं ताकि निर्णय लेते समय दिमाग पर भ्रम के बदल न छा जाएँ|

जब देश की सेनाएं जान की बाजी लगाकर दुश्मन की साजिशों से भिड़ रही होती हैं तब उन्हें देश में अपने प्रति एक उत्साहजनक वातावरण चाहिए होता है जहाँ उनके शौर्य और पराक्रम दिखाने की क्षमता पर जन विश्वास बिना किसी किन्तु परन्तु के रिमझिम बरसात की तरह चारों ओर बरसता हो| देश के अन्दर सरकार को भी युद्ध के हालात जैसी नाजुक घड़ियों में विपक्ष और जनता से समर्थन चाहिए होता है, युद्ध समाप्त हो जाए, कठिन घड़ियाँ निबट जाएँ तब विपक्ष और उसके/उनके (अगर विपक्ष खुद ही कई दलों में विभाजित हो) समर्थकों के पास भरपूर मौके होते हैं सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव संसद में लाने के, और सड़कों पर सरकार के विरोध में माहौल बनाने में| अगर विपक्ष और, उनके समर्थक मीडिया एवं जनता के धड़े तीन चार सप्ताह भी नहीं रुक सकते तो उनमें राजनीतिक परिपक्वता और धैर्य की भारी कमी होती है|

भारत पाकिस्तान के मध्य रिश्ते बेहद जटिल हैं| सीधे सीधे युद्ध का तरीका पाकिस्तान ने 1971 में करारी हार पाने के बाद बदल दिया और उसने भारत को दीमक की तरह खाने की नीतियों पर काम करते हुए देश में अंदुरनी आतंकवाद फ़ैलाने और बाहर से आतंकवादी हमले करवाने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया|

एक समय पिछली सदी के अंतिम दशक में बाल ठाकरे अकेली ऐसी राजनीतिक शक्ति थे जो कहते थे कि पाकिस्तान की आतंक फैलाने की हरकतें और भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ शांति स्थापित करने के प्रयास एक साथ नहीं चल सकते| तब तत्कालीन सत्ता पक्ष द्वारा बाल ठाकरे को शान्ति भंग करने वाला राजनीतिक तत्व माना और सिद्ध किया जाता था| जबकि वे भारतपाक के मध्य एक एकदम स्पष्ट नीति के निर्माण की बात कर रहे थे|

बाल ठाकरे क्रिकेट के बड़े प्रशंसक थे और शारजाह में हुए एक फाइनल मैच में जावेद मियाँदाद ने चेतन शर्मा की आख़िरी गेंद पर छक्का लगाकर पाकिस्तान की टीम को कप जिता दिया| बाल ठाकरे ने बाद में जावेद मियाँदाद के मुंबई आने पर उनसे अपने घर पर मुलाक़ात की|

कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद फैलाने से नाराज़ बाल ठाकरे ने मांग की कि भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच के संबंध समाप्त होने चाहियें| उनका तर्क था कि आतंकवाद को समर्थन और खेल-मेल एक साथ नहीं चल सकते| भारत की तत्कालीन सरकार ने क्रिकेट श्रंखला रद्द न की तो शिव सैनिकों ने वानखेड़े स्टेडियम की पिच खोद डाली और अंततः बीसीआईआई को भारतपाक श्रंखला रद्द करनी ही पडी|

अभी ऑपरेशन सिन्दूर के समय जिस तरह से पाकिस्तानी क्रिकेटर पाकिस्तान में जलूस निकाल रहे हैं, पाकिस्तानी कलाकार ऑपरेशन सिन्दूर को गलत बता कर सोशल मीडिया रंग रहे हैं, अगर बाल ठाकरे होते तो भारतीय सेना और भारत सरकार (किसी दल की सरकार होती) को सबसे सुदृढ़ समर्थन देश के अन्दर उनसे ही मिलता|

बाल ठाकरे निस्संदेह कुछ मांगे जरुर रखते :-

1) बॉलीवुड/हिंदी/भारतीय सिनेमा पाकिस्तानी कलाकरों का बहिष्कार करे| वे शायद एक कदम और आगे निकल कर मांग रखते कि जिन फिल्मों में इन्होने विगत में काम किया है (जैसे फवाद खान और माहिर खान, जो खुल कर भारत के विरोध में बयान जारी कर रहे हैं) उन फिल्मों से इनके दृश्य काटे जाएँ|

2) भारतपाकिस्तान के साथ खेलों के संबंध समाप्त करे और पाकिस्तान के खिलाड़ियों के आई पी एल जैसी व्यवसायिक प्रतियोगिताओं में भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगे|

3) जिन्हें पाकिस्तान के साथ शांति स्थापित करनी है, वैसे लोग, पाकिस्तान पर दबाव डालकर उससे आतंकवाद के विरोध में माहौल बनवाएं और पाकिस्तान की ओर से शांति के क़दमों को उठ्वायें और अगर ऐसा करने की कुव्वत उनमें नहीं है तो भारत में अपने अपने घरों में शान्ति से बैठें| ज्यादा बोलना भी ध्वनि प्रदुषण फैलाता है|

4) भारत पाकिस्तान के साथ सारे राजनयिक और व्यापारिक रिश्ते समाप्त करे|

पिछले 30-40 साल का भारतपाक संबंधों का संयुक्त इतिहास यही बताता है कि भारत की नीति पाकिस्तान के सन्दर्भ में बेहद सॉफ्ट रही है और इसने भारत के हितों को चोट पहुंचाई है| भारत तो स्वभाव से ही पड़ोसी देशों के साथ सद्भावपूर्ण संबंध बनाए रखने वाला देश है लेकिन अगर कोई देश लगातार बार बार भारत पर हिंसात्मक आक्रमण करे तो भारत को उस देश के लिए एक अलग नीति का निर्माण करना चाहिए जिसकी समीक्षा लगातार होती रहनी चाहिए और पाकिस्तान जैसा बर्ताव भारत के साथ करे उसे बस उतनी ही ढील देनी चाहिए|

पाकिस्तान आतंकवाद को आश्रय देने वाला देश सिद्ध हो चुका है| उसके बड़े बड़े राजनीतिक और सैन्य नाम इसे ऑन कैमरा स्वीकार कर चुके हैं कि अपने पश्चिमी आकाओं के कहने पर उसने डर्टी जॉब्स किये| पाकिस्तान में बड़े बड़े आतंकी संगठनों के सरगना और लड़ाके रहते आये हैं यह भी सिद्ध हो चुका है वह उन्हें कहीं की आज़ादी के परवाने भले कहता रहे इस पर दुनिया में किसी को विश्वास नहीं होगा|

भारत को बहुत बड़ी बड़ी हानियाँ अभी तक पकिस्तान के कारण उठानी पडी हैं और अब समय है कि भारत पाकिस्तान के प्रति एक स्पष्ट और कठोर नीति बनाकर उसकी सार्वजनिक घोषणा करे| जैसे पाकिस्तान चले जाने वाले लोगों की भारत में छुटी हुयी संपत्ति को विधिक रूप में भी शत्रु संपत्ति की श्रेणी में माना जाता है उसी तरह जब तक पाकिस्तान आतंकवाद की राह से हटाता नहीं और उसे ऐसा करते हुए कम से कम पांच साल न हो जाएँ, पाकिस्तान से संबंध रखने वाले भारतीयों को भी शत्रु श्रेणी में रखा जाना चाहिए|

बाल ठाकरे तो अब नहीं है लेकिन पाकिस्तान के प्रति उनके विचारों जैसी नीति बनाना भारत के हितों के पक्ष में होगा|

कभी भारत-पाक के मध्य तनाव के दिनों में पाकिस्तान के तानाशाह शासक जनरल जिया उल हक बिना बुलाये अपने आप ही भारत में क्रिकेट मैच देखने आ गए थे और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भलमनसाहत के ऊपर अपनी शातिराना चालों से डिप्लोमेटिक जीत हासिल कर गए| ऐसे दिन अब फाख्ता हो जाने चाहियें|

नो मीन्स नो” के अंदाज़ में भारत को पाकिस्तान से हर तरह के संबंध (राजनयिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, खेल, साहित्यिक) तोड़ने की आवश्यकता है| जब पाकिस्तान सुधर जाए और इस सुधार काल की उम्र कम से कम पांच साल हो जाये तब भारत अपनी पाक संबंधी नीति की समीक्षा करे और आगे के लिए निर्णय ले|

इतना तो दुनिया में सभी जानते हैं कि जिस घड़े में छिद्र हो उसे भरा नहीं जा सकता और भारत-पाक सद्भाव के घड़े में पाक-समर्थित एवं जनित आतंकवाद नामक छिद्र के रहते यह घड़ा भर नहीं सकता| भारत को इस घड़े से ही दूरी बनानी होगी|


Discover more from Cine Manthan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.