‘सूरज की पहली किरण से आशा का सवेरा जागे’ जीनियस किशोर कुमार द्वारा रचित पंक्ति गागर में सागर भरने की उक्ति को चिरतार्थ कर देती है| धरा पर मानव जीवन पर छाए “कोविड-19” के गहरे धुंध भरे साये तले सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक अफरातफरी के माहौल में हक्के-बक्के खड़े भारतीय मनुष्यों के भय से सीधे-सीधे दो- दो हाथ करने और जीवन में आशा का संचार करने के लिए गुलज़ार, जो गाहे -बेगाहे सभी को अपने काव्य की मार्फत मार्ग दिखाते रहते हैं, मार्ग पर प्रकाश फेंकते रहते हैं जिससे इच्छुक सुयोग्य व्यक्ति बढ़ कर आगे जा सकें, सूरज, जो पृथ्वी पर जीवन की एक कुंजी है, की स्तुति लेकर सामने आए| वैदिक ऋषियों की भांति गुलज़ार ने इस स्तुति को गढ़ा है| अगर कोरोना से मानव सभ्यता जीत नहीं पाती या इस जीत को पाने में समय ज्यादा लग जाने के कारण मानव जीवन की बहुत बड़ी क्षति हो जाती है तो ऐसी स्तुतियाँ ही मानव जीवन की प्रतिनिधि कवितायें कहलाएंगी| विज्ञान आधारित तमाम विकास किसी काम के शायद न रह पाएँ| सरल जीवन ही आधारभूत बन जाएगा|
अँधेरा मांगने आया था रौशनी की भीख हम अपना घर न जलाते तो और क्या करतेसूरज, जीवन में आशा की किरण आदि न हों तो अंधेरे से, दुःख से पार पाने के लिए घर जला कर ही जीवन जिया जाता है फिर| पृथ्वी पर मानव न हो तो संभवतः ये बहुत खूबसूरत ग्रह बन जाये लेकिन तब उस खूबसूरती को पहचान कर उसका विविध कलाओं में वर्णन करने वाली मनुष्य जाति न होगी| खूबसूरती बस होगी, उसे खूबसूरत नामक शब्द देने वाला भी कोई जीव जन्तु यहाँ उपस्थित न होगा| प्रकृति संभवतः इस स्थिति को पसंद न करे| कोई उसकी रचना का आनंद न उठाए, उसे न समझे तो वह क्यों कर निर्माण करेगी? गुलज़ार, सूरज और धरा के अंतर्निहित संबंध और उनकी खूबसूरती को स्वीकारते लिखते हैं
धूप आने दो मीठी-मीठी है, बहुत खूबसूरत है उजली रौशन है ज़मीं, गुड़ की ढ़ेली है‘हमने देखी हैं उन आँखों की महकती खुशबू’ के रचियता गुलज़ार के रचना संसार से परिचित लोग जानते हैं कि मानव इंद्रियों के अहसासों में वे कोई भेद नहीं करते, उनके रचनात्मक संसार में जो देखा जा सकता है उसकी गंध भी हो सकती है, उसका स्पर्श भी संभव है, उसका स्वाद भी होता है और उसकी एक ध्वनि भी होती है| उनकी ऐसी रचनाएँ परमहंस श्रेणी की हैं जहां सब एक ही तत्व से निर्मित है कहीं कोई विभेद नहीं, कोई विभक्ति नहीं| यह वैज्ञानिक भी है जहां अंततः ऊर्जा और पदार्थ के मध्य भेद विलुप्त हो जाता है| धूप और ज़मीं दोनों खूबसूरत भी हो सकते हैं और मिठास से भरे भी| धूप की मिठास तो अनुभव करने का भाव है, अगर कोई कर सकता है तो कर ही लेगा जो व्याख्या में उलझ जाएगा उसे रत्ती भर भी अनुभव न हो पाएगा| और ज़मीं की मिठास तो धरा पर उत्पन्न विभिन्न कंद-मूल, साग-सब्जी, फलादि और विभिन्न प्रकार की फसलों और भूजल की मिठास से स्पष्ट ही है| सूरज की किरणों से उजले ज़मीं के टुकड़े का बहुत बड़ा महत्व है| इसकी झलक एक बीमार को अच्छा कर सकती है| निराशा को आशा में बादल सकती है| किसी चित्रकार को एक अनूठा चित्र बनाने की प्रेरणा मिल सकती है इसे देख| एक कवि मोहक काव्य रच सकता है इसे देख कर प्रफुल्लित होकर। सूरज से हम मानवों का नाता संकट काल में और बढ़ जाता है| नोरा जोन्स का Sunrise गीत हो या बीटल्स का गीत – Here Comes the Sun, हो, सूरज से हम प्रेरणा पाते ही रहेंगे|
गहरी सी ज़हरी हवा उतरी है इस पर लगे ना घुन इसे हट कर ज़रा सी देर तो ठहरो धूप आने दो! धूप आने दो!हवा से परागण का विस्तार ही मानव के लिए प्राकृतिक है| कोविड-19 जैसी जानलेवा बीमारी के विषाणु भी इस हवा के माध्यम से वायुमंडल में तैरते फिरेंगे और हवा को जहरीली बना देंगे तो मनुष्य क्या करेगा? दो महीने पहले ऐसी संभावना थी कि जैसे जैसे गर्मी बढ़ेगी विषाणु का असर कम हो जाएगा| ऐसा नहीं हुआ लेकिन इस विषाणु के विरुद्ध इस असफलता के बावजूद मानव जीवन में धूप का महत्व कम नहीं होता| धूप मानव शरीर को भांति भांति की बीमारियों से लड़ने की शक्ति देती है, उसके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है| ज़मीं पर जहरीली हवा घुन न लगा दे इसलिए गुलज़ार लिखते हैं – ‘हट कर ज़रा सी देर तो ठहरो’| सूरज की किरणों को लैंस से सूखी घास फूस या कागज पर केन्द्रित करके आग लगाने का प्रयोग लगभग बड़ा होता हर बच्चा करता है और आनंदित होता है| ऐसे ही सूरज की धूप ज़मीं से घातक जहरीले विषाणु को जला कर भागा दे तो बात बने|
आफ़ताब उठेगा तो किरणों से छानेगा वो गहरी जहरीली हवा में रोशनी भर देगा वोसूरज उदय होगा तो अपनी किरणों के तेज से वायुमंडल की जहरीली हो चुकी परतों को भेद कर उन्हे शुद्ध करता जाएगा| यही सूरज सदियों से करता आया है और इस बार भी देर सबेर ऐसा ही करेगा| वायरस के भय से सहमें लोग घरों में बंद हो गए तो यत्र तत्र सर्वत्र वायु प्रदूषण में गुणात्मक घटोत्तरी स्पष्ट रूप से दिखाई दी| सूरज ने मनुष्य के अलावा पेड़-पौधों और बाकी जीव जंतुओं पक्षियों को प्रकृति का आनंद भरपूर लेने का अवसर दिया| अपने घरों की खिड़कियों और छतों से मनुष्यों ने भी अरसे बाद साफ आसमान के नज़ारे का आनंद लिया| ऐसा ही लगा मानो नए तरीके से जीवन जीने का अध्याय मनुष्य को पढ़ना चाहिए|
मीठी हमारी ज़मीं बीमार न हो हट के बैठो ज़रा हट के ज़रा थोड़ी जगह तो दो धूप आने दोमानव मानव के मध्य भौतिक दूरी भी एक तरीका है जहरीले विषाणु के प्रसार पर अंकुश लगाने का| हमारी मीठी ज़मीं बीमार न हो इसलिए आपस में दूरी बरतने की समझ विकसित करने की आवश्यकता आन पड़ी है|
…[राकेश]
©
1 Pingback