अष्टावक्र का शरीर 8 जगह से झुका हुआ था इसलिए बचपन से ही उन्हें अष्टावक्र नाम से संबोधित किया जाता था| जब अष्टावक्र केवल 12 वर्ष के थे, तब वे राजर्षि राजा जनक के दरबार में चल रहे शास्त्रार्थ से अपने पिता को बुलाने गये|
जनक के दरबार में बड़े बड़े विद्वान “सत्य” की सच्ची परिभाषा पर तर्क प्रस्तुत करने में मग्न थे कि वहां अष्टावक्र का प्रवेश हुआ और शरीर से विचित्र दिखाई देने वाले किशोर को देख बहुत से विद्वान हंस पड़े|
उनकी हँसी देख कर अष्टावक्र उनसे भी उनसे भी ऊँची आवाज में हंसने लगे| अष्टावक्र को हँसता देख जनक ने पूछा,”बालक, तुम क्यों हंस रहे हो?”
अष्टावक्र ने हँसते हुए ही कहा,
“महाराज, यह देखकर मुझे हंसी आ गयी कि च..रों के सम्मलेन में सत्य पर निर्णय देने की कोशिश हो रही है”|
सभा में सन्नाटा छा गया, विद्वान लोग क्रोध से भर गए|
जनक ने पूछा,” तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है, विस्तार से कहो“|
अष्टावक्र ने गंभीरता से कहा,
“मोचियों की तरह जो केवल खाल ही जानते हैं, यह सभा केवल मेरे विकृत शरीर को देखती है, मुझे नहीं।
क्या मंदिर के वक्र में आकाश वक्र है?
जब घड़ा टूट जाता है तो क्या आसमान टूट जाता है?
मेरा शरीर टेढ़ा है, लेकिन मैं नहीं, ये मोची इस सत्य को नहीं देख सकते।
फिर वे कौन सा सत्य देख सकते हैं?
जनक विद्वान और सचेतन राजा थे| किशोर अष्टावक्र की बातें सुन वे तुरंत अपने सिंहासन से उतरे और अष्टावक्र के चरण छुए, उनसे आसन ग्रहण करके उनसे अपना ज्ञान साझा करने का निवेदन किया|
अष्टावक्र ने जो जनक को उपदेश दिए, उन्हें भारतीय दर्शन में “महागीता” के नाम और सम्मान से सुशोभित किया जाता है|
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खजुराहो के मंदिर
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इन मंदिरों की बाहरी दीवारों पर ही उन्मुक्त यौन मूर्तियों को क्यों उकेरा गया और इन्हें मुख्य भवन के अंदर या मंदिरों के गर्भग्रहों में स्थान क्यों नहीं मिला? एरोटिक शॉप्स की तुलना में यदि खजुराहो के मंदिरों का विषय कामुकता ही था तो वे अंदर भी यौन की अवधारणा क्यों नहीं प्रस्तुत कर रहे हैं?
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1938 में सोहराब मोदी ने एक फ़िल्म बनाई थी जेलर, जिसे कमाल अमारोही ने लिखा था| 1958 में सोहराब मोदी ने इसे दुबारा बनाया| इस फ़िल्म में चेहरे से कुरूप दिखाई देने वाले जेलर को अपनी पत्नी के अपने एक दोस्त के साथ भाग जाने से ऐसा मानसिक झटका लगता है कि वह दुर्दांत हो जाता है, कालांतर में उसके जीवन में एक अंधी लडकी आती है जो उसे परिवर्तित कर देती है| वह उसकी आँखों का इलाज करवाता है| जिस दिन उसकी आँखों से पत्ती हटने वाली है वह उसके सामने नहीं आना चाहता क्योंकि उसे पाता है उसका कुरूप चेहरा देखकर वह उसे अस्वीकार कर देगी, लेकिन लडकी डॉक्टर से निवेदन करती है कि वह सबसे पहले उस इंसान को देखना चाहती है जिसने इतने दिन उसकी देखभाल की, उससे स्नेह किया और उसकी आँखें बनवाईं| आँखें खोलते ही वह जेलर का चेहरा देखकर चिल्ला उठती है लेकिन फिर वह जेलर को अपना लेती है और शारीरिक सौंदर्य से इतर मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की सुन्दरता को देखती है|
सौंदर्य अवधारणा का विश्लेषण हृषिकेश मुकर्जी ने फ़िल्म – आशीर्वाद में किया जिसमें अशोक कुमार चेहरे से सुन्दर नहीं हैं लेकिन गाते बहुत अच्छा हैं|
महमूद ने इसी दर्शन को फ़िल्म – मैं सुन्दर हूँ , में खंगाला|
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1948 में 24 वर्षीय राज कपूर ने अपनी पहली फ़िल्म आग निर्देशित की| शारीरिक और आत्मिक या व्यक्तित्व के सौन्दर्य की तुलना जैसे जटिल विषय पर बनाई फ़िल्म बहुत से कारणों से बहुत दर्शकों का समर्थन नहीं पा सकी| आज़ादी के तुरंत बाद का संघर्षपूर्ण काल भी इसके पीछे एक कारण हो सकता है| पहली फ़िल्म के हिसाब से यह एक बेहतरीन कलात्मक निर्देशकीय प्रयास था|
आग की असफलता से राज कपूर के संवेदनशील कलाकार मन को गहरी ठेस लगी| बाद में बरसात, आवारा और श्री 420 की बड़ी सफलताओं के बीच भी राज कपूर के मन में आग की असफलता और उसकी संकल्पना गहरे में बैठी हुयी थी| उन्हें हमेशा लगता रहा कि ऐसी संकल्पना को कैसे कला के क्षेत्र के दर्शक, समीक्षक नकार सकते हैं, कैसे उस तरफ से अपनी आँखें बंद कर सकते हैं?
प्रेम त्रिकोण (जैसा उन्होंने महबूब खान की अंदाज़ में निभाया और बाद में संगम में स्वंय भी दर्शाया) और शारीरिक सुन्दरता क्या है, जैसे दो विषय उन्हें अन्दर ही अन्दर कुरेदते रहते थे| शारीरिक सुन्दरता के विषय के प्रति उनकी अन्दुरने एकालात्मक आग को हवा मिली 1949 से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी जादुई गायिकी के आधार पर बेहद चर्चित हो चुकी लता मंगेशकर से मिलकर|
राज कपूर लता मंगेशकर की गायिकी के बहुत बड़े प्रशंसक थे| उनकी दूसरी फ़िल्म- बरसात के सारे गीत लता जी ने ही गाये थे और मेरा नाम जोकर के एक दुखद वियोग को छोड़कर स्त्री गायन का अर्थ राज कपूर के लिए लता मंगेशकर का गायन ही रहा|
पचास के दशक के मध्य में ही उन्हें पुनः शारीरिक सुन्दरता बनाम इंसान की सम्पूर्ण सुन्दरता के विषय ने कुरेदना शुरू किया और वे लता मंगेशकर को अपनी फ़िल्म की नायिका बना कर आग फ़िल्म के विषय को स्त्री आधारित विषय में परिवर्तित करके एक बार फिर से एक फ़िल्म बनाना चाहते थे| लेकिन लता मंगेशकर परदे पर अभिनय के लिए तैयार नहीं हुईं और विषय पार्श्व में चला गया और राज कपूर अन्य फिल्मों में व्यस्त हो गए| उनकी फ़िल्में 2-3 साल का वक्त लेती ही थीं बनने में|
इस बीच उनकी फिल्मों की स्थाई नायिका नर्गिस उनके सिनेमाई रचना संसार का साथ छोड़कर जा चुकी थीं और इस अनपेक्षित धक्के से उनके कलाबोध और सौन्दर्यबोध में बदलाव निश्चित तौर पर आये| उनकी फिल्मों की टोन बदल गयी|
मेरा नाम जोकर की बड़ी विफलता ने राज कपूर के कलाकार को बहुत क्षति पहुंचाई|
बॉबी की बम्पर बॉक्स ऑफिस सफलता ने उन्हें अपने मन की फ़िल्म बनाने का अवसर पुनः दिया| उन सालों में वे हृषिकेश मुखर्जी की एक अटक अटक कर बन रही फ़िल्म नौकरी में उस वक्त के सबसे बड़े फ़िल्मी सितारे राजेश खन्ना के साथ काम कर रहे थे, जो कि उनकी फ़िल्म बॉबी की नायिका डिम्पल कपाडिया के पति भी बन चुके थे| राज कपूर राजेश खन्ना को लेकर अपने मनपसंद विषय : शारीरिक सौंदर्य का क्या महत्त्व इंसानी जीवन में है, पर फ़िल्म बनाना चाहते थे| कहानी वे जैनेन्द्र जैन के साथ मिलकर विकसित कर चुके थे| मेरा नाम जोकर तक तो यह निश्चित ही था कि राज कपूर द्वारा निर्देशित फ़िल्म में राज कपूर ही नायक रहेंगे| बॉबी से उनके मंझले बेटे ऋषि कपूर अपनी नायकीय पारी शुरू कर चुके थे लेकिन इस विषय के लिए वे छोटी उम्र के थे और पचास साल पार कर चुके राज कपूर अब नायक की भूमिका निभाने के लिए स्वयं पर विचार भी नहीं करते थे| कपूर परिवार का उनके ऊपर दबाव था कि आर के बैनर्स की उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्म का नायक कोई कपूर ही होना चाहिए इसलिए अंततः फ़िल्म में शशि कपूर को नायक के रूप में निश्चित किया गया जो उन दिनों बहुत व्यस्त रहते थे और एक दिन में कई कई शिफ्टों में काम करते थे|
पूरे फ़िल्म उद्योग में राज कपूर की नई फ़िल्म की नायिका के बारे में उत्सुकता थी कि कौन इतने जटिल विषय में अपने को झोंकेगी| “आग” फ़िल्म का हश्र सबके सामने था लेकिन राज कपूर की फ़िल्म में काम करना एक बहुत बड़ा आकर्षण भी था| नायिका के खोज में राज कपूर और उनके विश्वस्त लोग लगे हुए थे जब एक दिन देव आनंद की सुपर हिट फ़िल्म – हरे कृष्ण हरे राम की सहनायिका जीनत अमान, जो सारे देश में चर्चित हो चुकी थीं, राज कपूर की आने वाली फ़िल्म की नायिका के विषय में कुछ जानकारी जुटाकर उसके चरित्र के अनुरूप अपनी वेशभूषा धारण करके राज कपूर से मिलने पहुँच गयीं| राज कपूर ने तुरंत अपनी पत्नी कृष्णा कपूर के हाथ से जीनत अमान को साइनिंग एमाउंट के तौर पर कुछ दिलवाकर उन्हें अपनी फ़िल्म की नायिका बनाना निश्चित कर दिया और फ़िल्मी पत्रिकाओं में फ़िल्म के विज्ञापन चले गए| फ़िल्म उद्योग, वितरक आदि उत्सुकता से भरे हुए थे कि राज कपूर इस बार क्या लेकर आते हैं|
एक फ़िल्म पत्रिका ने फ़िल्म के सेट से कुछ तस्वीरें चोरी छिपे खींच कर छाप कर फ़िल्म के बारे में सनसनी फैला दी| जीनत अमान के कुछ फोटुओं से देश भर में चर्चाएँ फैलने लगीं| राज कपूर ने उस पत्रिका को कानूनी नोटिस भेज दिया|
फ़िल्म बनी, प्रदर्शित हुयी| जीनत अमान द्वारा किये अंग प्रदर्शन की चर्चा हरेक फ़िल्म पत्रिका की सुर्खी बनी हुयी थी| इस विषय में एक पत्रकार के पूछे जाने पर
राज कपूर ने कहा,”“Let them come to see Zeenat’s body. They will go out remembering my film.”
फ़िल्म की शुरुआत में राज कपूर की आवाज पूछती है,” सुन्दरता क्या है?”
सड़क किनारे पड़े एक पत्थर पर कैमरा फोकस होता है और राज कपूर पूछते हैं,”यह क्या है, एक पत्थर“|
कुछ लोग आकर उस पत्थर को जल से स्नान करा देते हैं, उस पर चन्दन, सिंदूर लगा देते हैं, उस पर पुष्प अर्पित कर देते हैं| अब यह पूजने का निमित्त बन गया| अब यह देवता स्वरूप हो गया| अब उसके बारे में लोगों की धारणा बदल गयी, जबकि उसका मूल स्वरूप वही पत्थर का ही है|
अष्टावक्र या उन जैसों पर जो शारीरिक व्याधियों से ग्रसित हैं, लौटें तो विभिन्न लोगों की उनके प्रति धारणा अलग होगी| उन्हें जन्म देने वाली माता के उनके प्रति विचार और उनके प्रति स्नेह आदि एक अलग कोटि के होंगे| उनके पिता के विचार उनकी माता जैसे या उनसे थोड़े अलग हो सकते हैं, अगर उनके भाई बहन हैं तो उनके भी अष्टावक्र के प्रति विचार अपने ही माता पिता से अलग प्रकार के होंगे|
उनके सहपाठियों के, और जीवन में सामने आने वाले अजनबियों के विचार अलग प्रकार से जन्मेंगे और वहां शारीरिक गठन अपने प्रतिनिधित्व रूप में सामने आएगा, उससे पार जाकर ही कोई उनसे सच्चा संबंध स्थापित कर पायेगा| कोई समान आयु की लडकी उन्हें एक अलग निगाह से देखेगी|
यहाँ सूरज बडजात्या की एक सफल फ़िल्म – विवाह, की चर्चा प्रासंगिक है| फ़िल्म के नायक नायिका का विवाह निश्चित होने से उनके मध्य परस्पर प्रेम संबंध विकसित हो चुका है और अब दोनों बेताबी से विवाह का इन्तजार कर रहे हैं कि एन विवाह वाले दिन अपनी छोटी चचेरी बहन को बचाने के लिए नायिका आग में झुलस जाती है| बरात अभी नायक के घर से चलने की तैयारी में ही है कि इस दुर्घटना की सूचना आती है और बेहद धनी नायक और उसके पिता अस्पताल में पहुँच नायिका के चाचा को निश्चिन्त करते हैं कि देश विदेश के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर्स और सर्जन्स से नायिका का इलाज करवाया जाएगा| नायक नायिका को स्वीकार करता है|
अगर यह दुर्घटना नायक नायिका के पहली बार मिलने से पहले ही हो गयी होती तो क्या नायिका से अनजान नायक, नायिकाओं के तमाम अन्य गुणों के बावजूद, इस शारीरिक बाधा को लांघ कर उसके प्रेम में आ पाता?
अब लगभग सभी को पता होता है कि विटिलिगो त्वचा में मेलेनिन की कमी के कारण होने वाली व्याधि है, यह दूसरे को नहीं लग सकती, लेकिन तब भी पति या पत्नी में से किसी को यह उम्र के किसी पड़ाव पर हो जाए तो क्या उनके आपसी संबंध पहले जैसे ही रहते हैं? रह पाते हैं? कुछ लोगों के रह पाते होंगे, कुछ के नहीं| अतः दोनों प्रकार की संभावनाएं हैं|
चेहरा और शारीरिक सौंदर्य देखकर ही स्त्री पुरुष (आजकल सेम जेंडर वाले संबंध भी) संबंधों में प्रथम आकर्षण पनपता है| एसिड अटैक की शिकार लड़कियों में से कितनों के पूर्व से चले आ रहे प्रेम संबंध टिक पाते हैं? या इस अपराध से गुजरने के बाद कितनी पीड़ित लड़कियों के प्रेम संबंध जीवन में प्रवेश कर पाते हैं|
सबसे आसान काम है फ़िल्म- सत्यम शिवम् सुन्दरम को सिरे से नकार देना कि राज कपूर के काम पीड़ित दिमाग की उपज है फ़िल्म और ज़ीनत अमान के अंग प्रदर्शन के बलबूते फ़िल्म को सफल बनाया गया| इस तरह के विचारों वाले दर्शकों के लिए यह फ़िल्म नहीं है, न बनाई गयी थी|
स्त्री पुरुष अनुपात अगर 1:10 (एक स्त्री और दस पुरुष) हो जाए तो पुरुष के लिए स्त्री सौंदर्य के पैमाने बदल जायेंगे क्योंकि तब स्त्री की उपलब्धता ही सबसे महत्वपूर्ण बात होगी, वह दिखाई कैसी देती है, यह बाद की बात हो जाएगी| तब शारीरिक अपंगता सौंदर्य में वैसी बाधा नहीं बनेगी जितनी 1:1 वाले अनुपात के स्त्री पुरुषों के समाज में बन सकती है, बनती है|
फ़िल्म- सत्यम शिवम् सुन्दरम, का एक उद्देश्य पुरुष दर्शकों के पाखंड को उजागर करता है। कई पुरुष दर्शक ज़ीनत अमान के शारीरिक प्रदर्शन का आनंद लेंगे लेकिन शिकायत करेंगे कि फिल्म में उनके शरीर को बहुत ज्यादा दिखाया गया है।
उनमें से बहुत से लोगों को राज कपूर के उस मजाक का एहसास नहीं है जो वह अपने कैमरे के माध्यम से उनके साथ खेल रहे थे।
फ़िल्म में एक भी शॉट ऐसा नहीं है जहां कैमरा ज़ीनत अमान की शारीरिक सुंदरता की पड़ताल कर रहा हो और उसके तुरंत बाद उसके चेहरे और गर्दन के जले हुए हिस्से का क्लोज़ अप शॉट न हो।
जब दर्शक नायिका के शारीरिक प्रदर्शन के दृश्य का आनंद लेने में खो जाता है, तब अचानक निर्देशक का कैमरा नायिका के चेहरे का जला हुआ हिस्सा दिखाकर दर्शको को वास्तविकता में वापस ले आता है।
कैमरा दर्शकों के सामने चिल्लाता है.
क्या यह जले हुए चेहरे वाली महिला तुम्हारे आकर्षण का केंद्र है?
क्या अब तुम उसे समग्रता में पसंद करोगे ?
क्या तुम उसे वैसे ही स्वीकार करोगे जैसी वह है?
या तुम केवल उसके शरीर के खूबसूरत हिस्सों में रुचि रखते हो ?
क्या तुम ऐसी किसी स्त्री से शादी और प्यार कर सकते हो ?
या फिर आप ऐसे ही किसी से प्यार और शादी कर सकते हैं?
क्या तुम अब भी किसी ऐसे व्यक्ति से प्यार करते रहोगे जिसकी जीवन में बाद में ऐसी स्थिति हो जाए ?
फ़िल्म के शुरू के दो ही मिनटों में राज कपूर , नायिका का एक तरफ से जला हुआ चेहरा और गर्दन दिखा देते हैं| दर्शकों के सामने शुरू से ही यह स्पष्ट है कि नायिका जले हुए चेहरे से प्रताड़ित युवती है| फ़िल्म के नायक को यह बात नहीं पता| लेकिन तब भी अगर दर्शक ज़ीनत अमान का अंग प्रदर्शन ही देख पा रहे हैं तो मामला वाकई मानसिक रूप से गड़बड़ी का है| फ़िल्म का नायक तो अंत में स्वीकार कर लेता है कि वह शारीरिक स्तर पर समझदारी को प्राप्त हो गया है, पर क्या ज़ीनत अमान के शारीरिक सौंदर्य पर ही अटके दर्शक इस समझ को प्राप्त हुए?
मनुष्य की सुंदरता एक व्यक्तिपरक चीज़ है और इसके मानदंड अलग-अलग युगों, अलग-अलग परिस्थितियों में बदलते रहते हैं और वे एक निश्चित समय में मनुष्य की मनोदशा और स्थिति पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं।
ज़ीनत अमान का अंग प्रदर्शन एक बहुत छोटा तत्व है फ़िल्म का, पर फ़िल्म के पीछे छिपा सौंदर्यशास्त्र का दर्शन बहुत बड़ा है|
…[राकेश]
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