अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, लेखक एवं गीतकार मनोज कुमार के दूर के रिश्ते के भाई धीरज कुमार को हिंदी सिनेसंसार में एक अभिनेता के रूप में याद करना चाहें तो थोड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है| सिने दर्शक उन्हें जानते पहचानते तो रहे लेकिन उनका चेहरा देख कर कोई दर्शक यह याद करना चाहे कि किस फ़िल्म में उनकी भूमिका ने प्रभावित किया था तो उसे दिमाग पर बहुत जोर डालना पड़ सकता है| एक अभिनेता के तौर पर कोई बहुत ही ज्यादा उन्हें किसी हिन्दी फ़िल्म में उनकी उपस्थिति के कारण याद करने पर तुल ही जाएगा तो शायद रोटी कपड़ा और मकान, हीरा पन्ना जैसी कुछ फिल्मों में वे भूमिकाएं निभाते याद आ जाएँ| एक अभिनेता के तौर पर उनकी पारी ऐसी नहीं रही कि सिने दर्शक उन्हें अपने स्मरण में स्थायी जगह दे सकें| भारतीय सिने दर्शकों को उनकी याद दूरदर्शन व अन्य टीवी चैनलों पर बनाए गए प्रसिद्द धारावाहिकों के निर्माता ( क्रिएटिव आई प्राइवेट लिमिटेड), और निर्देशक एवं उनमें से कुछ के प्रस्तोता के रूप में आ सकती है|

हिंदी सिनेमा में एक अभिनेता के तौर पर धीरज कुमार की स्थाई छवि बनती है एक अमर गीत को परदे पर प्रस्तुत करने वाले अभिनेता की| धीरज कुमार को बासु चटर्जी द्वारा निर्देशित फ़िल्म – स्वामी (1977) के एक बेहतरीन गीत – का करूँ सजनी आये न बालम को परदे पर प्रस्तुत करने के लिए आसानी से और सदैव याद किया जाता रहेगा|

बड़े गुलाम अली खान साहब द्वारा प्रसिद्द की गयी एक ठुमरी के परम्परागत बोलों के ऊपर गीतकार अमित खन्ना ने इस गीत की रचना की और राजेश रोशन ने ठुमरी की तर्ज पर मुखड़े को सजा बाकी गीत को वैसी ही सांगीतिक गठनता प्रदान की| राधाकृष्ण प्रेमलीला पर आधारित इस गीत को भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा में प्रेम, विरह और प्रतीक्षा के भावों को संगीतबद्ध करने के लिए राग किरवाणी के तत्वों का सहारा लिया गया| गीत भावनात्मक अभिव्यक्ति दर्शाता है।

गीत का फिल्मांकन बेहद साधारण है, जहाँ एक संयुक्त परिवार में दो अलग अंगों के विभिन्न अधिकार स्पष्ट दिखाई देते हैं और गीत के बोल नव विवाहिता नायिका (शबाना आजमी) के भावनात्मक द्वन्द को उत्प्रेरित करते दिखाई देते हैं| निर्देशक बासु चटर्जी ने गीत के फिल्मांकन में कल्पना के घोड़े ज्यादा नहीं दौड़ाए इसलिए गीत गाते गाते भी धीरज कुमार, पान का बीड़ा खाते हैं, मिठाई खाते हैं और तब भी उसी सुर में गाते रहते हैं, क्योंकि गायन तो शानदार गायक येसुदास के पार्श्व गायन का परिणाम है|

बासु चटर्जी का ध्यान नायिका की ससुराल में दो अलग स्तरों पर जीते प्राणियों के अंतर को दर्शाने पर ज्यादा था| नवविवाहिता नायिका का पति (गिरीश कर्नाड) घर का सबसे मेहनतकश और कमाऊ सदस्य है लेकिन उसके कक्ष में बिजली का पंखा तक नहीं है और यहाँ नायिका के देवर (धीरज कुमार) के कक्ष में महफ़िल सजी हुयी है जहां सुख सविधा का सारा साजो सामान अधिकता में बिखरा हुआ है|

नायिका विवाह पूर्व के अपने प्रेम संबंध और इस अनायास कर दिए गए विवाह के बीच द्वन्द में फंसी है| उच्च शिक्षा प्राप्त नायिका में इतनी सूक्ष्म दृष्टि है कि देख सके कि उसकी ससुराल में उसके पति की घोर उपेक्षा की जाती है, जबकि घर की आमदनी पूर्णतया उसी की मेहनत पर निर्भर है| नायक की सौतेली माँ अपनी स्वंय की संतानों पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करती है, और सारी सुख सुविधाएँ भी उन्ही के लिए संरक्षित रहें ऐसा सुनिश्चित करती रहती है|

बासु चटर्जी ने इसे दिल से नहीं फिल्माया है, गीत में मुश्किल से कहीं हर्मोनियम के स्वर सुनाई देंगे लेकिन धीरज कुमार हारमोनियम बजाते ही दिखाए गए हैं|

अपने ऑडियो संस्करण में यह गीत लाजवाब है| राजेश रोशन ने शास्त्रीय और सुगम संगीत के समुचित मिश्रण से इस गीत को संगीतबद्ध किया है| वाद्ययंत्रों में सितार, तबला और बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्र गीत को शास्त्रीय आधार देने में सहायता करते हैं तो हल्के ऑर्केस्ट्रा का प्रयोग इसे फिल्मी सुगम संगीत के क्षेत्र में भी एक प्रासंगिक गीत बनाये रखता है|

ठुमरी के व्याकरण को अपनाते हुए गीत मध्यम और विलंबित लय में प्रेम और विरह के भावों को व्यक्त करता जाता है|

येसुदास के गायन में एक अलग ही कशिश है| उनके द्वारा लिए गए प्रारंभिक आलाप से ही गीत एक विशेष वातावरण रचा जाता है| पूरे गीत में येसुदास की स्वर लहरियाँ श्रोता को गीत के असर से बाहर निकलने का एक क्षण का भी अवसर नहीं देतीं और वह राग आधारित स्वरों की मधुरता और गीत के बोलों के भावनात्मक उतार-चढ़ाव के रस में डूब जाता है| शास्त्रीय संगीत में दीक्षित येसुदास ने इस सरल से दिखाई देने वाले गीत में गज़ब के स्वर नियंत्रण, आकर्षक आलाप और कोमल स्वरों की मींड के प्रभाव से अपनी जादुई और मखमल सी मुलायम गायिकी बिखेर कर इसे एक अद्भुत गीत बना दिया है| उन्हीं की गायिकी का करिश्मा है कि शास्त्रीय गायन की गहराई दर्शाने वाला गीत आम श्रोता को भी सुनने में सुगम लगता है|

गीतकार अमित खन्ना ने ऐसे सरल शब्द उपयोग में लिये हैं जो भावनात्मक गहराई प्रकट करने में पूर्णतया सक्षम हैं और गीत को सांसारिक साधारण प्रेम से लेकर अध्यात्मिक प्रेम के मध्य के स्पेस में आसानी से विचरण कराते रहते हैं|

का करूँ सजनी, आए न बालम

खोज रही हैं पिया परदेसी अँखियाँ

आए न बालम

जब भी कोई, आहट होए, मनवा मोरा भागे

देखो कहीं, टूटे नहीं, प्रेम के ये धागे

ये मतवारी प्रीत हमारी छुपे न छुपाए

सावन हो तुम मैं हूँ तोरी बदरिया

आए न बालम, का करूँ…

भोर भई और, साँझ ढली रे, समय ने ली अंगड़ाई

ये जग सारा, नींद से हारा, मोहे नींद न आई

मैं घबराऊँ, डर डर जाऊँ, आए वो न आए

राधा बुलाए कहाँ खोए हो कन्हैय्या

आए न बालम, का करूँ…

येसुदास की शानदार गायिकी, राजेश रोशन के संगीत संयोजन और अमित खन्ना के भाव व अर्थपूर्ण बोलों के कारण यह एक कालजयी गीत बन चुका है और इसे परदे पर मुस्करा कर प्रस्तुत करते धीरज कुमार की छवि इसे एक बार देखने वाले दर्शक के लिए भी अमिट छवि बन ही जाती है| निस्संदेह भारतीय सिनेमा में इस गीत को परदे पर प्रस्तुत करना अभिनेता धीरज कुमार के फ़िल्मी अभिनय जीवन का उत्कर्ष है|

…[राकेश]

(Text) © CineManthan & Rakesh


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