लेखक निर्देशक बाबू राम इशारा की बहुचर्चित व कुख्यात फ़िल्म चेतना में कैमरे के विशिष्ट प्रयोग किये गए, जिन्होंने दर्शकों के सम्मुख भ्रम उत्पन्न किये, सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने भी भ्रम को सच मान इसे “A” श्रेणी में सर्टिफाइड किया|
इसके क्लोज़अप शॉट्स भी प्रयोगधर्मी रहे| इसके प्रसिद्द गीत-मैं तो हर मोड़ पर, के दुखी संस्करण में गीत गाते नायक के पास लेटी हुयी नायिका की आँख में उभर आये लाल धागे तक कैमरा दिखाता है, नायक के दुःख से दुखी मरणासन्न नायिका की आँख की कोर पर एक आंसू की बूँद नज़र आती है, फिर उसका आकार बड़ा हो जाता है और अंततः वह आँख की कोर का साथ छोड़ नीचे ढलक जाती है|
आँख से आंसू ढलकने की यह यात्रा इतनी नजदीकी से दिखाई जाती है कि दर्शक दृश्यात्मक प्रभाव के घेरे में आ ही जायेगा और समझने वाले दर्शक को समझ आ ही जायेगा कि सिनेमा की भाषा दृश्यात्मक ही होती है और उसे निर्देशक और कैमरा संभाल रहे व्यक्ति की जोड़ी की साझा कलाकारी पर निर्भर रहना पड़ता है|
लेकिन चेतना में सिनेमेटोग्राफी की कमान संभाली किसने? आईएमडीबी, विकीपीडिया जैसे आंकड़ों को उपलब्ध कराने वाले वैबपेज इस मामले में सहायता न कर पायेंगे|
यूट्यूब पर फ़िल्म के शुरुआती क्रेडिट्स देखना चाहेंगे तो Goldmines Redefining Entertainment की सील लगा पूरी फ़िल्म का विडियो मिलेगा जिसे Goldmines Bollywood नामक यूट्यूब चैनल पर प्रदर्शित किया गया है| इसमें कई जगह ऑडियो गायब है अतः इनके पास फ़िल्म के अधिकृत राइट्स नहीं हैं|
चेतना फ़िल्म के राइट्स नितिन फिल्म्स या आर एस शुक्ला फिल्म्स के पास होंगे जो इसके प्रस्तुतकर्ता और निर्माता थे|
इस यूट्यूब वाले प्रिंट से भी आश्चर्यजनक रूप से कैमरा निर्देशक का नाम गायब है| इस फ़िल्म को सिनेमाघर में जिन्होंने देखा होगा और जो रिकॉर्ड रखते हैं उनके पास इसका उल्लेख मिल सकता है कि इसमें कैमरे की कमान किसने संभाली थी?
चेतना को डीवीडी के माध्यम से देखा था, खोजने पर मिली नहीं, वर्ना पता चल जाता कि डीवीडी संस्करण में किसे कैमरे के निर्देशन का क्रेडिट दिया गया है?
धुंधली सी स्मृति कहती है कि शायद सुदर्शन नाग इसके कैमरा निर्देशक थे, जिन्होंने बी आर इशारा की मिलाप में भी कैमरे का दायित्व संभाला था|
यह एक रोचक बात है कि बी आर इशारा की शुरुआती कई फिल्मों से कैमरे का दायित्व संभालने वाले तकनीकी कलाकार का नाम गायब है| शायद कम बजट वाली अपनी फिल्मों में वे स्वयं ही कैमरा निर्देशक का काम भी संभालते हों और इसलिए केवल सहायक कैमरामैन के नाम ही क्रेडिट्स में दिखाई देते हैं| लेकिन इस स्थिति में उन्हें स्वयं को ही कैमरा निर्देशन का क्रेडिट देना चाहिए था|
ऐसी सब बातें इस ओर भी इशारा करती हैं कि फ़िल्म बनाने वाले लोग भी इस बाबत गंभीर नहीं रहते थे कि कलाकारों को सही क्रेडिट्स दिए जाएँ| यह सिनेमा को एक भिन्न विषय के रूप में लेने के प्रति अगंभीर रुख को ही दर्शाता है|
…[राकेश]
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