राजेश खन्ना ने बहारों के सपने (1967) से लेकर अनुरोध (1977) के बीच के दस सालों में तकरीबन दो दर्जन हिन्दी फिल्मों में हिन्दी सिनेमा के बेहद अच्छे रोमांटिक दृश्य सिनेमा के परदे पर जीवंत किये, वे संवाद से भरे दृश्य हो सकते हैं, या मौन भरे क्षणों से चमकते दृश्य या परदे पर उनके द्वारा प्रस्तुत या उनकी उपस्थिति में प्रस्तुत किये गीत भी हो सकते हैं, जहाँ उनकी अदाकारी ने उनकी ही अभिनय क्षमता का चरम नहीं छुआ है बल्कि अपने से पहले और अपने बाद आये अभिनेताओं द्वारा एक प्रेमी की भूमिका निभाने की क्षमता के सही मूल्यांकन के लिए सिने-अध्येताओं के सामने एक उच्च स्तर सामने रख दिया है| सिनेमा के परदे पर प्रेम को दर्शाने की उनकी कलाकारी से पहले एक गीत का इतिहास जान लेना आवश्यक है|
सन 1948 में हिन्दी सिनेमा में एक फ़िल्म बनी पराई आग, जिसमें संगीत दिया था गुलाम मोहम्मद ने| उसमें एक गीत था, जिसे तनवीर नकवी ने लिखा था और हमीदा बानो ने गाया था|
ब्रिटेन ने हिन्दुस्तान से अपना अधिकार छोड़ते समय इसे काटकर पाकिस्तान नामक एक और देश बना दिया| हिन्दुस्तानी फिल्मों की एक प्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री – नूरजहाँ, बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गयीं| सन 1962 में पाकिस्तान में एक फ़िल्म बनती है, आज़रा, जिसमें संगीत दिया इनायत हुसैन ने, और एक गीत गाया मैडम नूरजहाँ ने|

भारत की फ़िल्म – पराई आग, और पाकिस्तान की फ़िल्म – आज़रा के गीत में आपस में मामूली सा अंतर बनाया गया है| आज़रा के गीत के शुरू में एक शेर जोड़ा गया है [ यह शेर खुद तनवीर नकवी ने लिखा या किसी और शायर की ग़ज़ल के मिसरे को यहाँ रख दिया, यह जानना बाकी है], पहले अंतरे में रुकते रुकते कह भी गए को कहते कहते रह भी गए , बना दिया गया और अंतिम अंतरे में बेताब शब्द को बैचेन कर दिया गया है| (पराई आग और आज़रा, दोनों के गीतों के विडियो अंत में दिए गए हैं|
सन 1975 में उस वक्त के हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े सितारे राजेश खन्ना की एक फ़िल्म प्रदर्शित होती है – प्रेम कहानी| राज खोसला निर्देशित फ़िल्म में राजेश खन्ना, मुमताज़ और शशि कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं और विनोद खन्ना ने अतिथि कलाकार का दायित्व संभाला है| राजेश खन्ना द्वारा परदे पर निभाये महान अभिनय के क्षणों की बात से पहले इसकी जानकारी होना आवश्यक है कि फ़िल्म में यह क्षण क्यों आते हैं?
भारत में ब्रितानी राज के समय 1942 में भारत छोडो आन्दोलन की पृष्ठभूमि में फ़िल्म स्थापित की गयी है| नायक (राजेश खन्ना), अपने बड़े भाई, जो एक गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी है, को ब्रितानी सरकार द्वारा सड़क पर मार दिए जाने से बदली परिस्थितियों के कारण क्रांतिकारी बनने की राह पर चल देता है और अपने जीवन का परिणाम जानकर अपनी प्रेमिका (मुमताज़) का अपमान कर उसे विवश कर देता है कि वह उसे छोड़कर दूर चली जाए| नायिका को नहीं पता कि उसके प्रेमी ने उसके साथ किये वादों को क्यों तोडा? वह अपने अमीर पिता द्वारा सुझाए युवक से विवाह करके दूसरे शहर चली जाती है|
कट टू –
क्रान्ति की राह पर चल पड़े नायक को पुलिस के आक्रमण में ज़ख़्मी हो जाने से दूसरे शहर स्थिति ब्रितानी पुलिस में अधिकारी अपने जिगरी दोस्त (शशि कपूर) के घर में शरण लेनी पड़ती है| उसे पता नहीं है कि नायिका का विवाह उसी के इसी दोस्त से हुआ है| नायिका का पति इस बात से अनजान है कि उसके सबसे घनिष्ठ मित्र और उसकी पत्नी, उसके विवाह से पूर्व आपस में प्रेमी रह चुके हैं| नायिका अपने पूर्व प्रेमी को देख नफरत से भर जाती है वह नहीं चाहती कि वह एक क्षण भी उसके घर में रुके, लेकिन उसका पति अपने दोस्त को कहीं और जाने देने के लिये राजी नहीं है| अपनी पूर्व प्रेमिका को अपने दोस्त की पत्नी के रूप में देख नायक गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने के बावजूद वहां से चले जाने पर उतारू हो जाता है, और दोस्त उसे वहां रोकने पर| दोस्त से छिड़ी बहस में ही नायक बेहोश हो गिर जाता है|
ब्रितानी पुलिस नायक को शहर में ढूंढ रही है और वह पुलिस अधिकारी दोस्त के घर पर ठीक होने की प्रक्रिया में दिन काट रहा है| एक दिन दोनों दोस्त आपस में बाते कर रहे हैं और पुलिस अधिकारी दोस्त नायक से कुछ समय पहले रेलवे स्टेशन पर हुयी बातचीत के आधार पर नायक की प्रेमिका के बारे में पूछता है| नायक कहता है कि उसकी पेमिका का विवाह किसी अन्य से हो चुका है| दोस्त उसकी प्रेमिका को धोखेबाज कहता है तो नायक उसे सुधारता है कि धोखा उसी ने अपनी प्रेमिका को दिया था| दोस्त के जोर देने पर उसे अपनी प्रेमिका के सामने रचाए अपने नाटक की बात बतानी पड़ती है| उन दोनों की बातें सुन रही नायिका को पहली बार पता चलता है कि उसके पूर्व प्रेमी ने उससे विवाह क्यों नहीं किया, एन वक्त पर उसे ठुकरा क्यों दिया?
नए रहस्योद्घाटन से उमड़े भावावेश में वह कहती है कि नायक को अपनी प्रेमिका को सच बता देना चाहिए था, शायद उसकी प्रेमिका किसी और की पत्नी बनने के बजाय उसकी विधवा बनकर जीवन जीना ज्यादा पसंद करती!
नायक नायिका को देखता रह जाता है| उसकी आँखों में इस तरह के भाव उमड़ते हैं जो नायिका के इन बोलों से उसके हैरान होने के लक्षण हैं, और साथ ही नायिका को ऐसा कहने से रोकने के प्रयास भी करना चाहते हैं|
अगले दिन पुलिस अधिकारी दोस्त ड्यूटी पर चला जाता है और नायक नायिका कक्ष में मौन साधे उपस्थित हैं|
रेडियो पर नूरजहाँ द्वारा गाया फ़िल्म आज़रा का गीत बजता है और खिड़की पर जा खड़ी हुयी नायिका बाहर देखकर अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है| नायक-नायिका के भावों को व्यक्त करने से अच्छा क्या उपयोग इस गीत (कुछ भी न कहा और कह भी गये, कुछ कहते कहते रह भी गए) का हो सकता है?

यूं तो समय और काल के हिसाब से राज खोसला को 1942 के बाद लेकिन 1947 से पहले के वर्षों में नूरजहाँ की गायिकी में इस गीत को बजते हुए नहीं दिखाना था क्योंकि नूरजहाँ ने तब तक इस गीत को गाया नहीं था, अगर किसी गैर-फ़िल्मी स्वरूप में उन्होंने इस गीत को पहले भी गाया हो और उसका रिकॉर्ड रिलीज किया गया हो तो बात अलग है, क्योंकि तब रेडियो या ग्रामोफोन पर इस गीत को बजता दिखाया जा सकता था| उस लिहाज से फ़िल्म में इसका उपस्थित होना संशयात्मक है, और यह एक चूक भी हो सकती है| लेकिन फ़िल्म माध्यम में इतनी छूट निर्देशक लेते रहे हैं|
…[राकेश]
(Text) © CineManthan & Rakesh
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