परसेप्शन बहुत बड़ी बात है| 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो भारत उसका सैन्य मुकाबला करने के लिए उसके स्तर पर तैयार नहीं था| अंग्रेजों द्वारा कंगाली की कगार पर छोड़ दिया गया देश विकास के मार्ग... Continue Reading →
राजनेता और पादरी हमेशा से मनुष्यों को बांटने की साजिश करते आए हैं| राजनेता बाह्य जगत पर राज जमाने की कोशिश करता है और पादरी मनुष्य के अंदुरनी जगत पर| इन दोनों ने मानवता के खिलाफ गहरी साजिशें मिलकर... Continue Reading →
निर्देशक इम्तियाज़ अली की सबसे पहली और सबसे अच्छी फ़िल्म - सोचा न थी, के क्लाइमेक्स में आपसी रिश्ते के लिए "कभी हाँ कभी ना" करते नायक (अभय देओल) और नायिका (आयशा टाकिया) नायक की कम्पनी के मुख्यालय से एक... Continue Reading →
बाबाजी तुम ब्रह्मचारीतुम्हारी सोच के अनुसारऔरत नरक का द्वार। लेकिनमैं तो ब्रह्मचारी नहींदिखने में भीढ़ोंगी- पुजारी नहींमेरे लिये तोहर औरत खूबसूरत हैबशर्ते यह किवह औरत हो। तुमने जिसे नकाराधिक्काराऔर अस्पर्श्य विचारा हैउसके आगे मैंने तोसमूचा जीवन हारा है। मेरी दृष्टि... Continue Reading →
आज मैंने अपने घर का नम्बर हटाया हैऔर गली के माथे पर लगागली का नाम हटाया हैऔर हर सड़क कीदिशा का नाम पोंछ दिया हैपर अगर आपको मुझे जरुर पाना हैतो हर देश केहर शहर कीहर गली काद्वार खटखटाओयह एक... Continue Reading →
1978 में प्रदर्शित राज खोसला निर्देशित फ़िल्म 'मैं तुलसी तेरे आँगन की' का साप्ताहिक (हास्य) पत्रिका 'दीवाना' में छपा पैरोडी रिव्यू सामने आया| इसमें कलाकारों द्वारा फ़िल्म में निभाये चरित्रों के नामों को बिगाड़ कर इस्तेमाल किया गया है, शायद... Continue Reading →
समाजवाद और साम्यवाद : वही फर्क करता हूं मैं जो टी.बी. की पहली स्टेज में और तीसरी स्टेज में होता है, और कोई फर्क नहीं करता हूं। समाजवाद थोड़ा सा फीका साम्यवाद है, वह पहली स्टेज है बीमारी की। और पहली स्टेज पर बीमारी... Continue Reading →
पचास और साठ के दशक का हिंदी सिनेमा भी नेहरु के विशाल व्यक्तित्व के प्रभाव से अछूता नहीं रहा और हिंदी फिल्मों के नायकों का चरित्र भारत को लेकर नेहरुवियन दृष्टिकोण से प्रभावित रहा और उसमें चारित्रिक आदर्श की मात्रा डाली जाती... Continue Reading →
29 मई 1964, राज्यसभा एक सपना था जो अधूरा रह गया। एक गीत था जो गूँगा हो गया। एक लौ थी, जो अनन्त में विलीन हो गयी। सपना था, एक ऐसे संसार का, जो भय और भूख से रहित होगा।... Continue Reading →
ओशो बुनियादी तौर पर ही राजनीतिज्ञों के खिलाफ थे और सारी उम्र वे उनके खिलाफ बोलते ही रहे। उन्हें निशाना बनाते रहे। उनके ऊपर चुटकले बनाकर लोगों को शासकों की इस जाति के सामने मानव को आँखें मूँद कर समर्पण न... Continue Reading →
काशी सध नहीं रहीचलो कबीरा!मगहर साधें सौदा-सुलुफ कर लिया हो तोउठकर अपनीगठरी बांधेइस बस्ती के बाशिंदे हमलेकिन सबके सब अनिवासी,फिर चाहे राजे-रानी हों-या हो कोई दासी,कै दिन की लकड़़ी की हांडी?क्यों कर इसमें खिचड़ी रांधे? राजे बेईमानवजीरा बेपेंदी के लोटे,छाये... Continue Reading →
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िरफूलों की खुशबू भी काफ़िरलफ्जों का जादू भी काफ़िरये भी काफिर, वो भी काफिरफ़ैज़ भी और मंटो भी काफ़िरनूरजहां का गाना काफ़िरमैकडोनैल्ड का खाना काफ़िरबर्गर काफ़िर, कोक भी काफ़िरहंसना, बिद्दत, जोक भी काफ़िरतबला काफ़िर, ढोल... Continue Reading →
प्रिय, मौन आशीर्वाद है, लेकिन यह मौन तुम्हारे द्वारा रचा नहीं जा सकता| क्योंकि तुम तो स्वयं में शोर ही हो| इसलिए तुम कैसे मौन रच सकते हो? लेकिन तुम मौन का भ्रम अवश्य ही रच सकते हो| और मौन... Continue Reading →
विश्व शांति के हम साधक हैं,जंग न होने देंगे!कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी,खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी,आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा,एटम से नागासाकी फिर नहीं जलेगी,युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे।जंग न... Continue Reading →
दो सत्य बातें कभी भूलनी नहीं चाहियें अगर तुम मुक्ति के लिए उत्सुक हो एक है मृत्यु और दूसरा है ईश्वर! मृत्यु की सच्चाई : इस संसार में हर वस्तु अपनी मृत्यु की ओर अग्रसर है| जिसका भी आरम्भ है उसका... Continue Reading →
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