“तुमने उस रात को आकाश के तारों तले धरती की उस सुनसान राह पर उस औरत को नहीं अपनाया था, जिससे तुम कह रहे हो तुमने प्रेम किया था”|
नायिका- नंदिनी, इस प्रेम उपन्यास के अंत में नायक-सतेन, से कहती है तो अगर इस उपन्यास के फ़िल्मी रूपांतरण में इस संवाद को निर्देशक शुरू में ही दिखा दे तो दोनों चरित्रों और कथानक में एक रहस्य की नींव पड़ती है|
नंदिनी को कभी भी अपनी भावनाएं प्रदर्शित करने में हिचक का सामना नहीं करना पड़ा है जबकि सतेन के लिए अपनी भावनाएं प्रदर्शित करने का कार्य एक ऊँचे पर्वत पर चढ़ने सरीखा मुश्किल रहा है| –
साहित्य शब्दों के विन्यास पर सवारी करता है और फ़िल्में विम्बों (सुन्दर और असुंदर) के सुरुचिपूर्ण या विकृत संगठन की नींव पर अपना संसार बसाती हैं| साहित्य में पाठक की कल्पना स्वतंत्र रूप से लिखे गए शब्दों को पढने के साथ साथ विचरण करती चलती है लकिन फ़िल्म में निर्देशक पहले ही शब्दों से जन्मी कल्पना को एक दृढ आकार दे चुका होता है और दर्शक या तो उस विम्बीय संरचना से प्रभावित होगा, या ये विम्ब उसके अन्दर ऊब उत्पन्न करेंगे या वह इससे उदासीन रह जाएगा| बहुत क्या अक्सर ही ऐसा देखा जाता है कि बेहद अच्छी और प्रसिद्ध पुस्तक पर बनी फ़िल्में पुस्तक के पाठकों को तो संतुष्ट नहीं एहे कर पातीं, वे फिल्मों के विशुद्ध दर्शकों, जिन्होंने पुस्तक न भी पढी हो, को भी लुभा नहीं पाती| एक निरपेक्ष दर्शक भी पुस्तक पर आधारित फ़िल्म का औसतपन भांप लेता है| अच्छा साहित्य अच्छी फ़िल्में ही रच पायेगा, यह आवश्यक नहीं| बल्कि परिपूर्ण प्रकार की पुस्तकें सदैव अपने पर बनी फिल्मों से ऊपर के स्तर पर बनी रहेंगी, क्योंकि वहां निर्देशक के सम्मुख स्वतंत्रता कम होती है|
वहीं ऐसी पुस्तकें होती हैं जो पढने पर एक पूर्णता को प्राप्त हुयी पुस्तक पढने का भाव नहीं जगाती, और पाठक पढ़ते समय भी और पढने के बाद भी ऐसे भाव से दो चार होता है कि कुछ छुटता जा रहा है, बल्कि कुछ और भी होना चाहिए था| देवदास एक लघु उपन्यास है और उस पर हिन्दी में कम से कम दो महान फ़िल्में बनीं (के एल सहगल अभिनीत और दिलीप कुमार अभिनीत) और कई फ़िल्में इस पुस्तक से प्रेरित होकर बनीं| लेकिन ऐसा निश्चय के साथ नहीं कहा जा सकता कि नदी के द्वीप और कसप जैसे परिपूर्ण प्रेम उपन्यासों पर इन पुस्तकों जैसी ही अच्छी फ़िल्में बनाना संभव भी हो पायेगा क्योंकि जो भी इन महान पुस्तकों को पढता है अपने जीवन भर के लिए इनका प्रशंसक बन जाता है और फ़िल्म पुस्तक की मूल छवि से छेड़छाड़ ही लगेगी|
हिमांशु जोशी के उपन्यास “तुम्हारे लिए” सरीखी लघु उपन्यास किस्म की पुस्तकें फ़िल्म बनाने के लिए ज्यादा अच्छा अवसर प्रदान करती हैं क्योंकि इनमें हरेक बात विस्तृत और गहरे रूप में शामिल नहीं है|
इसी प्रकार का एक लघु उपन्यास है “स्मृति : एक प्रेम की“| कृष्ण खटवाणी का यह आधुनिक सिंधी उपन्यास ( Yad Hik Pyarji) है|
नायक सतेन/सत्येन्द्र कॉलेज के जमाने से ही सहपाठिनी नंदिनी से प्रेम करता है लेकिन अंतर्मुखी सतेन अपने प्रेम के अभिव्यक्ति बोलने वाली या लिख देने वाली भाषा में नहीं कर पाया| ऐसा नहीं कि नंदिनी को अपने प्रति उसकी भावनाओं का आभास न हो पर कभी कोई बहिर्मुखी युवक नंदिनी के लिए सतेन से ज्यादा मुनासिब बना रहा, और कभी जब नंदिनी ने अपरोक्ष रूप से अपने परिवार द्वारा विवाह के लिए दबाव डालने और सतेन के भविष्य के बारे में पूछा तो सतेन ही इस अप्रत्यक्ष अवसर को समझ नहीं पाया और उसे अपने उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका जाने की योजना बता कर और पुनः यह पूछने पर कि लौट कर क्या करोगे, भारत भ्रमण जैसा जवाब देकर दोनों के संयुक्त पारिवारिक संभावनाओं पर पानी डाल आया| उस भेंट से पाठक को समझ आता है कि केवल सतेन ही भ्रम में नहीं रहा कि नंदिनी उसे स्वीकार करेगी या नहीं, बल्कि नंदिनी के लिए भी यह भ्रम की स्थिति थी कि संकोची और अंतर्मुखी सतेन अपने जीवन में नंदिनी की भूमिका के बारे में क्या सोचता है|
सतेन नंदिनी के अपने प्रति व्यवहार को कभी समझ नहीं पाया| उसे आज तक समझ नहीं आया कि 19 साल पहले सहपाठियों की भीड़ में नंदिनी ने सिर्फ उसी का रास्ता रोक कर बीते दिन कक्षा में अनुपस्थित रहने के कारण शेक्सपियर साहित्य पर उसके नोट्स क्यों मांगे? क्यों वह उसके संग इतने निसंकोच भाव से टहलती रही? क्यों उसे मद्रास में अपने घर गर्मियों की छुट्टियों में रहने बुलाया?
सतेन और नंदिनी 15 साल पहले अलग राहों पर चल पड़े थे| इस बार सतेन एक लम्बे अंतराल के बाद नंदिनी से मिलने उसके घर आया है| नंदिनी अपने पति, बेटी और दो भतीजियों संग रहती है| ऐसा नहीं कि विगत 15 वर्षों में सतेन नंदिनी से मिला ही नहीं| एक दो बार बरसों – बरसों के अंतराल पर वह नंदिनी से मिला है और हर मुलाक़ात उनके संबंध को उतना ही अपरिभाषित छोड़ गई है जितना वह तब था जब से संग पढ़ते थे, बहुत सारा समय एक दूसरे के साथ व्यतीत करते थे और नंदिनी का प्रेम संबंध सतेन ही मित्र देवव्रत संग स्थापित हो चुका था| देव के साथ प्रेम संबंध के बावजूद नंदिनी सतेन का वैसा ही ध्यान रखती थी जैसा पहले|
सतेन जैसा अपने को समझता रहा, उससे कहीं ज्यादा वह अपने को उस भाव से ज्यादा समझने की कोशिश करता रहा है कि नंदिनी उसके बारे में क्या सोचती है| पिछले 15 सालों में हर बार वे अलग सामाजिक स्थितियों में मिले हैं|
पिछली बार की भेंट तक सतेन की भी शादी हो चुकी थी, और दो संताने, एक बेटा एक बेटी, भी|
उसके जीवन का कुछ अर्थ उसके नंदिनी के साथ अपरिभाषित से संबंध में बंदी बना हुआ है| वे आपस में ऐसी रस्सी से बंधे रहे हैं जिनमें बहुत गांठें हैं और शायद हर भेंट एक गिरह को खोल देती है|
नंदिनी का पति अनिल भी उन दोनों की नजदीकियों और सतेन के नंदिनी के प्रति प्रेम को जानता है पर वह इस तथ्य में गर्व महसूस करता है कि उसकी पत्नी के कॉलेज़ के जमाने में इतने प्रशसंक थे और उन सबको पछाड़ कर उसने नंदिनी से विवाह करने में सफलता पाई| वह खुले हृदय का खुशमिज़ाज व्यक्ति है|
रात को नंदिनी उसे अपने घर के नीचे सड़क पर छोड़ने आती है और नंदिनी की चाल देखकर सतेन उससे पूछ बैठता है क्या वह दूसरा बच्चा एक्स्पेक्ट कर रही है|
टैक्सी आने तक के समय में सतेन और नंदिनी की बातचीत से वे सब रहस्य खुल दोनों के ऊपर खुल जाते हैं जो उन्होंने अपने मध्य घटने वाली घटनाओं के अपने अपने ऊपर अलग अलग असर लिए हुए अभी तक की ज़िंदगी काटी है|
सतेन और नंदिनी खुल कर एक दूसरे से परस्पर भावनाओं की अभिव्यक्ति क्यों न कर पाए, इसके संकेत उनकी बातचीत से मिलते हैं|
कॉलेज की पढ़ाई के अंतिम दिवस की शाम एक बेहद महत्वपूर्ण भेंट में जब उनका संबंध एक ठोस धरातल पा सकता था,दोनों के एक दूसरे के प्रति संकोच ने उनकी संभावनाओं पर तुषारापात कर दिया था| उसी भेंट के सन्दर्भ में नंदिनी से सतेन 15 साल बाद प्रत्यक्ष कह पाया है कि हाँ, उसने नंदिनी से प्रेम किया था|
नंदिनी उससे कह जाती है,
” तुमने उस रात को आकाश के तारों तले धरती की उस सुनसान राह पर उस औरत को नहीं अपनाया था, जिससे तुम कह रहे हो तुमने प्रेम किया था”|
सतेन आज यह रहस्योद्घाटन सुनकर स्तब्ध है कि उस दिन सतेन को लेकर देव और नंदिनी में एक अंतिम झगडा हुआ था और जो नंदिनी के लिए देव संग उसके संबंध के ताबूत में आख़िरी कील सरीखा था| वह देव को पूरा छोड़कर सतेन के पास आई थी|
दोनों अपने अपने तरीकों से उस शाम को दुबारा जीते हैं और अपने कथनों और दूसरे के कहे का अपने ऊपर असर को साझा करते हैं और तब की स्थितियों को आज पूरा पूरा समझते जाते हैं|
नंदिनी कहती है,
” सतेन, दुनिया में दो इंसान सदा एक दूसरे के लिए अजनबी बने रहे हैं, वे सदा एक दूसरे के लिये अजनबी ही बने रहेंगे”|
जाने के लिए टैक्सी में सतेन बैठा तो उसने विदा के लिए हाथ उठाया, नंदिनी ने भी हाथ उठाया, सतेन ने उससे हाथ मिलाने के लिए हतः आगे बढ़ाना चाहा, नंदिनी ने भी ऐसा ही किया, लेकिन दोनों भूल गए कि टैक्सी की खिड़की के शीशे चढ़े हुए थे, उनके हाथ उस शीशे से टकराकर रह गए|
इस मुलाक़ात के बाद शायद अब उनकी कोई मुलाकात जीवन में संभव न हो| अनसुलझा बहुत कुछ सुलझ गया था| जो नहीं हो पाया उसका अभाव और उससे जनित दुःख अब चिरस्थाई रहने वाला है| पर अब अपेक्षा कुछ बची नहीं|
स्मृतियों के ढेर, मनोविज्ञान और नायक नायिका के मध्य अर्थपूर्ण संवाद इस उपन्यास की विशेषताएं हैं और इसे एक फ़िल्म में रूपांतरित करने के लिए आकर्षक और योग्य उपन्यास बनाते हैं|
सतेन जैसे नायक तो कई फिल्मों में मिल जाते हैं लेकिन नंदिनी जैसी नायिका हिन्दी सिनेमा के लिए एक नए चरित्र को प्रस्तुत करती है| है यह सिंधी साहित्य लेकिन हिन्दी और बंगाली साहित्य में भी यह उतना ही अपना सा लगता| नंदिनी के चरित्र में साहित्यिक और फ़िल्मी दोनों तरह के संसार की तमाम संभावनाएं हैं|
यह एक परिपक्व प्रेम कथा है|
…[राकेश]
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