हिन्दी की प्रसिद्द पत्रिका – निकट, का नया अंक (जनवरी – अप्रैल 2026) “आत्मकथात्मक प्रेम-कथा विशेषांक” है और इसमें सुप्रसिद्ध लेखक प्रियंवद की प्रेमकथा – उस रात की बारिश में, को भी सम्मिलित किया गया है| प्रियंवद उन लेखकों में से हैं जिनकी लिखी प्रेम कहानियां अन्य लेखकों की लिखी प्रेम कहानियों से अलग होती हैं| भाषा में, शब्दों से जो चित्र उमड़ कर आते हैं उनकी अभिव्यक्ति से पाठक लगातार महसूस करता जाता है कि यह कहानी कुछ अलग किस्म से उसके सामने उत्पन्न हो रही है|
“उस रात की बारिश में” शुरू से अंत तक पहुँचते हुए अपना रूप बदलती जाती है| शुरुआत में जहाँ यह विचार के स्तर पर घट रही है बीच में यह घटना प्रधान हो जाती है और अंत में एक थ्रिलर के अंत की तरह कथा नायक और पाठक दोनों को झटका देती है| इसके ट्रीटमेंट के स्तर पर इसे एक थ्रिलर रुपी प्रेम-कहानी भी कहा जा सकता है| इसमें नायक योजना बना कर नायिका के अनजाने ही उसे माध्यम बना अपनी इच्छा पूरी करना चाहता है, इच्छा पूरी करता भी है लेकिन तत्पश्चात उसे परिणाम उसके सोचे हुए से अलग मिलते हैं और उसे यह जानकर झटका लगता है कि एक वही नहीं जो योजना बना उस पर काम कर सके बल्कि नायिका भी ऐसा ही कर सकती थी और कर गयी है|
वास्तव में तो इसे प्रेम कहानी नहीं वरन लालसा कहानी कहा जा सकता है क्योंकि नायक-नायिका दोनों में से कोई भी एक दूसरे से प्रेम नहीं करता लेकिन एक दूसरे से मिलना और नियमित मिलते रहना उनकी आदत अवश्य है| इसे प्रेम कहानी कहने में इसलिए भी हिचक हो सकती है कि दोनों में से कोई भी कभी भी अपने प्रेम का प्रदर्शन नहीं करता| लेकिन यह भी सत्य है कि कथा में प्रेम उभरता भी है|
कहानी का एक अंश ऐसा है जिसमें जीवन में आशा का महत्त्व उभरता है, जीवन अपने आप में खूबसूरत लगने लगता है|

नायिका का छोटे बच्चे की हरकत का साक्षी बनना कथा को एक निश्चित मोड़ दे देता है और यह मानसिक संसार से वास्तविक जगत की एक घटना पर केन्द्रित हो जाती है| हालांकि यह भी संभावना है कि शायद यह घटना घटी ही न हो और यह नायिका के मन की ही एक कल्पना हो| नायक भी उसे इधर उधर पढी कवितायें कहानियां सुनाया करता है और उसी की तर्ज पर नायिका ने भी यह घटना कल्पित कर उसे सुना दी हो| लेकिन यह घटना अपने आप में बेहद खूबसूरत है क्योंकि अगर ऐसा वास्तव में ही हो जाए तो उस बच्चे की मासूम हरकत पर सभी मोहित हो जायेंगे|
नायक को नायिका द्वारा सुनायी गयी घटना का आकर्षण नहीं मोहता लेकिन उसे सुनाते हुए जिस परम सुख से नायिका गुज़र रही है, वह स्थिति उसे प्रभावित कर जाती है| हालांकि ऐसी स्थितियों से नायिका पहले भी नायक के सामने गुज़रती रही है लेकिन इस बार उसकी स्थिति देख नायक के अन्दर कामना उत्पन्न हो गयी है|
अगर बच्चे की हरकत नायिका के पक्ष का आलंबन है तो उस घटना को सुनाती नायिका की स्थिति नायक के पक्ष का आलंबन है| नायिका को जो सुख बच्चे की हरकत से मिला है उसे वह पुनः पाना चाहती है| नायक को नायिका को सुख की ऐसी अवस्था, जिसमें नायिका के होश उड़ चुके हैं और वह कहीं किसी और संसार में विचरण करती दिखाई दे रही है, में देखने से यह सूझता है कि जब नायिका केवल एक घटना के सुख से बिंध कर ऐसे आवेग को प्राप्त कर रही है तो यह दैहिक आनंद के चरम पर पहुँच कर किस तरह का व्यवहार करेगी? अब वह नायिका को उस स्थिति में ले जाना चाहता है|
नायक-नायिका के विवरण और नायक के बसेरे के वर्णन को देखा जाए तो नायक-नायिका निर्मल वर्मा की कहानियों के पात्र लगते हैं, ऐसा ही लगता है कि वे उनके कथा संसार से ही निकल कर आये हैं| जहाँ पात्रों के देश के ही होने का अक्सर आभास नहीं होता और ऐसा भी लगता है कि ये चरित्र कहीं विदेश की धरती के प्रतिनिधि लगते हैं| लेकिन कथावस्तु के सामने चरित्रों का देश, काल और वातावरण में रमना महतवपूर्ण नहीं लगता| ऐसा ही यहाँ भी है कि कथा के वर्णन के अनुसार समाज से इतना कटे हुए और ऐसी स्वच्छन्दता से जीते हुए चरित्र शायद ही वास्तविक जीवन में मिलें लेकिन कथा में वे रोचक लगते हैं क्योंकि कथा रोचक है|
O. Henry की प्रसिद्द कहानी – The Gift of the Magi, में नायक नायिका एक दूसरे के प्रेम में समर्पण करते हुए अपनी सबसे प्रिय वस्तुओं का त्याग कर देते हैं ताकि क्रिसमस के अवसर पर अपने प्रिय को उसकी वांछित वस्तु का उपहार दे सकें| अपने अपने उपहार पाकर दोनों स्तब्ध रह जाते हैं|
प्रियंवद की कहानी में भी ऐसी ही स्तब्धता नायक के हिस्से आती है| यहाँ नायक नायिका को प्रेम की वजह से नहीं बल्कि अपनी एक लालसा पूरी करने के लिए उपयोग में लाने की योजना पर अमल करता है लेकिन उसे झटका लगता है अंत में नायिका के रहस्योद्घाटन से| यह कहानी एक तरह से ओ हेनरी की कहानी की एंटी कथा है| वही असर उलट रूप में इसमें इस्तेमाल किया गया है|
ओ हेनरी की कहानी में देने का भाव जाग्रत है तो प्रियंवद की कहानी में प्राप्ति का भाव सर्वोपरि है|
कथाकार प्रियंवद का कथा बुनने और उसे प्रस्तुत करने के क्राफ्ट पर कुशल नियंत्रण इस कथा में बखूबी प्रदर्शित होता है|
…[राकेश]
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