अच्छा फ़िल्मी गीत लिखना क्रिकेट की भाषा में ऐसा है कि ऐसा बल्लेबाज हो जो हर तरह की गेंद पर टीम की आवश्यकता के अनुसार रन बना सके| फ़िल्मी गीत महज कविता नहीं होती, और न वह कविता की तरह स्वतंत्र विधा है| वह ऐसी कविता होती है जो कि फ़िल्म के विषय और फ़िल्म के चरित्रों, जिन पर गीत फ़िल्माया जाना है, उन पर सटीक लग सके|
बड़े से बड़ा साहित्यिक कवि फ़िल्मी गीत भी लिख दे, यह कतई आवश्यक नहीं है| यह अवश्य हुआ है कि हिंदी सिनेमा के संगीत संसार में ऐसे श्रेष्ठ गीतकार सक्रिय रहे हैं जो अच्छे कवि भी रहे हैं| और उन्होंने फिल्मों में भी उन्हें दी गयी धुनों पर मधुर लगती तुकबन्दियाँ न रच कर अर्थपूर्ण गीत लिखे हैं जो फ़िल्म विशेष पर तो सटीक बैठे ही, फ़िल्म के बाहर भी उनका अस्तित्व बना और उन्होंने श्रोताओं के साथ पाठकों को भी प्रभावित किया|
लगभग 94 सालों का इतिहास जब बन चुका है हिंदी फ़िल्म संगीत का तब यह आसानी से देखा समझा जा सकता है कि कितनी ही फिल्मों का संगीत शानदार होने के बावजूद फ़िल्म के विषय के अनुरूप नहीं था और बहुत बार ऐसा भी हुआ कि बेहतरीन संगीतकार-गीतकार-गायकों की टीम के सामूहिक प्रदर्शन के कारण बहुत ही साधारण फिल्मों पर उनके संगीत अलग से चमकते हैं| कुछ फिल्मों को तो लम्बी उम्र ही उनके अमर संगीत की वजह से मिलती रही है|
एक से बढ़कर एक संगीतकार फ़िल्मी संगीत के परिदृश्य पर उदित होते रहे हैं लेकिन उनमें सभी फ़िल्म के विषय के अनुरूप संगीत रचने की कला में माहिर नहीं थे ऐसा ही गीतकारों के साथ भी हुआ| बल्कि इस मामले में गीतकार संगीतकारों से ज्यादा आगे निकल गए|
निर्देशक, संगीत निर्देशक, गायक, और निर्माता विशाल भारद्वाज की चर्चित फ़िल्म ओमकारा (2006) आई तो इसके कई गीत अपनी प्रकृति के अनुरूप अलग अलग पसंद वाले श्रोताओं के पसंदीदा गीत बन गए| फ़िल्म में विविधता लिए हुए गीत हैं, जहां मंथर गति से चलते “ओ साथी रे” और “जाग जा” और दर्शन का भाव लिए विरह गीत “नैना ठग लेंगे” है तो मुजरे का आधुनिक रूप “नमक इश्क़” भी देखने सुनने को मिला, आल्हा शैली में पगा चरित्र की वीरता का वर्णन करता – सबसे बड़े लड़ैया ओमकारा, भी है और इन्हीं सबके बीच एक हुल्लड़बाज गीत – बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया, भी है|
बीड़ी जलाई ले, प्रसिद्द हुआ और पुरस्कारों में नामांकित हुआ तो 2007 के Zee Cine Awards के समारोह में गायिका अलका याग्निक, जिन्हें फ़िल्म – कभी अलविदा न कहना, के गीत – तुम्हीं देखो न (जावेद अख्तर) के लिए पुरस्कार मिला, ने मंच से बीड़ी जलाई ले गीत पर कटाक्ष किया यह कह कर कि – “बीड़ी और हुक्के ” के दौर में उन्हें इस गीत विशेष के लिए पुरस्कार मिलना बहुत अच्छा लग रहा है|
हिंदी सिने उद्योग में कार्यरत लोगों में और हिंदी सिनेमा और विशेषकर हिंदी सिने संगीत के प्रशसंकों में कुछ के दिल को अलका याग्निक की टिप्पणी ने राहत पहुंचाई होगी और कुछ को अलका याग्निक की काव्य समझ पर तरस आया होगा और कुछ को उन पर क्रोध भी आया होगा|
रोचक घटनाक्रम में कुछ अरसा बाद ही जावेद अख्तर और शबाना आजमी करण जौहर के टीवी शो कॉफ़ी विद करण में मेहमान बनकर उपस्थित हुए और वहां दोनों ने इस आत को कहा कि जावेद साहब को रश्क होता है कि बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया जैसा गीत उन्होंने नहीं लिखा|
गुलज़ार साब फ़िल्म की परिस्थितियों के अनुरूप बेहद उच्च कोटि की काव्यात्मक अभिव्यक्ति रचने के लिए प्रसिद्द हैं और उन्होंने अपनी इस कला को पीछे छह दशकों में बार बार सिद्ध किया है|
ओमकारा के इस गीत – ” बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया ” को किस पृष्ठभूमि में रचा गया है?
फ़िल्म के नायक- बाहुबली ओमकारा (अजय देवग्न) ने राजनेता तिवारी (नसीरुद्दीन शाह) के आदेश पर चुनाव लड़कर सीधे राजनीति में आने का निर्णय लिया है इसलिए उसने अपने स्थान पर नया बाहुबली नियुक्त किया है| अब यहाँ स्थितियां जटिल हैं| ओमकारा का सबसे नजदीकी, विश्वसनीय और लम्बे समय का साथी लंगड़ा त्यागी (सैफ अली खान) रहा है, जो उसके लिए जीवन रक्षकढाल का काम भी करता रहा है, और सभी को, लंगड़ा और राजनेता तिवारी सहित, अपेक्षा है कि ओमकारा लंगड़ा को ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करेगा लेकिन एन वक्त पर राजतिलक करते हुए लंगड़ा को छोड़कर ओमकारा , अपने गुट में नए नए आये कॉलेज में पढ़ रहे युवा केसू फिरंगी (विवेक ओबरॉय) को नया बाहुबली बना देता है| सभी इस निर्णय अचंभित हैं, लंगड़ा पर गाज करती है लेकिन वह अपने मनोभावों पर काबू पाकर टीले के ऊपर बने मंदिर से नीचे खडी भीड़ को चीख कर नए बाहुबली का नाम बताता है|
राजनेता तिवारी, ओमकारा के इस निर्णय से आश्चर्यचकित है और हैरानी में इसका कारण पूछता है तो ओमकारा जवाब देता है कि आने वाले इलेक्शन और भविष्य में केसू जैसे पढ़े लिखे बाहुबली की आवश्यकता पड़ेगी और वह कॉलेज से युवाओं को जोड़ेगा|
राजनेता पूछता है,”और लंगड़ा?’
ओमकारा विश्वास से कहता है,”अपना भाई है, समझ जायेगा“|
ओमकारा को तो इस बात पर विश्वास है कि उसके प्रति भक्ति और स्नेह के कारण उसके द्वारा लंगड़ा के प्रति किये गए अन्याय को लंगड़ा सहन कर जाएगा लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?
लंगड़ा की ओमकारा के प्रति जैसी श्रद्धा थी वैसी वह ओमकारा के नवनियुक्त बाहुबली केसू फिरंगी के प्रति भी रखेगा यह अपेक्षा अवास्तविक है| लंगड़ा ने बरसों ओमकारा के सबसे विश्वसनीय साथी के रूप में बिठाये हैं, उसके लिए औरों की जान ली है, अपनी जान को कई बार जोखिम में डाला है, केसू फिरंगी उनके गुट में नया रंगरूट है और अभी कल तक वह लंगड़ा से सारी बातें सीखा करता था, ऐसे में वरिष्ठ लंगड़ा, जो कि इस सूचना के बाद ही कि अब ओमकारा नया बाहुबली नियुक्त करेगा, यह मान कर बैठा था कि वही इस पद के सर्वथा योग्य है, और वही क्यों सारे लोग यही मान कर चल रहे थे कि वही नया बाहुबली बनेगा, केसू फिरंगी की सेवा भी वैसे ही करेगा जैसी उसने ओमकारा की बरसों की है, ऐसा बहुत मुश्किल है|
ओमकारा ने यह अव्यवहारिक कदम उठाया है| इसके परिणाम तो सुखद हो नहीं सकते| उसके अपने प्रति वफादारी उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के प्रति भी उसके वरिष्ठ साथियों की रहेगी यह सोचना उसके कुशल नेतृत्व की योजना पर प्रश्न चिह्न लगता है|
केसू फिरंगी के लिए भी ओमकारा का यह कदम अप्रत्याशित है और वह तो बाहुबलियों के इस गिरोह में सबका छोटा भाई बनकर ही अपने को खुशनसीब मानता था| इस नई मिली जिम्मेदारी के कर्तव्य से वह परिचित नहीं है| एक नृत्यांगना बिल्लो रानी से उसका दुतरफा प्रेम संबंध बन गया है| और बिल्लो ओमकारा के गाँव में इस सारे बदलाव के अवसर पर आयोजित समारोह में नृत्य करने आई है| पुलिस, नेता और अपराधियों के बीच के नेक्सस के सारे चरित्र इस अवसर पर उपस्थित हैं| ओमकारा समारोह स्थल पर उपस्थित न रहकर अपने घर में अपनी प्रयेसी डॉली (करीना कपूर) के साथ प्रेम के क्षणों को जी रहा है|
ओमकारा और डॉली के मध्य एक अन्य चरित्र है रज्जो (दीपक डोबरियाल) जिसके साथ डॉली के पिता ने उसका विवाह निश्चित किया था लेकिन ओमकारा के लिए लंगड़ा अपने पुराने दोस्त रज्जो की बारात को बीहड़ों में रोक देता है और रज्जो को धमकी देता है कि वह इस विवाह की बात भूल जाए| ओमकारा डॉली को अपने साथ ले जाता है|
ओमकारा द्वारा की गयी अपनी उपेक्षा लंगड़ा को बर्दाशत नहीं होती और वह रज्जो को ओमकारा के विरुद्ध भड़काता है| लंगड़ा को केसू फिरंगी की तीन कमजोरियां- शराब, स्त्री और जल्दी आ जाने वाला क्रोध, पता हैं, और वह ऐसा कुछ करना चाहता है जिससे केसू फिरंगी ओमकारा की निगाहों से नीचे गिर जाए|
गाँव में समारोह के समय केसू फिरंगी प्रसन्नता में सातवें आसमान पर है| बिल्लो चमक बहार, उसकी प्रेमिका, उसके साथ है, और वह नया नया बहुबाली बना है तो उस पद की शक्ति से उत्साहित है|
पुरुषों की इस सभा में बिल्लो अकेली स्त्री है| बाकी सभी के लिए बिल्लो एक नृत्यांगना है जिसे वे बरसों से देखते आ रहे हैं और उनकी कामुकता को भड़काने वाली नृत्यांगना से इतर वे उसका कोई और अस्तित्व नहीं समझते हैं| जबकि अब केसू फिरंगी उसके प्रेमी के रूप में इस समारोह में उपस्थित हैं तो उसकी आशा है कि बिल्लो को बाहुबली की प्रेमिका के तौर पर सभी देखें और सम्मान दें|
इस पृष्ठभूमि में गुलज़ार साब ने “बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया” गीत की रचना की| इस गीत की हरेक पंक्ति के कम से कम दो रूप तो हैं ही|
पुरुषों की इस सभा में बाकी सभी के लिए यह गीत उनके पौरुष यौन इच्छाओं के सार्वजनिक कामुक प्रदर्शन का गीत है| उन सबने पहले भी ऐसे नृत्य प्रदर्शनों में बिल्लो को छुआ होगा लेकिन केसू के लिए अब हर बात के मायने बदल चुके हैं| यह समारोह उसके और बिल्लो के एक दूसरे के नजदीकी संबंध को दर्शाने का माध्यम बन गया है| उन्हें मिली गीत की हरेक पंक्ति शारीरिक स्तर का अर्थ रखती है| उनके लिए हरेक पंक्ति ग्रामीण वयस्क कहावत – सर्दी जाए या तो रुई से या दुई से, के अर्थ को चिरतार्थ करती है लेकिन उन्हीं पंक्तियों के अर्थ लंगड़ा (और रज्जो) के मुख से अलग रूप में सामने आते हैं|
क्षेत्रीय फिल्मों और गीतों में ऐसे विषय पर धमाचौकड़ी मचाने वाले गीत मिल जायेंगे लेकिन उन्हें अश्लील से कमतर श्रेणी में रखना किसी भी कोण और दृष्टिकोण से संभव न हो पायेगा| गुलज़ार साब को यहाँ कामुकता और साजिश के मिले जुले रूपों से मिश्रित ऐसा गीत रचना था जो किसी भी दृष्टि से ऐसा न हो जाए जिस पर किसी भी किस्म का आरोप लगे और गुलज़ार साब ने क्या खूबसूरत गीत फ़िल्म के पटल पर अवतरित करवाया!
ना गिलाफ़, ना लिहाफ़
ठंडी हवा भी खिलाफ, ससुरी
इत्ती सर्दी है किसी का लिहाफ लई ले
जा, जा पड़ोसी के चूल्हे से आग लई ले
बीड़ी जलाई ले, जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है
धुंआ ना निकारी ओ लब से पिया
जे दुनिया बड़ी धाक है
ना कसूर,ना फतूर
बिना जुरम के हुजूर
मर गयी, हो मर गयी
ऐसे इक दिन दुपहरी बुलाई लियो रे
बाँध घुँघरू कचेहरी लगाई लियो रे
बुलाई लियो रे, बुलाई लियो रे, दुपहरी
लगाई लियो रे, लगाई लियो रे, कचेहरी
अंगीठी जलाई ले, जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है
बीड़ी जलाई ले…
ना तो चक्कुओं की धार
ना दरांती, ना कटार
ऐसा काटे के, दांत का निशान छोड़ दे
ये कटाई तो कोई भी किसान छोड़ दे
ओ ऐसे जालिम का छोड़ दे मकान छोड़ दे
रे बिल्लो, जालिम का छोड़ दे मकान छोड़ दे
ना बुलाया, ना बताया
म्हाने नींद से जगाया, हाय रे
ऐसा चौकैल हाथ में नसीब आ गया
वो इलाईची खिलाई के करीब आ गया
कोयला जलाई ले, जिगर से पिया
जिगर मा आग है
इतनी सर्दी है…
गिलाफ़ शब्द बहुअर्थी होता है यहाँ सर्दी से बचाव के लिए ओढ़ने वाले किसी खोल से सम्बंधित इसे माना जा सकता है| जिगर केवल शारीरिक रूप से अंदुरनी अंग होने के साथ साथ साहस या दुस्साहस का भी प्रतीक होता है जैसे कलेजा भी द्विअर्थी होता है|
केसू के लिए जिगर की आग का अर्थ लंगड़ा के इन्हीं शब्दों के अर्थ से अलग है| केसू की शारीरिक अग्नि से अलग लंगड़ा के अन्दर जलन, कुंठा, बदले की भावना से भरी साजिश की आग है| उसे किसी भी बहाने से अपने पड़ोसियों ओमकारा और केसू के बीच गलतफहमियों के चिंगारी सुलगानी है ताकि उसकी आग में उनके बीच का नया नया बना संबंध जल जाए|
सर्दी में मुंह से निकाली जाने वाली भाप से धुएं निकलने जैसा भ्रम उपजता है उसकी कितनी खूबसूरत अभिवयक्ति इस गीत में की गयी है! सर्दी में सट कर बैठे, एक दूसरे के स्पर्श से ऊष्मा पाते प्रेमियों के मुंह से निकले धुएं से भी दुनिया उनकी उपस्थिति कहाँ है उसकी खबर लगा लेगी|
बिल्लो रानी चमनबहार जहाँ अपनी ही धुन में मगन होकर अपने प्रेमी की उस पर प्रेममयी नियंत्रण का बखान कर रही है और केसू जी अपने और उसके शारीरिक प्रेम के भावों में पगे शब्दों को गा रहे हैं, लंगड़ा महाशय केसू की ही गाई पंक्तियों को अपने विशिष्ट उच्चारण और भावों से अलग रूप दे देते हैं|
केसू जहाँ काटने के निशान की कल्पना से प्रसन्न हैं वहीं लंगड़ा द्वारा काटने का वर्णन ऐसा है जिसके बारे में कहा जाता है कि ऐसा काटा कि पानी भी न माँगा| वह बिना अस्त्र शस्त्र के, सामने दिखाई दे जाने वाले प्रयास से अलग ऐसी कटाई करना चाहता है जिसके शिकार तड़पते रह जाएँ|
लंगड़ा को केसू और बिल्लो की नजदीकी के बारे में पता है, उसे यह भी दिखाई दे रहा है कि कल तक सार्वजानिक नृत्यांगना रही बिल्लो पर केसू एकाधिकार दिखा रहा है, और उसे यह भी पता है कि जैसे जादूगर या राक्षस को मारने के लिए पुरानी दन्त कथाओं में उसकी जान किसी पक्षी में बसी बताई जाती थी वैसे ही बिल्लो को छेड़ने से केसू उत्तेजित होगा और उत्तेजित केसू कुछ न कुछ ऐसी गलती अवश्य ही करेगा जिससे ओमकारा केसू से नाराज़ हो जाएगा|
नाचने गाने की महफ़िल में केसू और बिल्लो के प्रेम के चूल्हे से आग लेने के लिए लंगड़ा रज्जो को उकसा कर भेजता है और रज्जो की सिगरेट का धुंआ बिल्लो की सांस की रुकावट बन जाता है| पहले केसू प्यार से अपनी शक्ति दिखा सिगरेट बुझा देता है, लेकिन उसका जिगर बढाकर लंगड़ा उसे पुनः भेजता है|
अबकी जो आग भड़केगी उसी पर लंगड़ा की सारी साजिश की सफलता टिकी है|
फ़िल्म को टर्निंग पॉइंट देने में इस गीत का बहुत बड़ा योगदान है| सिनेमाई दृष्टि से इस गीत का फ़िल्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है|
सैफ अली खान, दीपक डोबरियाल और विवेक ओबरॉय के गज़ब के अभिनय प्रदर्शनों से इस गीत की आत्मा परदे पर सजीव होकर उभरती है| बिपाशा बासु नृत्य प्रवीण अभिनेत्री नहीं रहीं और इस प्रकार के भारतीय नौटंकी, मेलों वाले नृत्यों में जैसी भाव प्रवणता दिखाई जानी चाहिए थी उसमें वे बेहद साधारण नज़र आती हैं लेकिन उनके पुरुष अभिनेता साथी, गीत की धुन,और गायिकी उनकी कमियों का एहसास बहुत हद तक कम कर देती हैं|
गीत की सिनेमाई महत्ता के कारण केवल जावेद अख्तर साहब को ही गुलज़ार साब से इस गीत के कारण रश्क न होता होगा बल्कि हरेक अच्छे फ़िल्मी गीतकार को ऐसा ही महसूस होता होगा कि काश उन्होंने ये या ऐसा गीत लिखा होता|
…[राकेश]
Discover more from Cine Manthan
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
Leave a comment