पुस्तकें पढने के साथ संगीत सुनना भी ओशो की पसंदीदा रुचियों में से एक रहा| बचपन में कई साल उन्होंने स्वंय बांसुरीवादन किया, लेकिन अपने एक प्रिय मित्र के नदी में डूब जाने के बाद उन्होंने बांसुरी को भी नदी में प्रवाहित कर दिया| ओशो ने शास्त्रीय संगीत खूब सुना| ओशो के अपने कहे अनुसार उनके तीन गुरुओं में से अंतिम गुरु मस्तो ने उन्हें संगीत से जोड़ा| मेहर के बाबा अलाऊद्दीन खान को सुनने वे उनके ठिकाने पर अक्सर चले जाया करते थे| उन्होंने इस बात को भी कहा है कि पंडित हरी प्रसाद चौरसिया उन्हें बांसुरी सुनाने आ जाते थे|

पूना के प्रथम आवास काल में ओशो के किसी जानकार ने उन्हें एक टेप दिया जिस पर निर्मला देवी लिखा था| ओशो ने यह नाम पहले न सुना था और अन्य संगीत के टेपों के सामने इसे सुनना सदैव टलता रहा| ओशो के शब्दों में –

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“एक गीत जो मेरे पास है…निर्मला देवी ने गाया है| भारत में बहुत सालों तक मैं इस नाम के बारे में जानकारी पाने का प्रयास करता रहा, क्योंकि मैं उनके और गीत सुनना चाहता था| लेकिन मुझे कोई जानकारी न मिली| न जाने गायिका कहाँ गायब हो गयी| मुझे यह भी याद नहीं कि किसने मुझे टेप भेजा था| दुनिया भर से लोग मुझे टेप भेजते रहते हैं, जब मुझे समय मिलता है मैं सुन लेता हूँ| यह गीत मेरे पास सात साल ऐसे ही रखा रहा और मैं इसे सुन नहीं पाया| निर्मला देवी, यह नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना था| जब भी टेप मेरे सामने आता मैं उसे पीछे रख देता कि बाद में किसी और दिन इसे सुनूंगा|

एक दिन मैंने सोचा,” बेचारी गायिका ने बहुत साल प्रतीक्षा की है| आज इसे सुना जा सकता है| शायद इसके गायन में कुछ विशेष हो ही| क्या समस्या है, इसे सुनना चाहिए|”

मैंने सुना और पाया कि निर्मला देवी की गायिकी बेहद सुन्दर है| उसके बाद ऐसा एक भी दिन नहीं गया जब मैंने उस गीत को न सुना हो| प्रत्येक बार सुनने पर मुझे कुछ नया ही उस गीत में मिलता है, एक नया अर्थ, एक नई परत, न केवल गीत में बल्कि गायन में भी, आवाज़ में इतनी सूक्ष्म बातें छिपी हैं|

उस सरल से गीत में गूढ़ अर्थ छिपे हैं| निर्मला देवी ने गीत में गया है- मुझे तैयार होने दो| गीत में कहा नहीं गया लेकिन वह मृत्यु से बात कर रही है – बस थोड़ी सी प्रतीक्षा और, मुझे अंतिम गीत गा लेने दो|

यह विचार, मृत्यु से कहने का – थोड़ी सी प्रतीक्षा करो मुझे अंतिम गीत गा लेने दो…मैंने उदासी और दुःख में जीवन बिताया है, इससे पहले कि मैं तुम्हारे साथ चलूँ मुझे थोडा नाच लेने दो, मैं कब से रोती रही हूँ, मेरी सारी साड़ी मेरे आंसुओं से भीग चुकी है, कम से कम मुझे अपनी मुस्कान को संजोने दो, उसे याद ही करने दो, थोडा समय दो… मैं तैयारी तो कर लूं, तुम्हारे संग चल पड़ने की| अपनी इस दुखियारी अवस्था में मैं कैसे चल दूं तुम्हारे साथ, मैं तुम्हारे साथ मुस्कुराते हुए, गाते हुए, नाचते हुए जाना चाहती हूँ|”

एक सरल गीत, लेकिन कितना अर्थपूर्ण!

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ओशो ने हिंदी फ़िल्म संसार के अपने शिष्यों से इस बारे में बात की होती तो शायद उन्हें निर्मला देवी के बारे में जानकारी मिल जाती और शायद निर्मला देवी, जो उस समय भारत में कई जगह शास्त्रीय संगीत समारोहों में गायन प्रस्तुत कर रही थीं, पूना आश्रम में भी कार्यक्रम प्रस्तुत कर सकती थीं| लेकिन यह संभव न हो पाया| उनके बारे में निश्चित पता करना इसलिए भी जटिल रहा होगा कि कहीं उनका नाम निर्मला देवी दिया गया और लाइव कार्यक्रमों में वे निर्मला अरुण नाम से गाती रहीं|

निर्मला देवी , अभिनेता गोविंदा की माताजी हैं, और पिछली सदी के 40 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय और गायन किया| वे अपने पति, गोविन्दा के पिता – अरुण कुमार आहूजा के साथ कई फिल्मों में नायिका बनीं| निर्मला देवी बनारस के प्रसिद्द तबला वादक वासुदेव प्रसाद सिंह की पुत्री है, और तबला वादक लच्छू महाराज (लक्ष्मण प्रसाद सिंह) की बहन थीं| लच्छू महाराज की प्रसिद्धि बांसुरी वादन में भी रही|

कुछ साल पहले तक निर्मला देवी के गीत इंटरनेट पर नहीं मिलते थे| फिर एकबारगी सारेगामा के सौजन्य से उनके कई गीत संगीत रसिकों के लिए उपलब्ध हो गए| गोविंदा ने यूट्यूब पर अपना चैनल शुरू किया तो वहां भी शायद निर्मला देवी के कुछ गीत अपलोड हुए थे|

यह आश्चर्य का विषय है कि गोविंदा अपनी माँ की गायन प्रतिभा और उपलब्धियों की ज्यादा बात नहीं करते| गोविंदा में गायन प्रतिभा माँ के गायन से ही आयी है| यह तो संगीत की तनिक भी जानकारी रखने वाला और सुरीले संगीत को सुनने और पहचानने की दक्षता रखने वाला संगीत रसिक तुरंत जान ही लेगा कि बेग़म अख्तर की गुरु बहन, पटिलाया घराने की गायिका निर्मला देवी भारत के बहुत बड़े शास्त्रीय गायकों में से एक रही हैं| शास्त्रीय गायन में प्रसिद्धि पाने वाली अन्य गायिकाओं से वे एक रत्ती भी कहीं से कमजोर नहीं सुनाई देतीं| भले व्यावसायिक प्रस्तुतीकरण में उन्हें उतनी प्रसिद्धी जीतेजी न मिली हो लेकिन उनकी गायन कला का वही स्थान है जो किसी भी प्रसिद्द गायिका के गायन का है|

मिठास और खनक उनकी गायन की आवाज़ की विशेषता है| वे उच्च स्वरों में भी उतनी ही मिठास कायम रख पाती जितना नीचे और माध्यम स्वरों में| उनकी गायिकी की रेंज, दादरा, ठुमरी, ग़ज़ल, भजन और गीत, के विभिन्न स्वरूपों तक विस्तृत दिखाई देती है|

गोविंदा को शायद यह भी ज्ञात न होगा कि कभी उनकी माँ और उनके गायन की खोज में ओशो बेहद उत्सुक रहे| निर्मला देवी की जड़ों के हिसाब से देखा जाए तो गोविंदा जैसी धनी विरासत हिंदी सिनेमा में किसी के पास नहीं| गोविंदा अपनी माँ की फोटो कॉपी ही नहीं दिखाई देते हैं बल्कि उन्होंने अपनी माँ न के हाव भाव भी भरपूर अपनाये हैं| माँ के चेहरे को झटका देकर बोलने का अंदाज़ गोविंदा की कॉमेडी में एक विशेषता बन कर उभरी है|

दूरदर्शन ने निर्मला देवी का साक्षात्कार एक कार्यक्रम (शाम-ए-ग़ज़ल) के साथ कई दशक पहले रिकॉर्ड किया, जिसे सौभाग्य से सुरक्षित रखा गया| दूरदर्शन सहयाद्री ने 4 साल पहले इस कार्यक्रम को यूट्यूब पर साझा किया है|

निर्मला देवी की एक शानदार ठुमरी – लाखों के बोल सहे सितमगर तेरे लिए

निर्मला देवी और लक्ष्मी शंकर का संयुक्त गायन – सावन बीता जाए

हृषिकेश मुकर्जी की प्रसिद्द फ़िल्म बावर्ची में निर्मला देवी ने निर्मला अरुण नाम से गायिकी में योगदान दिया| अमिताभ बच्चन ने इस फ़िल्म के शुरू में फ़िल्म बनाने में सम्मिलित टीम के सभी सदस्यों के नाम बोल कर दर्शकों को बताये थे और वे निर्मला अरुण नाम कहते हैं| उन्हें भी शायद ही यह ज्ञात हो कि उन्होंने गोविंदा की माँ का नाम इस फ़िल्म में लिया था|

गोविंदा को अपनी माँ – निर्मला देवी के नाम को सही स्थान पर प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है|

…[राकेश]


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