एक जुआघर में दो महिलाएं प्रविष्ट हुईं। होगी पेरिस की घटना। पहली महिला उत्सुक थी दांव लगाने को|
दूसरी ने कहा कि दांव तो मैं भी लगाना चाहती हूं, लेकिन किस नंबर पर लगाना?
पहली महिला ने कहा: मेरा तो हिसाब हमेशा एक है। अपनी उम्र के ही नंबर पर मैं लगाती हूं। जितनी उम्र, उतने नंबर पर लगाती हूं। और मैं अक्सर जीतती हूं।
दूसरी ने कहा: मैं भी कोशिश करती हूं।
उसने चौबीस नंबर पर दांव लगाया। यंत्र घूमा और छत्तीस पर रुका। वह स्त्री एकदम बेहोश होकर गिर पड़ी।
उसने कहा: हे राम! इस यंत्र को कैसे पता चला कि मेरी उम्र छत्तीस है?
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एक व्यक्ति ने उपन्यास लिखा। उपन्यास तो लिख गया बड़ा पुथंगा, मगर शीर्षक क्या दे, यह उसकी समझ में न आए। मेरे पास आया। उसका पुथंगा देख कर मैं भी डरा। शीर्षक देना हो तो पहले पुथंगा में उतरना पड़े, उसको देखना पड़े कि उसने लिखा क्या है!
मैंने उससे कहा: ऐसा कर भैया, तू मुल्ला नसरुद्दीन के पास चला जा; वे बड़े कुशल हैं।
वह चला गया और पांच ही मिनट बाद लौट आया और कहा कि उन्होंने तो एकदम से नाम बता दिया। हैं कुशल। नाम एकदम से बता दिया।
मैंने कहा: क्या नाम रखा उन्होंने?
उसने कहा कि बड़ा सुंदर नाम रखा है, आकर्षक है, एकदम मन को लुभाए: न ढोल, न नगाड़ा।
मैंने कहा कि यह उसने पता कैसे लगाया?
उसने कहा: कुछ नहीं, मुझसे पूछा कि इसमें ढोल की चर्चा तो नहीं है? मैंने कहा: नहीं। उसने कहा: नगाड़े की चर्चा तो नहीं है? मैंने कहा: नहीं। उसने कहा: बस तो फिर नाम तय हो गया: न ढोल, न नगाड़ा।
अब पढ़ो, बेटा, जिसको भी पढ़ना है, आखिर में पता चलेगा कि न ढोल, न नगाड़ा। कुछ न कुछ तो नाम रखना ही पड़ेगा। तो मैंने कहा: बात तो ठीक है! काम चल जाएगा।
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एक दिन चंदूलाल अपने गुरुदेव मटकानाथ ब्रह्मचारी से कह रहा था कि महात्माजी, मैं तो बड़ी दुविधा में इस समय पड़ा हुआ हूं। मेरी एक प्रेमिका है जो खूबसूरत है, लेकिन अमीर नहीं; दूसरी प्रेमिका के पास पैसा बहुत है, लेकिन है बिलकुल कुरूप। ऐसी कि बस पूछो मत! प्रेतिनी दिखती है। मगर पैसा बहुत है। मुझे समझ नहीं आता कि मैं किससे प्रेम करूं?
महात्मा ने कहा: अरे चंदूलाल, बच्चा इसमें सोचने की क्या बात है? तू तो उस गरीब सुंदरी से ही विवाह कर! पैसा तो हाथ का मैल है। आज है, कल नहीं होगा। और फिर कितना ही हो, एक न एक दिन तो खत्म हो ही जाएगा। तू मेरी सलाह मान! तू तो अपनी खूबसूरत गरीब प्रेमिका को ही जीवनसंगिनी चुन! प्रेम तो परमात्मा है, कह गए महात्मा हैं। बहती गंगा, भइया चंदूलाल, अवसर न चूको! ऐसे शुभ अवसर अनेक जन्मों के शुभ कर्मों के, सदकर्मों के बाद ही मिलते हैं।
चंदूलाल को बात जंची। महात्मा के चरण छू कर धन्यवाद देकर जाने को ही हुआ कि महात्मा मटकानाथ ने कहा कि बच्चा, कम से कम जाते समय उस पैसे वाली अमीर स्त्री का पता तो मुझे देता जा! बहती गंगा, भैया तू स्नान कर, पर कम से कम मुझे भी हाथ धो लेने दे! तू मणि-माणिक्य ले ले, मगर मुझे भी कंकड़-पत्थर तो लेने दे; उनसे तो वंचित न कर!
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एक शाम मुल्ला नसरुद्दीन कब्रिस्तान से गुजर रहा था। उसने देखा कि एक खूबसूरत युवती श्वेत परिधान पहने एक ताजी कब्र को पंखा झल रही है। मुल्ला यह देख रोमांचित हो उठा और उसने कहा कि वाह रे खुदा, कौन कहता है कलयुग आ गया! सतयुग है, अभी भी सतयुग है। ऐसे प्रेमी आज भी दुनिया में हैं। बेचारी कब्र को पंखा झल रही है। मुल्ला की आंखों से तो आनंद के आंसू बहने लगे। एक उसकी पत्नी है कि जिंदा मुल्ला की पिटाई करती है! और एक यह स्त्री है! कौन कहता है स्त्री नरक का द्वार है! कब्र को पंखा झल रही है, हद हो गई, प्रेम की भी हद हो गई। प्रेम और क्या ऊंचाइयां लेगा!
उसने जाकर महिला से कहा कि सुनिए, आपको देख कर मुझे महसूस होता है कि प्रेम अभी भी शेष है और दुनिया का अभी भी भविष्य है; अभी भी आशा छोड़ने का कोई कारण नहीं है। कितने ही मनुष्य गिर गए हों, लेकिन तुम जैसे थोड़े से व्यक्ति भी अगर हैं तो पर्याप्त है। तुम्हीं तो नमक हो पृथ्वी का। मगर क्या मैं पूछ सकता हूं कि आप कब्र पर पंखा क्यों झल रही हैं? अरे, जाने वाला तो जा चुका, अब कब्र को पंखा झलने से क्या होगा?
युवती बोली कि बात यह है जनाब, कि कब्रिस्तान के बाहर मेरा प्रेमी मेरा इंतजार कर रहा है। और मेरे पति ने कहा था कि जब तक मेरी कब्र सूख न जाए, तुम किसी से विवाह मत करना, नहीं तो मुझे बहुत दुख होगा। अतः कब्र को जल्दी सुखाने के लिए पंखा झल रही हूं।
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एक यात्री पश्चिम से भारत आया हुआ था, किसी साधु की तलाश में। हिमालय गया। और कहां जाए! खबर मिली कि एक साधु बहुत प्राचीन; सात सौ वर्ष तो उसकी उम्र है। बड़ा प्रभावित हुआ। पहुंचा। देख कर लगा कि ज्यादा से ज्यादा साठ साल का होगा। बहुत हो तो सत्तर। सात सौ साल! पाश्चात्य वैज्ञानिक बुद्धि को यह बात समझ में आई नहीं। मगर भीड़ में बड़ा उत्सव चल रहा है, चरणों पर पैसे चढ़ाए जा रहे हैं, पूजा-आरती उतर रही है, उसने कहा कि पूछूं भी तो किससे पूछूं? खोज-बीन करके उसके पता लगाया कि एक आदमी इसकी सेवा करता है, वह इसके पास कई वर्षों से है। उसको पकड़ा एकांत में।
उससे कहा कि भैया, एक बात पूछनी है, सच में तेरे गुरु की उम्र सात सौ वर्ष है?
उसने कहा: भाई, मैं कुछ कह नहीं सकता, मैं तो केवल तीन सौ साल से उनके साथ हूं। तीन सौ साल तक की बात मैं कर सकता हूं, उसके आगे का मुझे पता नहीं! मगर जब मैं आया था तब भी वे ऐसे ही लगते थे जैसे अब लगते हैं।
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~ झरत दसहुं दिस मोती (Osho)
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