स्त्री-पुरुष के मध्य पनपे प्रेम पर उच्च स्तरीय लेखन करने की आकांक्षा के भाव से दुनिया का हर लेखक एवम कवि अवश्य ही गुज़रता है| हर लिखने वाला चाहता है कि वह एक अमर प्रेम गीत लिख दे फिर चाहे वह प्रेम में मिलन का हो या प्रेम में बिछोह और वियोग का हो| और यह इच्छा उसके जीवन में कई बार सिर उठाती है और कुछ रचियता उम्र के अलग-अलग पड़ावों पर प्रेम के अलग- अलग रुपों को अपनी रचनाओं के माध्यम से खोजने का प्रयास करते हैं। साहित्य हो या फिल्में, प्रेम में वियोग की स्थिति में स्त्री की कोमल भावनाओं को प्रदर्शित करने वाली सामग्री बहुतायत में मिल जाती है पर पुरुष की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्त्ति कम ही मिलती है।

पुरुष भी वियोग में आँसू बहा सकता है। भगवती चरण वर्मा अपनी एक प्रेम कविता में प्रेमिका के वियोग से पीड़ित प्रेमी के भावों को अभिव्यक्त्ति देते हैं। प्रेम किसी भी व्यक्त्ति (स्त्री या पुरुष) की ऊर्जा के स्तर को बदल डालता है, चाहे प्रेमीगण प्रेम में संयोग की खुशी से लबरेज़ हों या बिछोह की पीड़ा से गुजर रहे हों, उनकी ऊर्जायें अलग हो जाती हैं, दोनों ही परिस्थितियों में रात की नींद की गुणवत्ता, प्रकृति और अवधि बदल जाती है। दिमाग और मन की चेतना का स्तर अलग हो जाता है। देखने की, महसूस करने की और सहने की क्षमता अलग हो जाती है। संवेदनशीलता अलग हो जाती है।

वियोग में प्रेमीगण अपने प्रेम की भावनाओं को अपने प्रेमी तक किसी भी तरह पहुँचाना चाहते हैं। कभी उन्हे हवा से आस बंधती है कि जो हवा यहाँ उनकी खिड़की के बाहर बह रही है वह सीधे चलकर उनके प्रेमी के पास जायेगी और उनके प्रेम का संदेश पहुँचा देगी, कभी उन्हे आसमान में चमकते चाँद को देखकर ढ़ाढ़स बँधता है कि यही कुछ करेगा।

भावना के जगने की देर है कि नींद उड़ जाती है।

भगवती बाबू ने वियोग में जल रहे प्रेमी पुरुष के मनोभावों को बड़ी ही खूबसूरती से नीचे दी गयी कविता में उकेरा है!

क्या जाग रही होगी तुम भी?
निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये!
अपना यह व्यापक अंधकार,
मेरे सूने-से मानस में, बरबस भर देतीं बार-बार;
मेरी पीड़ाएँ एक-एक, हैं बदल रहीं करवटें विकल;
किस आशंका की विसुध आह!
इन सपनों को कर गई पार
मैं बेचैनी में तड़प रहा;
क्या जाग रही होगी तुम भी?

अपने सुख-दुख से पीड़ित जग, निश्चिंत पड़ा है शयित-शांत,
मैं अपने सुख-दुख को तुममें, हूँ ढूँढ रहा विक्षिप्त-भ्रांत;
यदि एक साँस बन उड़ सकता, यदि हो सकता वैसा अदृश्य
यदि सुमुखि तुम्हारे सिरहाने, मैं आ सकता आकुल अशांत

पर नहीं, बँधा सीमाओं से, मैं सिसक रहा हूँ मौन विवश;
मैं पूछ रहा हूँ बस इतना- भर कर नयनों में सजल याद,
क्या जाग रही होगी तुम भी?

बेहद आश्चर्य का विषय है कि प्रेम में वियोग की ऐसी शानदार कविता को कभी हिन्दी सिनेमा में स्थान नहीं मिला| मणि कौल जैसे निर्देशक, जिन्होंने हिन्दी साहित्य को लेकर हिन्दी सिनेमा में कुछ प्रयोग किये, और जयदेव जैसे साहित्य के पारखी संगीतकार की दृष्टि से भी यह कविता बच कर निकल गयी|

पदमभूषण, राज्यसभा सांसद रहे श्री भगवती चरण वर्मा ने चित्रलेखारेखाभूले-बिसरे चित्र (साहित्य अकादमी से पुरस्कृत), सामर्थ्य और सीमासबहि नचावत राम गोसाईंसीधी सच्ची बातेंटेढ़े मेढ़े रास्तेपतन, और तीन वर्ष आदि प्रसिद्ध पुस्तकें लिख कर अपनी गद्य-रचना से हिन्दी जगत को अपने लेखन का प्रशंसक बनाया था। उच्च स्तरीय गद्य के साथ साथ उन्होने उच्च कोटि के काव्य की रचना भी की।

…[राकेश]


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