80 के दशक के अंत में और 90 के दशक के शुरू में दो घटनाएं हुईं| तमिलनाडू के एक राजनेता पर पीडोफ़ाइल् होने के आरोप लगे थे, उससे पहले भी एक राज्य के मुख्यमंत्री पर ऐसे आरोप लगे थे और इलस्ट्रेटेड वीकली ने पूरी श्रंखला चलाकर इस केस को कवर किया था हालांकि सता के समक्ष बाद में संपादक को अदालत से बाहर माफीनामा लिखना पड़ा|
दूसरी घटना अभिनेता-लेखक-निर्देशक-निर्माता, कमल हसन के अपने जीवन से जुडी थी, उनके ही घरेलू स्टाफ में से दो लोगों ने उनकी बेटियों के स्कूल में जाकर कमल हसन के नाम से झूठ बोलकर बच्चियों को अपने साथ ले जाना चाहा| उनकी योजना बेटियों को अगवा करके कमल से फिरौती वसूलने की थी| उनकी योजना सफल नहीं हो पाई और स्कूल ने समय पर कमल से संपर्क साध कर उनसे सच जान लिया|
इस घटना ने कमल को गहरे तक प्रभावित किया और उन्होंने राजनेता और इस अपहरण की कोशिश करने को मिलाकर एक कहानी लिखी जिस पर 1994 में महानथी (तमिल) / महानदी (हिंदी) शीर्षक से फिल्म बनी|
कमल हसन द्वारा लिखित एवं अभिनीत फ़िल्म –महानदी, में विधुर कृष्णास्वामी (कमल हसन) अपने दो बच्चों के पिता होने के साथ उनकी माँ होने के कर्तव्य भी निभाते हैं|
दुश्मन न करे दोस्त ने वो कम किया है…
अपने को दोस्त कहने वाला एक व्यक्ति गणेश, फ्रॉड करके पुलिस की सांठगाँठ से अपने बदले कृष्ण को जेल भिजवा देता है| कृष्ण के जेल जाने से उसके नाबालिग बच्चे कैसे पलेंगे?
बरसों बाद जेल से वापिस आने के बाद कृष्ण पाता है कि उसके बच्चे गायब हैं| ढूँढने पर बेटा तो सड़क पर रहता मिल जाता है लेकिन बेटी गायब है| बेटी की खोजबीन करते रहने पर उसे कुछ संकेत मिलते हैं कि उसकी बेटी को एशिया के सबसे बड़े रेडलाईट एरिया सोनागाछी (कलकत्ता) में बेचा गया था|
एक इन्सान अपने बच्चों के हित की सुरक्षा के लिए किसी भी सीमा का अतिक्रमण कर सकता है| अब नेशनल ज्योग्राफिक एवं अन्य चैनलों पर ऐसे वीडियो भी देखे जा सकते हैं कि गाय, भैंस, हिरन, जैसे शाकाहारी एवं अहिंसक जंतु अपने बच्चों की रक्षा के लिए शेर, चीते, भेड़िये आदि हिंसक जानवरों से भिड़ जाते हैं| माँ के लिए तो कोई सीमा होती ही नहीं अगर उसके बच्चों की बात आ जाए तो उनके लिए माँ परिणाम की परवाह किये बगैर सारी दुनिया से लड़ जायेगी|
कृष्ण का इतने बड़े रेडलाईट एरिया में जाकर बेटी को खोजना और अंततः उसे देख पाने और उससे मिलने का दृश्य कमल हसन के बेहद प्रभावशाली अभिनय के कारण दर्शक को हिलाकर रख देता है और उसके बाद वहां से उसे वापिस लेकर आने का सिक्वेंस तो कठोरतम दर्शक के ह्रदय को भी धड़का देता है|
सिनेमा अतिशयोक्ति में बसता है बस उसे दर्शकों को प्रभावित करना चाहिए| रिएलिज्म में एक X- फैक्टर होते ही फ़िल्म असाधारण हो जाती है, एक अभिनेता और एक बेहद अच्छे अभिनेता में इस फैक्टर का ही अंतर होता है| इसी तरह जो वास्तव में न भी घटा हो या घटता न हो पर दर्शक को लगे कि हाँ ऐसा ही तो होना चाहिए बस वहीं फ़िल्में दर्शक के सेंसेज में अन्दर तक घुस जाती हैं|
सैंकड़ों सेक्स वर्कर्स की भीड़ से घिरा एक लाचार पिता अपनी बेटी को एक चादर में लपेट कर अपने साथ ले जाना चाह रहा है, बाज़ार के दलाल उसे पीट रहे हैं| उन्हें तो एक किशोर लडकी धन के बैंक के रूप में दिखाई दे रही है, उसे कैसे जाने देंगे अपने चंगुल से?
देह बेचकर आजीविका कमाने वाली स्त्रियाँ यह जानकर कि सड़क पर पिटाई खाता यह आदमी इस लडकी का पिता है, द्रवित होकर दलालों से कहती हैं वे अपना शरीर बेचने के काम में ओवर टाइम करके उनकी आर्थिक हानि को पूरा कर देंगी तो इसे देख दर्शक में सिहरन उठ जाती है|
उमराव जान (मुज़फ्फर अली की रेखा अभिनीत फ़िल्म) में उमराव एक बार अपने कोठे से कहीं जाते हुए फैजाबाद में अपने पैतृक निवास पर जाती है, उसका बेहद प्रिय छोटा भाई, जो अब बड़ा हो गया है, लोकनिंदा के भय से उसे स्वीकार नहीं करता| उसकी माँ भी कुछ नहीं कर पाती और उमराव फिर से अंधेरी गलियों में लौट जाती है|
यहाँ एक पिता रेडलाईट एरिया से अपनी बेटी को वापिस लाता है|
मंटो की कहानी “खोल दो” पढ़ें तो उसका सारांश एक ही दृश्य में कमल ने एक दृश्य में उतार दिया है और वह घटना कृष्ण को हिला देती है| उसे यह भी पता चलता है उसे जेल भेंजने वाले उसके कथित दोस्त ने ही उससे बदला लेने के लिए उसकी बेटी की ज़िंदगी नष्ट की|
गणेश से उसे उसके अपराधिक स्वामी का पता लगता है|
अब कृष्ण और उसका और उसके बच्चों का जीवन नष्ट करने वाला नेता आमने सामने हैं|
इस आमने सामने के संघर्ष की परिणति दर्शक को उसकी सीट से ऊपर उछल देती है, ऐसा कोई नहीं जो इस दृश्य को देख चिंहुक नहीं जाएगा| ऐसा भी हो सकता है क्या!
कमल हसन की जादूगरी को देखने के लिए उनकी फिल्मोग्राफी को सिलेसिलवार शुरू से देखना जरुरी है| घर की मुर्गी दाल बराबर की बात होती है वरना कमल ने विश्वस्तरीय काम किया है अभिनय में|
“महानदी” बेहद इंटेंस ड्रामा है और भावनात्मक रूप से अँधेरों की फ़िल्म है| केवल कमल हसन के अभिनय के लिए ही इसे वे सब लोग देख सकते हैं जिन्हें डार्क फ़िल्म देखने से परहेज नहीं| ज़िंदगी में इससे भी ज्यादा खराब समाज में घटता ही रहता है| समाज की नग्नता से मुंह तो मोड़ा नहीं जा सकता| हर फ़िल्म हंसने के लिए नहीं हो सकती| समाज को हिला देने के लिए भी साहित्य और सिनेमा की भूमिका है|
एक पिता का अपनी बेटी के लिए बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के एवरेस्ट चढ़ने जैसा प्रयास देखने के लिए इस फ़िल्म को देखना ही चाहिए|
इसे देखना हो तो एक बार में लगातार बिना व्यवधान के देखना ही श्रेष्ठ है जिससे इसकी भावनात्मक अपील का असर कमजोर न पड़े| इसमें अनुवाद/डब संस्करण की आवश्यकता नहीं है, भावनाएं आराम से तमिल में भी हिंदी के दर्शकों तक प्रेषित हो जाती है|
कमल हसन चाली चैपलिन जैसे समर्थ अभिनेता हैं, भाषा उनके लिए बाधा नहीं बनती| न विश्वास होता हो तो इसे देखने से पहले ऋषि कपूर, डिम्पल और कमल हसन वाली सागर का गीत – सच मेरे यार है, भी देखा जा सकता है जहां कमल हसन को जिसे बचपन से दिलोजान से चाहा, उसे अपने नए बने दोस्त के प्रेम में पड़ते देख टूटे दिल के आशिक को भावनाओं के भरपूर हमले के बावजूद अपने अब तक जाहिर न किये गए प्रेम को छिपाए रखने और दोस्ती का उत्सव मनाने का काम एक साथ संभालना है और किस खूबसूरती से इस दुधारी तलवार पर कमल चलते हैं|
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