वर्तमान के अभिनेताओं से उलट, जो राजनीतिक रूप से उदासीन रहते हैं, अभिनेता दिलीप कुमार राजनीति में बेहद सक्रिय रहे| उन्होंने कांग्रेस के लिए बहुत से चुनावों में मोर्चा संभाल कर प्रचार किया| वे अपनी सामाजिक एवं राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुड कर नहीं भागे|
भारत में आपातकाल के दौरान संजय गांधी के विवादास्पद हो गए “परिवार नियोजन” कार्यक्रम का समर्थन करने के लिए सिनेमा की हस्तियों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अभिनेता दिलीप कुमार कहते हैं कि सन 1952 में हिन्दुस्तान की आबादी 52 करोड़ थी जो पिछले 25 सालों में बढ़कर दुगनी से ज्यादा होकर 60 करोड़ के आंकड़े को पर कर गई है और अगर आबादी के बढ़ने का यही आलम रहा तो अगले 25 सालों में हिन्दुस्तान की आबादी 150 करोड़ हो जायेगी|”
दिलीप कुमार उस समय के आंकड़ों के आधार पर जो अनुमान बता रहे थे भारत की आबादी 2002 में 150 करोड़ तो नहीं लेकिन 100 करोड़ के आंकडें को तो पार कर ही गयी थी|
दिलीप कुमार ने सही कहा था कि इस कदर तेजी से बढ़ती आबादी के लिए किसी भी तरह की और कितनी ही पंचवर्षीय योजनायें बना लें वे नाकाफ़ी ही रहेंगीं| और यही हुआ भी है|
“दिलीप कुमार” आगाह करते हैं कि मुल्क की तरक्की के लिए इस और ऐसे मुद्दे पर सियासत नहीं होनी चाहिए| लेकिन इस मुद्दे पर तब भी जम कर सियासत हुयी और आज भी जब भी देश में आबादी पर नियंत्रण के लिए सभी वर्गों के लिए एक सामान पॉलिसी लागू करने की बात उठती है विभिन्न राजनीतिक दल अपने सत्ता-हित हेतु सियासत शुरू कर देते हैं|
“संजय गांधी” के परिवार नियोजन कार्यक्रम का विरोध समाज के हरेक वर्ग की तरफ से हुआ था क्योंकि उसमें जनता से जबरदस्ती करने की मुहीम भी सम्मिलित थी|
यह पूर्णतः और स्पष्ट दिखाई देने वाला सत्य है कि भारत के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि अपनी 150 करोड़ की आबादी में सभी को सुविधासंपन्न जीवन प्रदान कर सके| बढ़ती आबादी की समस्या का समाधान ढूंढना केवल सत्ताधारी दल, अन्य राजनीतिक दलों, और नीति निर्धारक प्रशासकों का ही कर्तव्य नहीं है वरन यह जिम्मेदारी हरेक नागरिक की है भले ही वह किसी जाति, सम्प्रदाय और वर्ग से आता हो|
वर्तमान में युवाओं की बहुत बड़ी संख्या पर भारत तभी इतरा सकता है जब भारत के पास अपने इन युवा नागरिकों की बढ़ोत्तरी के लिए सुयोग्य शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा और रोज़गार संबंधी सुविधाएं देने लायक संसाधन एवं योजनायें हों| बेरोजगार युवा भीड़ न केवल परिवार, समाज और अंततः देश के लिए न केवल चिंता का कारण है और होनी चाहिए बल्कि बहुत सी सामाजिक बुराइयों और अपराधों की जननी भी यही बेरोजगारी का समस्या है|
आश्चर्य की बात है कि आपातकाल के समय विपक्ष में रहने वाले दल (तब जनसंघ और आज भाजपा) की आज केंद्र में सरकार है और तब की सत्तानशीन पार्टी कांग्रेस आज केंद्र में विपक्ष की भूमिका में है|
देश हित में होना तो यह चाहिए था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए और तमाम अन्य विपक्षी दल, भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर दबाव डालें कि आबादी नियंत्रण संबंधी कोई नीति सरकार बनाए और लागू करे| लेकिन ऐसा संभव होता दिखाई नहीं देता, क्योंकि कोई अगर भारत में आबादी नियंत्रण क़ानून की बात भी करता है तो बहुत से दलों के नेता ऐसे किसी क़ानून को एक वर्ग विशेष के हितों के विरुद्ध बताकर ऐसे कानून की अवधारणा का ही विरोध कर देते हैं|
देश बचेगा तब ही तो सियासत कर पायेंगे राजनीतिक दल| विकसित देश की सियासत के आनंद भारत के राजनीतिक दलों के नेता लेना नहीं चाहते और बेकारी, भूखमरी, बीमारी आदि के बोझ से दबी कुचली जनता के सीमित सपनों पर आधारित राजनीति में ही मग्न हैं|
ऐसा कहा जा सकता है कि जनता के लिए जो अच्छा है उसे राजनेता होने नहीं दे रहे हैं| न्यायपालिका के ऊपर भी इतनी बड़ी आबादी के मुकदमों का बोझ है सो वे भी इस ओर ध्यान देकर की सरकारों को निर्देशित करें, ऐसी संभावना दूर की कौड़ी ही लगती है|
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमीसुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमीहर तरफ़ भागते दौडते रास्ते
हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमीरोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमीज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र
आख़िरी साँस तक बेक़रार आदमी
(निदा फाजली)
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