गांधी फ़िल्म की विश्व स्तरीय सफलता के बाद के वर्षों में कभी किसी पत्रकार ने बासु भट्टाचार्य से उनके घर जाकर साक्षात्कार लिया था तो उन्होंने रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म – गांधी पर कुछ टिप्पणियाँ करते हुए यह भी कहा था कि यह एक गांधी प्रशंसक द्वारा उनकी प्रशस्ति में बनायी गयी फ़िल्म है| गांधी जैसे विराट व्यक्तित्व के घटनाओं से भरे जीवन से तीन साढ़े तीन घटने की फ़िल्म बनाने लायक सामग्री जुटाने के लिए उनके जीवन के बहुत से पहलुओं को छोड़ना पड़ा और कई घटनाओं को मिलाकर एक औसत निकल कर फ़िल्म में दिखाई घटनाओं की रुपरेखा बनायी गयी होगी ताकि एक ठीक-ठीक सा प्रतिनिधित्व उनके जीवन का परदे पर उतरा जा सके| गांधी जीवन पर विपुल साहित्य उपलब्ध है और उसमें जैसे जैसे गोते व्यक्ति लगाता है गांधी-जीवन और उनके जीवन दर्शन के नए नए पहलू सामने आते हैं| ऐसे में यह भी संभव होता जाता है कि यह दिखाई दे जाता है कि रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म में गांधी जीवन के बहुत से महत्वपूर्ण पहलुओं और घटनाओं को छोड़ दिया गया| एटनबरो ने गांधी जी के इर्द गिर्द बड़े बड़े नेताओं को दिखाने पर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया और इसलिए उनकी फ़िल्म को इतिहास का सही और सच्चा प्रदर्शन मानना इतना आसान नहीं है|

गांधी जी के दो सहयोगियों महादेव देसाई और प्यारेलाल नय्यर, और प्यारेलाल की बहन डॉ सुशीला नय्यर (जिन्होंने गांधी जी के चिकित्सक के रूप में भी उनके साथ काम किया), तीनों ही बहुत सालों तक गांधी जी के बेहद नजदीक रहे लेकिन एक महादेव देसाई की संक्षिप्त सी मौन भूमिका (पकंज कपूर) को छोड़ दें तो तीनों को गांधी फ़िल्म में प्रतिनिधित्व नहीं मिला, जबकि बड़े नेताओं से ज्यादा ये तीनों गांधी जी के जीवन के हरेक पहलू से जुड़े हुए थे|

महादेव देसाई से जुड़े निम्नलिखित घटनाक्रमों से यह सिद्ध भी होता है कि रिचर्ड एटनबरो की गांधी फ़िल्म ने बहुत से महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को छोड़कर या उनमें बदलाव करके बहुत हित नहीं साधा है|

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भारत में ब्रितानी सरकार ने 8 अगस्त 1942 को छेड़े गए भारत छोड़ो आन्दोलन से घबराकर अगले ही दिन 9 अगस्त 1942 को गांधी जी को गिरफ़्तार करके पुणे के बहुत समय से बंद पड़े आगा खान पैलेस में कैद कर दिया| गांधी जी के साथ उनके सचिव महादेव देसाई और सहयोगी मीरा बेन भी रखे गए| 11 अगस्त को कस्तूरबा गांधी और डॉ सुशीला नय्यर को भी वहां पहुंचा दिया गया| कुछ दिन बाद सरोजिनी नायडू भी वहां भेज दी गयीं|

आगा खान पैलेस में बहुत विशाल उद्यान था लेकिन गांधी जी और उनके साथियों के लिए जो 3-4 कमरे खोले गए थे उनके सामने कंटीली तारों से घेर कर एक जगह सीमित कर उन्हें दी गयी जहां गांधी जी घूम लिया करते थे| महल में ऊपर की मंजिल पर अंगरेजी जेलर का निवास स्थापित किया गया| महल बहुत अरसे से बंद पड़ा था और उसके अन्दर मच्छर और मक्खियों की बहुत बड़ी संख्या मनुष्य रहित काल में पनप चुकी थी| महादेव देसाई खाना बनाने के अतिरिक्त गांधी जी की मालिश भी करते और उनके भोजन और सोने के समय मच्छर मक्खियों को उनके पास पहुँचने से रोकने के लिए जतन करते रहते| महादेव देसाईं गांधी जी के बुद्धिजीवी कार्यों में सहायता के अतिरिक्त अन्य सारे शारीरिक कार्य भी करते रहते, जिनमें सब्जी काटना, खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन धोना, आदि इत्यादी सम्मिलित थे| गांधी जी पत्रों तक के लेखन को बार बार सुधारा करते थे| उनके दो उद्देश्य होते थे एक तो भाषा और वाक्य विन्यास बेहद सरल हो जाए, दूसरे लिखे का एक स्पष्ट अर्थ सामने आये| अंतिम मसविदे को महादेव देसाई अपनी बेहद खूबसूरत लिखावट में पन्ने पर लिख डालते थे| आश्रम में तो टाइप राइटर भी था यहाँ हस्तलेखन से ही काम चलाना पड़ता था|

कस्तूरबा को दस्त लगने की शिकायत हुयी तो डॉ सुशीला नय्यर ने एक पर्चे पर मरीज के स्थान पर बा का नाम और चिकित्सक के स्थान पर अपना नाम लिख कर नुस्खा महादेव देसाई को दे दिया और महादेव देसाई ने उसे अंग्रेज जेलर के सुपुर्द कर दिया जिसने मेडिकल स्टोर से दवाई मंगाने की हामी भर दी|

महादेव देसाई गांधी जी के पास आये तो प्रसन्न थे, गांधी जी के पूछने पर उन्होंने कहा कि जेलर परचा लेकर मेडिकल स्टोर जाएगा तो क्या लोग उस पर लिखे नाम (कस्तूरबा और सुशीला नय्यर) पढ़कर जान नहीं जान जायेंगे कि दवाई किसके लिए है और आपको कहाँ रखा है?

गांधी जी ने महादेव देसाई से कहा कि जेलर को जानते बूझते परेशानी में डालना उचित नहीं, तुम जाकर उन्हें इस पहलू की जानकारी दो अगर सब जानकर भी वे दवाई मंगाना चाहें तो ठीक है|

महादेव देसाई ने जेलर को बताया तो अपनी चूक पर अचरज करते हुए वह खुशी से झूम उठा कि उससे एक बड़ी गलती होते होते रह गयी, वर्ना उसके वरिष्ठ अधिकारी उसे मुश्किल में डाल सकते थे| महादेव देसाई को धन्यवाद कहते हुए जेलर ने एक सादे पर्चे पर केवल दवाओं के नाम अपने हाथ से लिख लिए और दवा लेने चला गया|

महादेव देसाई को अनिद्रा की स्थिति से जूझना पड़ता था और इसका एक मुख्य कारण उनके मन में गांधी जी के स्वास्थ्य को लेकर गहरे में घर कर गयी चिंता थी| उन्हें यह चिंता सताती थी कि गांधी जी पुनः कोई उपवास शुरू न कर दें|

एक सुबह वे जल्दी उठ गए, शेव की, नहाये और गांधी जी को रिपोर्ट की कि रात वे तसल्लीबख्श नींद ले पाए|

कुछ ही घंटों बाद जब अन्य कमरे में सरोजिनी नायडू , महादेव देसाई और ब्रितानी पुलिस के एक बड़े अधिकारी बातचीत में व्यस्त थे तो सरोजिनी नायडू ने चिल्लाकर सुशीला नय्यर को उस कक्ष में बुलाया कि वे आकर महादेव देसाई को देखें|

सुशीला नय्यर ने जाकर देखा तो महादेव देसाई के मुंह से झाग निकल रहे थे, आँखें बंद थीं, जबड़े भिंचे हुए थे| और वे बेहोश से होकर अपनी शारीरिक अवस्था से संघर्ष कर रहे थे|

डॉ सुशीला नय्यर ने महादेव देसाई का हाथ पकड़ा तो नाड़ी नहीं मिली, स्टेथोस्कोप से महादेव देसाईं की छाती की जांच की तो धड़कन असामान्य थी|

अंग्रेज पुलिस अधिकारी सिविल सर्जन को फोन करने के लिए जेलर के कक्ष की और दौड़े|

सुशीला नय्यर ने कहा बापू को बुलाओ महादेव जा रहे हैं|

बापू आये, महादेव के पड़ोस में बैठ गए उनके हाथ अपने हाथों में लेकर और सुशीला से कहने लगे, महादेव एक बार मेरी आँखों में देख लेगा तो उठ जाएगा|

वे टकटकी लगाए महादेव की ओर देखते रहे|

पुलिस अधिकारी दो इंजेक्शंस लेकर आये जो सुशीला नय्यर ने महादेव देसाई को दे दिए लेकिन उनका शरीर ऐंठता गया और त्वचा काली पड़ती गयी|

सुशीला ने रोकर गांधी जी से कहा बापू ये जा रहे हैं|

तब तक सिविल सर्जन भी आ गए और मुआयना करके उन्होंने महादेव देसाई को मृत घोषित कर दिया|

अलग कमरे में इस हलचल से परेशान कस्तूरबा ने सुशीला को बुलाकर पूछा कि महादेव को क्या हुआ वे कैसे हैं?

सुशीला ने रोते हुए उन्हें सूचित किया कि महादेव हमें छोड़ गए|

बा चीख कर रो पडीं, गांधी जी ने आकर बा को संभाला|

गांधी जी ने पुलिस अधिकारी से कहा कि वे वल्लभ भाई को बुला दें, महादेव देसाईं की मृत काया अंतिम संस्कार हेतु उनके सुपुर्द करनी होगी|

अधिकारी अपने उच्च अधिकारियों से बात करने के लिए कहकर चला गया|

गांधी जी ने कहा कि मैं महादेव को स्नान करवा कर स्वंय भी स्नान कर लूं, तब तक ये लोग आ जायेंगे|

अपने से 25 साल छोटे महादेव देसाई की काया का अंतिम स्नान गांधी जी ने अपने हाथों से किया, लेकिन उन्हें कांपते देख सुशीला नय्यर ने उनकी इस कार्य में सहायता की| महादेव देसाई अक्सर नंगे पाँव चलते थे तो उनके पैरों के तलवे गहरे रंग के हो गये थे| गांधी जी ने कपडे में साबुन लगाकर महादेव के तलवे साफ़ किये|

महादेव देसाई को साफ़ कपडे पहनाये| गांधी जी ने कहा कि महादेव अभी एक कैदी थे इसलिए उन्हें एक कैदी की तरह ही जाना चाहिए| उनके शरीर के नीचे भी जेल की चादर बिछाई गयी और ऊपर भी जेल की चादर ही ओढाई गयी|

गांधी जी ने महादेव के माथे और चेहरे पर चन्दन लगाया और मीरा बेन द्वरा बनाए गए फूलों के हार को पहनाया|

गांधी जी स्नान करने चले गए और जिस तौलिये से उन्होंने महादेव देसाई की मृत काया को पौंछा था उसी से अपने शरीर को भी स्नान के बाद सुखाया|

तब तक पुलिस अधिकारी भी लौट आये थे| गांधी जी ने उनसे पूछा कि क्या वल्लभ भाई आ रहे हैं?

पुलिस अधिकारी ने इनकार किया और कहा कि सरकार किसी को भी शव सौंपने केलिए तैयार नहीं है| अलबत्ता एक लारी एक पंडित को लेकर आ रही है जो यहाँ पूजा पाठ की रस्म की आवश्यकता हो तो उसे पूरा करेगा| सरकारी कर्मचारी ही अंतिम संस्कार करेंगे|

गांधी जी ने उसे स्पष्टता के साथ कहा कि यहाँ पूजा पाठ हो चुका| उसी आवश्यकता नहीं है|

गांधी जी ने पूछा कि क्या हममें से कोई साथ जाकर अंतिम संस्कार कर सकता है?

पुलिस अधिकारी ने कहा कि नहीं इसकी अनुमति नहीं है|

गांधी जी ने कहा कि क्या मैं यहीं अपने सामने महादेव का अंतिम संस्कार कर सकता हूँ| मैं अपने पुत्र की मृत काया को अजनबियों के हाथ कैसे सौंप दूं| मैं यहीं उसका दाह संस्कार करना चाहूँगा|

पुलिस अधिकारी इस संभावना की अनुमति लेने के लिए अपने उच्च अधिकारियों से संपर्क करने चला गया|

गांधी जी ने खिन्न मन से कहा,” स्वामी श्रद्धानंद जी के कातिल को फांसी देने के बाद उसकी लाश सरकार ने लोगों के हवाले कर दी थी जिसे लोगों ने शहीद बना डाला और जुलूस निकाला| उससे हिन्दू-मुस्लिम दंगा फसाद हो सकता था पर सरकार ने परवाह तक न की| आज सरकार महादेव का शव देने तक को तैयार नहीं| क्या मुझे इस बात पर लड़ जाना चाहिए कि शव का दाह संस्कार मित्र ही करेंगे| पर यह राजनीतिक रंग ले सकता है मैं अपने पुत्र की मृत्यु को इस तरह कैसे मोड़ लेने दूं“?

पुलिस अधिकारी अपने उच्च अधिकारियों को समझाने में कामयाब रहा और गांधी जी ने आगा खान महल के अहाते में ही एक वृक्ष के नीच महादेव देसाई का दाह-संस्कार किया|

गांधी जी ने मुखाग्नि दी| वे डेढ़ दो घंटे चिता के पास स्थिर खड़े रहे और फिर उन्हें साग्रह कुर्सी पर बिठाया गया| लगभग तीन घंटे तक वे वहीं उपस्थित रहे| चिता से थोड़ा दूर कस्तूरबा के लिए कुर्सी लगाईं गयी थी| रोग के कारण शरीर से कमजोर हो गयीं कस्तूरबा लगातार रोकर महादेव देसाई को आशीर्वाद देती रहीं कि महादेव ने जीवन पर्यंत गांधी जी की सेवा करने को धर्म मानकर अपना कर्तव्य सदैव निभाया|

गांधी जी ने वहां उपस्थित अंग्रेज जेलर से कहा कि यदि उन सभी कैदियों में से कोई भी जीवित बाहर नहीं जाने पाता है तो आपको यह जगह महादेव के बेटे को दिखानी होगी|

उस पूरी रात गांधी जी सो नहीं पाए| सुबह वे पुनः चिता स्थल पर गए, चिता अभी भी धीमे धीमे सुलग रही थी| शाम को उन्होंने ठंडी हो गयी चिता से राख बटोरी और एक डब्बे में भर ली| इस राख के डब्बे को वे सदैव अपने पास अपने इमेज पर रहते थे और बाकी बचे जीवन में रोज़ इस राख को अपने माथे पर बिंदी के तरह लगाते रहे|

1 जनवरी 1892 को जन्में महादेव देसाई 15 अगस्त 1942 को केवल 50 साल की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो गए|

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रिचर्ड एटनबरो, अपनी फ़िल्म में आग़ा खान पैलेस वाले सीक्वेंस में महादेव देसाई को सही तरीके से दिखा सकते थे| फ़िल्म 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन की पृष्ठभूमि में गांधी जी की गिरफ्तारी से तथ्यात्मक छेड़छाड़ करती है और दिखाती है कि गांधी जी, और कस्तूरबा एवं मीरा बेन को एक ही साथ बंदी बनाकर ले जाया गया| वे वहां तथ्यानुसार गांधी जी को महादेव देसाई और मीरा बेन के साथ गिरफ्तार होते दिखा सकते थे| डॉ सुशीला नय्यर और सरोजिनी नायडू को भी वहां बंदी बनाने की बात फ़िल्म गोल कर गयी| चूंकि महादेव देसाई को वहां दिखाया ही नहीं गया इसलिए सीधे कस्तूरबा की मृत्यु के दृश्य को दिखाया गया|

अगर महादेव देसाई की मृत्यु वाला दृश्य भी रखा जाता तो उससे गांधी जी के व्यक्तित्व का यह पहलू भी उभर कर आता कि अपने सहयोगियों संग उनका कितना गहरा नाता था और कैसे वे पितृवत उनकी देखभाल करते थे और साए की तरह उनके साथ रहते थे|


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