एक जुआघर में दो महिलाएं प्रविष्ट हुईं। होगी पेरिस की घटना। पहली महिला उत्सुक थी दांव लगाने को| दूसरी ने कहा कि दांव तो मैं भी लगाना चाहती हूं, लेकिन किस नंबर पर लगाना? पहली महिला ने कहा: मेरा तो... Continue Reading →
हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलतेअब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते (~इक़बाल अज़ीम) आधुनिक युग में जीवन की आपाधापी इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है कि मेट्रो या बड़े नगरों की बात नहीं वरन छोटे शहरों, कस्बों... Continue Reading →
नवोदित निर्देशक के तौर पर आर्यन खान ने आत्मविश्वास से भरी शुरुआत की है| उनकी वेब सीरीज की सामग्री को देखा जाए तो भाषा के स्तर पर वह कुछ वर्षों पूर्व AIB के एक कुख्यात कार्यक्रम जैसी है, जिसे अंततः... Continue Reading →
दुखांत न भी हों लेकिन दुःख भरे मार्गों से गुजरने वाली प्रेम कहानियों पर आधारित महत्वपूर्ण हिन्दी फ़िल्में हर दशक में 2-3 के औसत से बनती ही आ रही हैं| कभी लता मंगेशकर के आयेगा आने वाला गीत (महल) को... Continue Reading →
छोटी मगर गहरे भाव और अर्थ अपने में समाहित की हुयी कविता का उदाहरण देखना हो तो प्रसिद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल की कविता “जो मेरे घर नहीं आयेंगें” तुरंत सामने आ जाती है| उनकी कविता दृश्यात्मक होते-होते एक अन्य दिशा पकड़... Continue Reading →
हुसेन साहब के जलवे प्रदर्शनी का शीर्षक था - श्वेताम्बरी ! हुसेन साहब तब जॉन एलिया की नज़्म - रम्ज़ भी गुनगुना सकते थे | तुम जब आओगी तो सोया हुआ पाओगी मुझे मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ... Continue Reading →
"धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" जैसी वैधानिक चेतावनी उपभोक्ता के दिमाग में प्रविष्ट कराई जाए ऐसी प्रथा पहले नहीं होती थी| बीड़ी, तंबाकू को तेंदू पत्ते में लपेटकर बनाई जाती है, और यह भारत में एक लोकप्रिय तंबाकू उत्पाद... Continue Reading →
कुमार गन्धर्व का गायन सुनते हुए ... (सर्वेश्वरदयाल सक्सेना) https://youtu.be/fls_YUpVbvs?si=_24Cccm7-bf9Ltly
वो कमसिन हैं उन्हें मश्क़-ए-सितम को चाहिए मुद्दतअभी तो नाम सुन कर ख़ंजर-ओ-पैकाँ का डरते हैं [~ हाज़िक़] ओटीटी के भारत में पैर जमाने से दो अच्छे काम सिनेमा के माध्यम में हुए, एक तो बचपन को समाहित करने वाली... Continue Reading →
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