पाकिस्तानी फ़िल्म “कमली” तीन मुख्य स्त्री चरित्रों और कुछ अन्य स्त्री चरित्रों, और उनके इर्द गिर्द कुछ पुरुषों की मेहमान भूमिकाओं जैसी उपस्थितियों को समेटे हुए स्त्री जगत को दर्शाती है|

तीनों मुख्य स्त्री चरित्र अपनी अपनी कैद में हैं| जहां सबसे मुख्य चरित्र हिना (सबा क़मर) अपनी उकताई हुयी कैद भरी ज़िंदगी से बाहर निकलने की छटपटाहट से मचल रही है, वहीं उसकी दृष्टिहीन ननद सकीना (सानिया सईद) की सारी जद्दोजहद हिना को घर और रिश्तों की हदों में बंद रखने की कवायद से भरी है|

तीसरी स्त्री चरित्र जीनत (नीमरा बुखा) एक पेंटर और फोटोग्राफर है और अपने रईस पति – मालिक नादिर (ओमेर राना) के साथ मरते हुए रिश्ते में फिर से जान डालने के लिए उसके पास किसी किस्म की क्षमता का न होना ही उसकी छटपटाहट है| उसकी कला उसे शांति या संतोष देने में सक्षम नहीं है| उसे यह सत्य डराता है कि अगर उसके कोई संतान होती तो उसके वैवाहिक जीवन में परिवार को बांधे रखने की शक्ति अपने आप विकसित हो जाती|

धनोपार्जन करने के लिए बहरीन गया हिना का पति सक़लैन आठ साल से अपने मुल्क नहीं लौटा है और सकीना 24 घंटे इसी फिराक में रहती है कि हिना अपने पति के इंतज़ार में अपने को एक पाक स्त्री बनाए रखे| हिना की हर हरकत को उसकी दृष्टिविहीन आँखें, अपने कान,नाक और हाथों के स्पर्श के द्वारा देखा करती हैं|

हिना आठ साल लम्बे इंतज़ार से बेहद उकता चुकी है, वह जीवन के इन्द्रधनुषी रंगों को देखना चाहती है, जीवन के हर पहलू को जीना चाहती है लेकिन उसका जीवन एक विवाहित स्त्री की हदों में सीमित हो चुका है, व एक तरह से अपनी दृष्टिविहीन ननद की सहयात्री बन कर जीवन की यात्रा एक ऐसे वाहन में कर रही है जिसे उसकी ननद अपनी समझ से और अनुमान से चला रही है| हिना घुट रही है ऐसे जीवन में|

उन सबकी इस स्थिति में एक क्रांतिकारी बदलाव आता है जीनत के घर आई एक आलिमा के भाषण से| आलिमा बताती है कि इस्लाम में अगर किसी विवाहिता का पति चार साल से गायब हो तो ऐसी स्त्री ऐसे विवाह की गिरफ्त से छूट सकती है और इद्दत की अवधि व्यतीत करने के पश्चात पुनः विवाह कर सकती है|

आलिम की इस व्याख्या का असर तीनों स्त्री चरित्रों हिना, सकीना और जीनत पर अपने अपने हितों अनुसार होता है|

सकीना इस बात को सुनकर गुस्से में आगबबूला हो जाती है, उसे लगता है कि इस बात को सुनकर अमल में लाने से हिना, उसके भाई का इंतज़ार नहीं करेगी और उसे छोड़कर किसी और पुरुष से निकाह कर लेगी|

जीनत को अपने बुझते हुए रिश्ते में एक आशा दिखाई देती है और वह अपने पति मलिक से निकाह करने के लिए हिना को तैयार करने के लिए हिना और सकीना के घर प्रस्ताव लेकर जाती है| उसे लगता है कि एक गरीब और कम पढी लिखी हिना उसके शौहर की दूसरी पत्नी बनने के बावजूद उसके लिए खतरा नहीं रहेगी|

हिना ने घर की सकीना की कैद से बाहर जंगल में एक दुनिया बसा रखी है, जिसका नायक अमलतास नामक एक फोटोग्राफर है| आलिमा की बातों से उसे रूहानी खुशी मिलती है कि अब वह अपने सपनों का जीवन वास्तव में जी सकेगी, अपने जंगल के प्रेमी से निकाह करके|

सकीना को इसी बात का डर है कि कहीं हिना उसकी हिदायतों से बाहर न निकल जाए|

अपने अपने हितों की पूर्ति हेतु हिना और सकीना में भावनात्मक और शारीरिक जंग होना लाजिमी है|

जीनत खुद ही अपने शौहर के लिए हिना की रजामंदी मांगने गयी थी लेकिन अपने शौहर द्वारा भी इस योजना में चुपचाप बिना किसी किन्तु परन्तु के सम्मिलित हो जाने से वह असुरक्षित और ईर्ष्यालु हो जाती है| उसे लगता है कि काश एक बार तो उसके शौहर ने इस कदम का विरोध किया होता, उसके साथ निकाह में इन्हीं परिस्थितियों में संतुष्टि दिखाई होती| कुंठित जीनत की व्यथा अपनी कलाकारी पर निकलती है| और वह अपनी पेंटिंग्स और अपने द्वारा खींचे गए फोटो नष्ट करने लगती है|

जब दर्शकों को लगता है कि कुंठित स्त्री जीवनों में कम से कम हिना अपनी पसंद का जीवन जीना शुरू कर सकती है, फ़िल्म एक नया मोड़ ले लेती है और जो वास्तविक लगता था उसे एक आभासी संसार बना डालती है और यहाँ फ़िल्म में संपादन की गलती इस भाग को कमजोर बना डालती है|

वैसे तो फ़िल्म शुरू से ही एक अवास्तविक स्थल की कथा लगती है जहां एक युवा स्त्री, जिसका पति बरसों से घर नहीं आया, वह दिन रात एकांत में जंगल में घूमती है और गाँव के और आसपास के पुरुष उसकी इस जंगली यात्रा से गायब ही रहते हैं| गाँव में सब सच्चरित्र पुरुष बसते हैं जिनमें किसी की भी निगाह में हिना के लिए लालच नहीं उमड़ता| यहाँ तक कि अपनी पत्नी संग विवाह में असंतुष्ट रईस मलिक भी एक धर्मभीरु पुरुष की भांति हिना से पेश आता है| सकीना की उम्र भी हिना से बहुत ज्यादा नहीं है और वह दिन भर अकेली ही रहती है घर में| तो उस लिहाज से फ़िल्म की सारी स्त्रियाँ पुरुषों की ओर से महफूज हैं|

हिना और अमलतास के बीच के प्रसंग डी एच लारेंस के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास लेडी चटर्जीज़ लवर से प्रेरित लगते हैं|

फ़िल्म ईरानी फिल्मों की तरह मंथर गति से आगे बढ़ती है| आउटडोर शूटिंग आकर्षक लगती है और सारे स्त्री चरित्रों के मनोभावों को फ़िल्म बखूबी प्रदर्शित कर पाती है|

अगर हिना के जंगली जीवन को ऐसा मोड़ देना था जैसा फ़िल्म ने अब दिया है तो फ़िल्म में संपादन की गलती नहीं रहने देनी थी क्योंकि उस गलती ने फ़िल्म के इस भाग के अस्तित्व पर ही सवालिया उंगलियाँ उठा दीं|

निर्देशक सरमद सलमान खूसट को अगर जादूई यथार्थवाद ही अपनाना था तो अमलतास के चरित्र को और ज्यादा सावधानी से प्रस्तुत करना था| उनकी एक दो गलतियों ने अच्छी जा रही फ़िल्म को नीचे खींच लिया| निर्देशक को ऐसी छूट नहीं होती है कि किसी चरित्र के दृष्टिकोण से कुछ दिखाते हुए सहसा वह फिल्म को उस ट्रैक से उतार दे और थोड़ी देर बाद फिर से उसी ट्रैक पर चढ़ा दे|

फ़िल्म अच्छी लगती है और दर्शक को बेहद धीमी गति के बावजूद आकर्षण में बांधे रखती है पर अंत में यह बंधन ढीला पड़ जाता है|

…[राकेश]


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