उस दिन संत सिद्धार्थ आये तो हाथ जोड़कर उपस्थित जनों के अभिवादन का उत्तर दिया और अपने स्थान पर शांत बैठ कर सभी की ओर देखने लगे| वे बहुत देर तक मौन रहे|

उनके मौन दृष्टिपात की तीव्रता लोगों से सहन न हुयी तो एक व्यक्ति ने पूछा,”महाराज, आज कुछ कहेंगे नहीं क्या?”

संतआप लोग बताइये किस विषय पर चर्चा करना चाहते हैं?

महाराज, जो भी आप बोलना चाहें, हमें तो वही सुनना है|

संतआप लोग पूछिए कोई ऐसी बात जो जीवन में सभी को सबसे ज्यादा मथती हो|

एक सज्जन ने कहा,” महात्मन, क्या हमें कुछ मित्रता पर बताने का कष्ट करेंगे?

संतमित्रता संबंधी आपकी उलझन क्या है, उसे स्पष्ट कीजिये|

हाराज, अक्सर ही ऐसा क्यों होता है कि जिन लोगों को हम मित्र समझते हैं वही हमें धोखा देते हैं, हमें दुख पहुँचाते हैं। दुनिया में मित्रता के नाम पर इतनी धोखाधड़ी क्यों है?

संत सिद्धार्थ ने क्षण भर उसे देखा, अन्य लोगों पर दृष्टि फिराई और कहा,” ठीक है आज मित्रता और मित्र पर बात कर लेते हैं। सबसे पहला प्रश्न उठता है कि मित्र कौन है? आपमें से कुछ लोग बतायें कि आप लोगों के लिये मित्र की परिभाषा क्या है?

लोगों ने अपनी समझ से मित्रता की भिन्न-भिन्न परिभाषायें कह दीं।

महात्मन, जो सुख दुख में साथ रहे वही मित्र है
जो संकट में साथ दे, सहायता करे वही मित्र है
जो दुनिया के लाख विरोध के बाद भी साथ दे वही सच्चा मित्र है
जो दिल से आपका भला चाहे वही मित्र है
जो ईमानदारी से दोस्ती का रिश्ता निभाये वही सच्चा मित्र है

संत सिद्धार्थ ,” ठीक है, मित्र होने के कई लक्षण आप लोगों ने गिना दिये।

Painting : ShriKrishna Arjuna [MFHussain]


Discover more from Cine Manthan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.