निर्देशक इम्तियाज़ अली की सबसे पहली और सबसे अच्छी फ़िल्म – सोचा न थी, के क्लाइमेक्स में आपसी रिश्ते के लिए “कभी हाँ कभी ना” करते नायक (अभय देओल) और नायिका (आयशा टाकिया) नायक की कम्पनी के मुख्यालय से एक टैक्सी में बैठकर रफूचक्कर हो जाते हैं|
उन्हें जाते देखते नायक के पिता (सुरेश ओबेरॉय) से नायक का भाई नायक के बारे में पूछता है,”वीरेन अब तक नहीं आया?”
पिता – “इतनी जल्दी नहीं आएगा, वक्त लगेगा , कुछ हफ्ते या शायद एकाध महीना, फिर दोनों आ जायेंगे|”
भाई – दोनों?
भाई और पिता सीढ़ियों पर बैठ वार्तालाप करते हैं|

पिता ,” एक बात बताओ अगर मैं लडकी के घरवालों के पास जाकर इसका हाथ मांगूं, ना ठीक नहीं लगेगा, इतना सब हो जाने के बाद… नाक कट जायेगी अपनी न| मगर आज ये दोनों कुछ कर जाएँ, तो कोई क्या कर सकता है, सभी को मानना ही पड़ेगा| मैं भी मान जाऊँगा|
भाई – अब मुझे समझ में आया वीरेन में किसके गुण आये हैं|
पिता – क्यों, कुछ गलत कहा मैंने?
भाई – आज तो आप आदमी ही गलत लग रहे हैं मुझे|
पिता – हे माइंड योर लेंगुएज, बाप हूँ मैं तुम्हारा|
दोनों हँसते हैं, और उधर एक बस में प्रसन्नचित्त नायक – नायिका फ़िल्म का सबसे बेहतरीन गीत – ओ यारा रब, गाते हैं|
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27 मई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के गांधीनगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए विदेशी वस्तुओं के उपयोग को कम करने और स्वदेशी सामान को बढ़ावा देने की अपील की। उन्होंने ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र करते हुए कहा कि देशवासियों को अपने घरों में उपयोग होने वाली विदेशी वस्तुओं की सूची बनानी चाहिए और इनके इस्तेमाल को कम करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि व्यापारियों को शपथ लेनी चाहिए कि वे विदेशी सामान नहीं बेचेंगे, और नागरिकों को विदेशी सामान खरीदने से बचना चाहिए। पीएम ने मजाकिया लहजे में यह भी कहा “छोटी आंखों वाले गणेश जी भी विदेश से आ रहे हैं,”| इशारा एक देश विशेष से आयातित मूर्तियों की ओर था। उनका यह बयान आत्मनिर्भर भारत और मेड इन इंडिया को बढ़ावा देने वाले अभियान का हिस्सा था।
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विश्व का आर्थिक तंत्र ऐसा है कि किसी भी देश, जिसने तमाम देशों से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संधियाँ की हुयी हैं, अधिकारिक तौर पर, के प्रमुख यह तो अपील कर नहीं सकते कि किसी विशेष देश से आयातित सामान का बहिष्कार कर दो| यह भी संभव नहीं कि सरकार ऐसे आयात पर एकतरफा रोक लगा दे| लेकिन बुद्धिमान नेता अपरोक्ष रूप से अपनी जनता से यह अपील तो कर ही सकते हैं कि स्वदेशी सामान को बढ़ावा दें|
भारतीय प्रधानमंत्री के भाषण में वही बुद्धिमानी दिखाई देती है जो फ़िल्म सोचा न था में नायक के पिता के वचनों में दिखाई देती है| जब बेटा अपनी प्रेमिका संग विवाह कर आ ही जाएगा तब कोई क्या कर लेगा सभी को स्वीकार करना पड़ेगा और थक हार कर उन्हें भी स्वीकार करना पड़ेगा|
अगर भारतवासी आयातित सामान को न खरीद कर स्वदेश निर्मित सामान को बेचें और खरीदें तो कोई क्या कर सकता है? सरकार तो सुरेश ओबरॉय की तरह लाचार है, वह लोकतंत्र में लोगों पर जबरदस्ती दबाव तो डाल नहीं सकती कि सभी नागरिक आयातित सामान ही खरीदेंगे|

यूरोप के बहुत से देशों के नागरिक स्वदेशी पदार्थों को विदेश से आयातित सामान के ऊपर तरजीह देते हैं और आयातित सामान को बिलकुल भी बढ़ावा नहीं देते|

ऐसा ही कुछ भारतवासियों को भी करना चाहिए जिससे भारत की सॉफ्ट पॉवर दुनिया में बढ़े| भारत की विशाल आबादी और इस नाते बहुत बड़ा बाज़ार दुनिया के किसी भी देश को भारत के सामने झुका सकने में समर्थ है|


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