अगर थ्रिलर फिल्मों की बात छिड़ ही जाए तो हिंदी सिनेमा मुख्य तौर पर दो हिस्सों में बंटता है, विजय आनंद की ज्वैल थीफ से पहले और इसके बाद| और दोनों ही कालों में एक भी फ़िल्म इसकी बराबरी में खड़े होने लायक नहीं बनी| अच्छी से अच्छी थ्रिलर भी इससे न्यूनतम एक मीटर नीचे के स्थान पर ही रखी जा सकती है, खुद विजय आनंद द्वारा निर्देशित कुछ अन्य थ्रिलर फ़िल्में भी ज्वैल थीफ के समक्ष दूसरे दर्जे की हैं| कुल जमा 33 साल की उम्र में विजय आनंद ने ज्वैल थीफ बनाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दी थी| हिंदी सिनेमा के अस्तित्व पर इससे बड़ी ठगी और इल्यूज़न की फ़िल्म न बनी और न बन पायेगी क्योंकि अब यह विचार मौलिक नहीं रहा जो भी बनाएगा विजय आनंद की कल्पना से प्रेरित होकर ही काम करेगा|
रहस्य और रोमांच से भरे सिनेमा संसार के बेताज बादशाह एल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्मों के प्रशंसक विजय आनंद को सिनेमा का यह वर्ग बेहद भाता था| और स्वाभाविक था कि इस वर्ग में उन्हें भी विश्वस्तरीय फ़िल्में बनाने की इच्छा रही होगी गाइड से पहले भी वे देव आनंद के लिए एक म्यूजिकल थ्रिलर तीसरी मंजिल बना रहे थे जिससे देव साब कुछ दिनों की शूटिंग के बाद अलग हो गए और उनकी सहमति से शम्मी कपूर को उसका नायक बनाया गया|
आचार्य रजनीश का उन्हीं दिनों का एक प्रवचन है, जिसमें उपस्थित मनोविज्ञान का सार भी ज्वैल थीफ की बुनावट में उपयोग में लाया गया है|
यह सब दर्शाने का तात्पर्य यह है कि हिचकॉक की फिल्मों के दर्शनों से उपजी समझ, साहित्य पढने से उपजी समझ, आचार्य रजनीश के अध्यात्मिक और मानव के मनोविज्ञान संबंधी ज्ञान को सुनने और पढने से उपजी समझ और जीवन के अन्य तत्वों से सामना करने पर उपजी समझ, और इन सबके मिश्रण से उपजी मिश्रित समझ से जन्मी कल्पना से विजय आनंद ने ज्वैल थीफ का ताना बाना बुना| विजय आनंद ने अपनी लेखकीय, निर्देशकीय, कैमरा, अभिनय और सम्पादन की सिनेमाई कल्पना और दक्षता का पूर्ण निवेश करके ज्वैल थीफ को गढ़ा है|
ज्वैल थीफ चूंकि एक रहस्य रोमांच भरी थ्रिलर फ़िल्म है अतः इसकी कथा के बारे में कहना उन दर्शकों के लिए आघात से कम न होगा जो अभी तक इस भव्य फ़िल्म के दर्शनों से वंचित रहे हैं| नए दर्शक को इसे कम से कम तीन बार देखना पड़ेगा तभी उसकी समझ में विजय आनंद द्वारा बिछाई गयी भूल भुलैया की बिसात की सारी चालें आयेंगीं और जो हुआ वह क्यों हुआ का समीकरण सुलझेगा |
इतनी जबरदस्त रहस्यमयी फ़िल्म में भी निर्देशक विजय आनंद ने मानो दर्शकों को चुनौती देते हुए ही बिलकुल शुरू में ही कुछ क्लू छोड़ दिए थे कि सिने- दृष्टि और बुद्धिमत्ता है तो मेरे साथ चल कर दिखाओ इस फ़िल्म की प्रगति में| जो शुरू की दस मिनट की फ़िल्म नहीं समझ पाते वे फ़िल्म से उपजे सवालों को तीसरी बार के दर्शन में ही सुलझा पायेंगे क्योंकि दूसरी बार की देखा देखी केवल कुछ ही सवालों के जवाब उनसे खोजवा पायेगी|
होठों पे ऐसी बात मैं छिपा के चली आई
गीत के फिल्मांकन के लिए विजय आनंद ने चार कैमरे लगाकर वैजयंती माला से लगातार नृत्य करवाकर इतने बड़े हॉल में उनके इर्द गिर्द फैले लोगों को भी कवर करते हुए गीत को शूट किया| इसमें नृत्य निर्देशक सोहनलाल की कला, वैजयंती माला की नृत्य और अभिनय कला और उनका निर्देशक की मांग के प्रति समपर्ण भी अपनी चरम सीमा पर हैं|
परदे पर रहस्य के बादल बनाते हुए कब फ़िल्म में गीत को जन्म देना है इसकी समझ पूरे फ़िल्म उद्योग में नवकेतन फिल्म्स में सबसे ज्यादा थी और उनमें भी नवकेतन के लर्निंग स्कूल से निकले विजय आनंद में यह कला सबसे मुखर थी| नवकेतन की बाज़ी से शुरुआत करने वाले गुरुदत से भी कहीं ज्यादा|
ज्वैल थीफ के कुछ दृश्यों को पहली बार देख रहे दर्शकों को दिखाई देगा कि कैसे दूसरे फ़िल्म बनाने वालों खासकर लिखने वालों ने इस फ़िल्म के दृश्यों को उधार लेकर अपनी फिल्मों में रख लिया है| जैसे देव आनंद का फ़िल्म में पहली बार सप्रू से उनके शोरुम के दफ्तर में मिलने का दृश्य देखकर त्रिशूल का दृश्य याद आ जाएगा जिसमें अमिताभ संजीव कुमार के दफ्तर में उनसे मिलने जाते हैं| बस सलीम जावेद ने मूल भाव उठाकर उसे एक ही दृश्य में लंबा खींच दिया है यहाँ ज्वैल थीफ में वह दो भागों में है|
फ़िल्म में गज़ब जो है उनकी सूची बहुत लम्बी है, बल्कि खोजना पड़ता है कि क्या कमजोर है इस फ़िल्म में और बड़े से बड़ा फ़िल्म पारखी भी थक जाए ऐसे परफेक्शन से फ़िल्म को गढ़ा गया है| कथा, पटकथा का एक्जीक्यूशन, चरित्र चित्रण, कैमरा वर्क, सेट डिजायन, बम्बई और सिक्किम के दिलकश लोकेशंस पर शूटिंग, जबरदस्त अभिनय, शानदार गीत- संगीत (गीत + बैकग्राउंड म्यूजिक), दिमाग को किसी पल चैन न लेने देने वाला रहस्य, आम लोगों में ख़ास जैसे दिखाई देने वाले नायक देव आनंद नायिका वैजयंती माला, सामान्य वास्तविक जीवन जैसे दिखाई देने वाले नायक के पिता व माता के रूप में नाज़िर हुसैन और प्रतिमा देवी, युवा ग्लैमर से सिनेमा के परदे को चकाचौंध कर देने वाली सहनायिका तनूजा और परदे पर रहस्य के बादल बुनते हुए अन्य ग्लैमरस स्त्री चरित्रों में अंजू महेन्द्रू, हेलन, और फरयाल, किसी रियासत के राजा जैसा आकर्षक, नायिका का अग्रज, और परदे पर सीधे न आने वाला रहस्य के सात पर्दों के पीछे छिपा हुआ विलेन|
नायिका को कैसे प्रस्तुत करना है यह कला विजय आनंद में कूट कूट कर भरी थी| उनकी फिल्मों में नायिका की भूमिकाएं निभाने वाली अभिनेत्रियाँ अन्य फिल्मों में उतनी आकर्षक नहीं लगी होंगी|
ज्वैल थीफ में वैजयन्ती माला को इतने रूपों में और इतने भावों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि वे स्वयं भी अपने रूप, अपने अभिनय और नृत्य कला के गुणों पर रीझ गयी होंगी और जब जब इस फ़िल्म को देख लेती होंगी आज भी उल्लास से भर जाती होंगी कि एक ही फ़िल्म में गोल्डी ने क्या क्या उनसे करवा लिया|
जिस आकर्षक बैक ग्राउंड स्कोर के साथ शुरू में परदे पर फ़िल्म में काम करने अवाले लोगों के नाम आने शुरू होते हैं और कुछ घटनाएं घटने लगती हैं उससे ही दर्शक उत्साहित हो जाता है कि आज और अब कुछ बेहद ख़ास उसे देखने को मिलने वाला है|
जिसने उसे सिनेमा के बड़े परदे पर देखने का सौभाग्य पाया होगा वह तो इसके असर से धन्य हो गया होगा|
अविश्वसनीय घटित पर दर्शकों से विश्वास करवा कर दर्शक को हरा देना ज्वैल थीफ की सबसे बड़ी कामयाबी है|
…[राकेश]
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