परसेप्शन बहुत बड़ी बात है| 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो भारत उसका सैन्य मुकाबला करने के लिए उसके स्तर पर तैयार नहीं था| अंग्रेजों द्वारा कंगाली की कगार पर छोड़ दिया गया देश विकास के मार्ग पर चलने के लाइट प्रतिबद्ध था और सेना को आधुनिक हथियारों से सुसज्जित करने हेतु पर्याप्त साधन देश के पास नहीं थे| सेना के पास जितना अनुभव और साहस था, उस मुकाबले में उनके पास अत्याधुनिक हथियार नहीं थे|
चीन की विशाल सेना ने कहर बरपाती बर्फीली सर्दी में कई पर्वतीय मोर्चों पर एक साथ आक्रमण किया और भारत की हजारों एकड़ पर्वतीय भूमि कब्ज़ा ली| उतनी ठण्ड में भारत के हलके वाहन भी हल्की तोपों को मुकाबले में ले जाने में समर्थ नहीं थे क्योंकि शून्य या उससे नीचे के तापमान में जाने से पहले ही वाहन ईंधन जम जाने के कारण ठप्प हो गए और पर्वतीय इलाकों में युद्ध स्थलों पर पहुँच ही नहीं पाए| सैनिक राइफलों, हैण्ड ग्रेनेड, और एलएमजी, जैसे हथियारों के साथ अपनी अपनी चौकियों पर युद्ध लड़े, और एक एक सैनिक कई चीनी सैनिकों को मारने के बावजूद स्वयं भी शहीद हुए|
विकट परिस्थतियों में युद्ध में लड़कर जबरदस्त हानि उठाने वाली गाथा में एक अध्याय ऐसा भी था जहाँ भारतीय सैनिकों की वीरता ने चीनी सेना को युद्ध विराम करने के लिए सोचने पर विवश किया| इस अध्याय की सत्यता बताने के लिए 120 सैनिकों में से 5 या 6 गंभीर होने के बावजूद जीवित रहे और उनमें से 1 सैनिक को समय रहते वहां से वापिस भेजा गया ताकि वह अपनी चौकी की सूचना उच्च अधिकारियों को दे सके| सैनिक ने अपनी बटालियन द्वारा अपनी चौकी पर दर्शाई वीरता का वर्णन पहले सेना को और बाद में देश को बताया| आरंभ में उनकी अपनी कम्पनी के उच्च अधिकारियों ने उनके कथन पर विश्वास नहीं किया और उनकी बातों को कोरी गप्प करार दिया, क्योंकि बाकी अभी जगहों से बहुत हानि होने की ख़बरें ही सामने आयी थीं, ऐसे में कौन विश्वास करता कि 120 भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने 5 से 6 हजार चीनी सैनिकों के आक्रमण का मुकाबला करके उनके लगभग 1300 सैनिकों को मारा| औसत 1 भारतीय सैनिक द्वारा लगभग 10 चीनी सैनिक मारने का बैठता है| ऐसा ही प्रतीत होता है कि 18 नवंबर 1962 को हरेक भारतीय सैनिक हरिसिंह नलवा बन गया था|
रेजांग ला, लद्दाख में 16,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक महत्वपूर्ण दर्रा था, जो चुशूल घाटी के प्रवेश द्वार पर था। लद्दाख को बचाने के लिए चुशूल हवाई क्षेत्र की रक्षा करना अत्यंत आवश्यक था| 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की चार्ली कंपनी, जिसमें 120 सैनिक थे, मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में वहाँ तैनात थी। उनके पास सीमित हथियार, गोला-बारूद, और सर्द मौसम के लिए अपर्याप्त संसाधन थे। सैनिकों को कई टुकड़ियों में बाँट कर छितरा दिया गया था|
चीनी सेना ने लगभग 5,000-6,000 सैनिकों और बेहतर हथियारों के साथ 18 नवम्बर 1962 की सुबह के 3.30 बजे के आसपास हमला कर दिया| तापमान -20 डिग्री सेल्सियस से नीचे था|
मेजर शैतान सिंह, के रेडिओ मैन ने उन्हें सूचित किया कि हरेक टुकड़ी ने उन पर आक्रमण होने की सूचना दी है| मेजर साहब ने चीनी सेना की विशाल संख्या और तोपखाने के कारण सैनिकों से कहा, अगर किसी को पोस्ट छोड़कर पीछे हटना है तो वह जा सकता है| सैनिकों ने एक स्वर में कहा, पीछे हटने का सवाल ही नहीं| भगवान श्रीकृष्ण हमारे साथ हैं| हरियाणा के अहीर यादव पृष्ठभूमि के मजबूत कदकाठी के सैनिकों से भरी कम्पनी थी वह|
राजस्थान के राजपूत मेजर साहब ने कहा मैं भी यादव हूँ, क्या हुआ अगर मेरा सरनेम भाटी है तो|
हरेक प्लाटून ने अपने सामने अपने कई गुना बड़ी संख्याबल वाली चीनी सेना देखी, लेकिन उनके कई आक्रमण विफल किये| घायल होते रहे, शहीद होते रहे लेकिन लड़ते रहे|
मेजर साहब ने “आख़िरी गोली आख़िरी सैनिक” का मंत्र सभी को दिया|
मेजर शैतान सिंह और उनके सैनिकों ने कई घंटों तक चीनी हमले को रोके रखा। उन्होंने तीन बड़े हमलों को विफल किया और अनुमानित रूप से 1,300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया था। एलएमजी लिए हुए उनके निजी रक्षक और रेडियो मैन के बयानों के अनुसार, चारों ओर चीनी सैनिकों के शव पड़े हुए थे|
जब मेजर शैतान सिंह और उनका रक्षक घायल हो गए तो मेजर साहब ने होश खोने से पहले रेडियो मैन को वहां से पीछे जाकर कम्पनी हेडक्वार्टर जाकर वहां की लड़ाई का हाल बताने को कहा| रेडियो मैन खुद भी घायल हो चुके थे लेकिन उन्हें अपने एक अधिकारी का आदेश याद आ गया कि किसी भी हालत में मेजर साहब को दुश्मन सेना के हाथों में नहीं पड़ने देना है| रेडियो मैन ने बेल्ट की सहायता से गंभीर रूप से घायल होने के कारण बेहोश हो चुके मेजर साहब के शरीर को अपनी पीठ से बांधा और ढलाई पर लुढकना शुरू कर दिया| लेकिन जब तक उनकी मुलाक़ात भारतीय सेना की एक पेट्रोलिंग जीप से हुयी मेजर शैतान सिंह शहीद हो चुके थे|
रेडियो मैन द्वारा सुनाये गये विवरण को हरेक ने संदेह की दृष्टि से देखा, उनके दिमाग में बैठ चुका था कि जब हर जगह चीनी सेना भारी पडी है तो एक पोस्ट पर कैसे मात्र 120 भारतीय सैनिक अपने से दस गुना चीनी सैनिकों को मार सकते हैं| रेडियो मैन ने कहा कि उसने चारों ओर छितराए हुए चीनी सैनिकों के शव देखे हैं| एक भी शहीद भारतीय सैनिक की पीठ में गोली का निशान नहीं मिलेगा|
मेजर शैतान सिंह के निजी रक्षक के आँखों देखे वर्णन के अनुसार युद्ध में ऐसे मौके भी आये जब चीनी सैनिकों की भीड़ एकदम भारतीय सैनिकों के पास आ गयी और भारतीय सैनिकों ने उनका मुकाबला संगीनों से किया लेकिन चीनी सैनिक बख्तर पहन कर आये थे और संगीन की नोक उनके शरीर तक नहीं पहुँचती थी तो भारतीय सैनिकों में बहुतों ने उनसे हाथापाई की, दो दो को अपनी बाहों में जकड कर उनके सिर आपस में टकरा कर या चट्टानों पर उन्हें पटक पटक कर उन्हें मार डाला|
मेजर शैतान सिंह के निजी रक्षक को घायल होने के कारण चीनी सैनिकों ने बंदी बना लिया| 120 में से मुश्किल से 4-5 भारतीय सैनिक और अधिकारी ही घायल लेकिन जीवित थे| चीनी जब उन्हें अपने साथ ले जा रहे थे तब उन्होंने चारों ओर छितराए पड़े चीनी सैनिकों के शव देखे और शहीद होकर अपने हथियारों के साथ ही बर्फ में अकड़ चुके भारतीय सैनिकों के शव भी देखे| चीनी सैनिकों ने कई भारतीय सैनिकों की वीरता देखकर उनकी टोपियाँ उनकी बंदूकों पर टांग दीं| शाम के धुंधलके में चीनी सैनिकों को चकमा देकर वे उनके चंगुल से भाग निकले| शायद उन्हें जीवित रहना था भारतीय सेना की इस असाधारण वीरता की गाथा दुनिया के सामने लाने के लिए|
21 नवम्बर 1962 को चीन ने युद्धविराम की घोषणा कर दी|
भारतीय सेना की इस शूरवीर कम्पनी को एक परमवीर चक्र, पांच वीर चक्र और चार सेना पदक मिले| मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया|
दो साल बाद देवआनंद की नवकेतन फिल्म्स के लिए बनने वाली गाइड के हिन्दी संस्करण का निर्देशन छोड़, चेतन आनंद ने रेजांग ला की इस अभूतपूर्व लड़ाई के इर्दगिर्द फ़िल्म – हक़ीक़त का निर्माण एवं निर्देशन किया| फ़िल्म माध्यम के अनुसार उन्होंने इसमें अन्य उपकथायें भी डालीं लेकिन जो सबसे बड़ा अन्याय उन्होंने कुमाऊँ रेजिमेंट की इस कम्पनी के साथ किया वह था फ़िल्म में इसे पंजाब रेजिमेंट की कम्पनी दिखाना| कुमाऊँ रेजिमेंट की चार्ली कम्पनी के शौर्य प्रदर्शन का क्रेडिट सिनेमा के परदे पर भी उन्हें ही दिया जाता तो कम्पनी को, शहीद हुए सैनिकों के परिवारों को और कम्पनी के जीवित बचे 4-5 सैनिकों को अच्छा लगता और उन्हें लगता सिनेमा ने उनके साथ न्याय किया|
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