फुल्ल कमल, गोद नवल,
मोद नवल, गेहूं में विनोद नवल !
बाल नवल, लाल नवल,
दीपक में ज्वाल नवल !
दूध नवल, पूत नवल,
वंश में विभूति नवल !
नवल दृश्य, नवल दृष्टि,
जीवन का नव भविष्य,
जीवन की नवल सृष्टि|
जिस वंश विभूति के इस संसार में आने की ख़ुशी में यह पक्तियां रची गयीं, वो और कोई नहीं, इस सहस्त्राब्दी के महानायक कहलाने वाले महान कलाकार अमिताभ बच्चन जी ही हैं, और इन पंक्तियों को रचने वाले स्वयं इस नवल सृष्टि के जनक, स्व. श्री हरिवंश राय बच्चन जी थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य जगत को अपनी लेखनी से महिमा मंडित किया|
अपने कवि पिता की किसी प्रभावशाली कविता सा ही प्रभावी जीवन पाया है, अमिताभ बच्चन ने, जिसकी प्रत्येक पंक्ति पर दाद देने को दिल करता है. पंक्ति दर पंक्ति यह कविता और मुखर, और तेजोमय होती जाती है. हिंदी सिने इतिहास के शिखर पुरुष के रूप में पहचाने जाने वाले अमिताभ बच्चन सही मायनों में “वन मैन इंडस्ट्री” थे, जिनमें अपने स्वयं के बूते पर किसी भी फिल्म को सफलता के चरम पर पहुंचा देने की अपार क्षमता थी. उनकी इन क्षमताओं का सही आकलन करने में फिल्म जगत को कुछ समय अवश्य लगा, पर हीरा तो फिर हीरा ही होता है. उसकी चमक, उसकी दीप्ति, नुमायाँ होकर ही रहती है. अपनी पहली ही फिल्म “सात हिन्दुस्तानी” के लिए सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जित करने वाले अमिताभ को उनकी सही पहचान मिली फिल्म जंज़ीर से, जिसने उन्हें, अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले युवा नायक के रूप में स्थापित किया. उनकी इस छवि को बनाने में फिल्म जंज़ीर के लेखक द्वय सलीम – जावेद का अहम् योगदान रहा. इसी कड़ी की शोले, शक्ति, त्रिशूल, शहंशाह, दीवार और कुली जैसी अन्य फिल्मों ने इस “एंग्री यंग मैन” को प्रसिद्धि के उस शिखर पर पहुंचा दिया, जिस तक पहुँचने का सपना हर वो कलाकार संजोता है, जो इस माया नगरी में अपना भाग्य आज़माने आता है.
इस “एंग्री यंग मैन” के पीछे छुपे एक संजीदा और संवेदनशील कलाकार को, आनंद, अभिमान, नमक हराम, चुपके – चुपके, मिली, कभी कभी और आलाप जैसी फिल्मों के माध्यम से दर्शकों से रूबरू होने का मौका मिला, और मानवीय संवेदनाओं को परदे पर जीवंत कर देने वाले उनके अभिनय ने एक बार फिर दर्शकों को सम्मोहित सा कर दिया. वास्तव में अमिताभ जी, अपनी अभिनय यात्रा के दौरान, भिन्न भिन्न रूप धर कर दर्शकों के सामने आते रहे और हर रूप में वे कहीं भी कमतर नज़र नहीं आये. उन्होंने अपनी फिल्मों में नायक को, उसकी परंपरागत छवि से अलग नायक-सह-हास्य कलाकार के रूप में भी प्रस्तुत किया और “अमर, अकबर, एन्थोनी“, याराना, नमक हलाल, सत्ते पे सत्ता और नसीब जैसी फिल्मों के माध्यम से हिंदी फिल्मों को एक नयी पहचान दी. 1992 में फिल्मों से कुछ समय का अवकाश लेने के पश्चात् अमिताभ जी ने अपनी दूसरी पारी का आगाज़ 1996 में एक बदली हुयी छवि के साथ किया. अपनी दूसरी पारी में चरित्र कलाकार का किरदार निभाने वाला यह कलाकार फिर भी अपनी हर फिल्म का मुख्य पात्र ही बना रहा|
अमिताभ बच्चन जी की विशेषता उनका सहज अभिनय और उनकी गहन गंभीर आवाज़ हैं. उनकी आवाज़ उनका परिचय है, और ऑंखें बंद कर सुनने पर भी इस आवाज़ को पहचानने में कभी भूल नहीं हो सकती. सिनेमा के साथ साथ टीवी चैनल से भी जुड़े अमिताभ जी “कौन बनेगा करोडपति” जैसे मशहूर गेम शो के प्रस्तुतकर्ता हैं, और इस कार्यक्रम की सफलता में 90% हिस्सेदारी अमिताभ जी की ही है और उन्ही की बदौलत यह कार्यक्रम इस क़दर मशहूर हुआ है. अमिताभ जी ने जो भी किया, बस ऐसा किया, कि दर्शक अश-अश कर उठे| अमिताभ — यह नाम उनके लिए रखा था, उनके पिता के अभिन्न मित्र और कवि सुमित्रानंदन पन्त जी ने, और कहा था कि यह ऐसी ज्योति है, जो कभी नहीं बुझेगी, यह ऐसी आभा है, जो कभी मंद न पड़ेगी. सचमुच ही अमित जी ने अपने नाम को सही मायनों में सार्थक कर दिखाया|
अपने कवि पिता के सबसे बड़े प्रशंसक अमिताभ बच्चन यदा-कदा, उनकी कविताओं का सस्वर पाठ करते सुने जा सकते हैं. उनकी सबसे पसंदीदा कविता, जिस पर आधारित फिल्म “अग्निपथ” अपने समय की उनकी सफलतम फिल्म थी, पेश है –
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !
वृक्ष हो भले खड़े ! हों, घने, हों बड़े !
एक पत्र छांह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत !
तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी,कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ।
यह महान दृश्य है-चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ।
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !
प्रस्तुति : अजीत सिधु (Facebook Profile Ajit Sidhu)
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