हृषिकेश मुकर्जी द्वारा निर्देशित बावर्ची और बुड्ढा मिल गया जैसी फिल्मों को देखें तो दोनों में एक केन्द्रीय चरित्र है, जिसके बारे में उसके संपर्क में आने वाले अन्य चरित्र संदेह में रहते हैं कि जैसा यह व्यक्ति उनको दिखाई... Continue Reading →
जोड़ी तोर डाक शुने केऊ ना एशे तोबे एकला चोलो रे। तोबे एकला चोलो, एकला चोलो, एकला चोलो, एकला चोलो रे। (रविन्द्रनाथ टैगोर) चल अकेला, चल अकेला, चल अकेलातेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला हज़ारों मील लम्बे रास्ते तुझको... Continue Reading →
उपन्यास में एक सहूलियत होती है कि लेखक घटनाओं को विस्तार दे सकता है, इधर उधर की व्याख्या या वर्णन कर जो दर्शाना है उसे ज्यादा गहराई और विस्तार से पाठक को समझा सकता है| एक कहानी जैसी कहानी तो... Continue Reading →
बंदिनी में सचिन देव बर्मन के साथ एक बेहद खूबसूरत गीत (मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे) से फ़िल्मी गीत लिखने की शुरुआत करने वाले गुलज़ार पिछले 62 वर्षों से निरंतर संगीत निर्देशकों और फ़िल्म निर्देशकों... Continue Reading →
निर्देशक सार्थक दासगुप्ता की फ़िल्म - Music Teacher के पास, एक कहानी है, जिसे उन्होंने स्वंय ही लिखा है, और उसके भावों को विस्तार और गहराई से दर्शकों तक पहुंचाने के लिए अच्छे अभिनेता, शानदार कैमरा निर्देशक एवं स्वंय का... Continue Reading →
कुछ कहानियां पाठक को सन्नाटे के बियाबान में ले जाकर छोड़ देती हैं, जहाँ से उसे अपनी क्षमता के अनुसार इसके प्रभाव से बाहर आने में सफलता मिल पाती है| हिंसा के बारे में हरेक के किसी न किसी किस्म... Continue Reading →
लेखक निर्देशक बाबू राम इशारा की बहुचर्चित व कुख्यात फ़िल्म चेतना में कैमरे के विशिष्ट प्रयोग किये गए, जिन्होंने दर्शकों के सम्मुख भ्रम उत्पन्न किये, सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने भी भ्रम को सच मान इसे "A" श्रेणी में सर्टिफाइड... Continue Reading →
पंचायत के सीज़न 4 का मुख्य शरीर ग्राम प्रधान के चुनाव के इर्दगिर्द पसरी राजनीति से बना है और बाकी उप-कथाएं इधर उधर पैर पसारती हैं| इस बार राजनीति के अखाड़े में ग्राम प्रधान के चुनाव में यूं तो आमने... Continue Reading →
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