शाहरुख खान के एक विडियो साक्षात्कार/कांफ्रेंस से एक निकाला गया रील नुमा विडियो सोशल मीडिया पर अक्सर ही छाया रहता है जहाँ वे कहते पाए जाते हैं कि उन्होंने अमिताभ बच्चन से पूछा कि सर, स्टेज पर जाने से पहले उनके दिमाग में क्या आता है, कौन सा विचार उन्हें घेरे रहता है, वे कैसा अनुभव करते हैं स्टेज पर पहुँचने से ठीक पहले|

शाहरुख़ बताते हैं कि अमिताभ बच्चन ने तुरंत जवाब दिया,” चैक करता हूँ कि पतलून की जिपर सही से बंद है या नहीं“|

शाहरुख़ हंसते हैं और साथ ही उन्हें घेरे बैठे लोग भी|

शाहरुख़ खान ने बरसों पहले ‘कॉफ़ी विद करण‘ की एक क़िस्त में भी अमिताभ बच्चन से इससे मिलता जुलता प्रश्न किया था,” कैमरे के सामने शॉट देने जाते समय वे कैसा फील करते हैं? उनके मन में एक्शन बोले जाने से एकदम पहले क्या चल रहा होता है?”

कई साल पहले गायक अमित कुमार, स्टेज पर गोविंदा पर फिल्माए गए अपने गीत – आई एम ए स्ट्रीट डांसर, को गा रहे थे, और जोश में कूदने फांदने से उनकी पतलून की ज़िपर खुल गयी, और उन्होंने दर्शकों की ओर पीठ करके ज़िपर बंद की और लॉक करके पुनः लाइव शो करने में व्यस्त हो गए, पर टीवी के प्रसारण के माध्यम से इस घटना को दर्शकों ने देखा|

फ़िल्म की शूटिंग करने के दौरान ऐसे वाकये अक्सर घटित हो जाते होंगे और कैमरामेन, उसके सहायक, निर्देशक, उसके सहायक, कंटिन्यूटी की देखभाल करने वाले सहायक इस मामले में अभिनेता गण की सहायता करते ही होंगे, लेकिन अगर किसी कारणवश दृश्य शूट करते समय ऐसी गलती कैमरे में बंद हो ही जाए तो फ़िल्म की एडिटिंग के समय तो इसे सुधारा ही जा सकता है| फ़िल्म निर्माण स्टेज परफोर्मेंस जैसा तो है नहीं , यहाँ तो कई चरणों में फ़िल्म का निर्माण बंटा हुआ रहता है| ऐसे में इस बात की बहुत कम संभावना है कि अभिनेता (स्त्री पुरुष दोनों), की पतलून की ज़िप खुली रह जाए और दृश्य दर्शकों तक पहुँच जाए|

बिमल रॉय की सुपर हिट फ़िल्म – मधुमति (1958) में एक दृश्य ने अभिनेता की अपनी सावधानी, निर्देशक बिमल रॉय, कैमरा निर्देशक दिलीप गुप्ता, और अंत में फ़िल्म के संपादक – हृषिकेश मुकर्जी की गहरी और बुद्धिमान आँखों की देखरेख को धोखा देकर दर्शकों के पास पहुँचने का कारनामा कर दिखाया|

इस बात को स्वीकार करने में भी संकोच होगा और होता है कि दिलीप कुमार जैसे बेहद सावधान अभिनेता, जो अपनी फिल्मों के निर्माण के हर पहलू में बारीकी से अपने अस्तित्व का समावेश सुनिश्चित करते थे, उनसे ऐसी असावधानी घटित हो सकती है| अभी भी यह दृश्य इतना संशय भरा है कि सिनेमा घरों में तो बमुश्किल किसी दर्शक और समीक्षक ने इस बात को सजगता से देखा भी होगा या उनके दिमाग में इस दृश्य ने इस बात के लिए जगह बनायी होगी| हजारों फ़िल्म समीक्षकों और लाखों दर्शकों ने फ़िल्म को पिछले 67 साल में कई कई बार देखा ही होगा लेकिन कभी किसी ने इसकी ओर संकेत किया ऐसा देखने में नहीं आया|

इस नई सदी की शुरुआत में डीवीडी पर मधुमति देखते हुए इस दृश्य विशेष में घटित की ओर ध्यान गया था| एक तो श्वेत श्याम फ़िल्म में यह दृश्य इतना ज्यादा संशय भरा वातावरण रचता है कि सौ प्रतिशत निश्चितता के साथ नहीं कहा जा सकता कि ऐसा हुआ भी है, दूसरे दिलीप कुमार (और बिमल रॉय और फ़िल्म से जुड़े नामचीन कलाकारों) के एवरेस्ट सरीखे ऊंचे कद, कि इस दृश्य की कमी का जिक्र करने में संकोच होना स्वाभाविक है| पिछले हफ्ते फ़िल्म पुनः देखी तो वह दृश्य याद आ गया और बड़े ध्यान से उस दृश्य को देखा और रीपीट कर 2-3 बार देखा, तो निश्चित हुआ कि वाकई यह गलती फ़िल्म के इस दृश्य में रह गयी|

फ़िल्म में शुरुआत में ही दिलीप कुमार और तरुण बोस, मौसम, और कार खराब होने के कारण एक वीरान सी हवेली में शरण लेते हैं, और वहां जाकर दिलीप कुमार को आभास होता है कि वे पहले भी इस महल में आ चुके हैं| वहीं रात का एक दृश्य है जहाँ सोते हुए दिलीप कुमार एक स्त्री की चीख सुनकर उठ बैठते हैं और ध्यान से फ़िल्म देख रहे दर्शक को यह आभास हो सकता है कि उनकी पतलून की ज़िप खुली हुयी है| वे खड़े होते हैं और उनके चौंक कर जागने और पूछने से कि कौन है, तरुण बोस भी जाग जाते हैं, और पूछते हैं कि क्या हुआ| दिलीप कुमार उनसे पूछते हैं, तुमने किसी लड़की के चीखने की आवाज नहीं सुनी| तरुण बोस के इनकार करने के बाद दिलीप कुमार अपनी पतलून को हाथों से पकड़ थोडा ऊपर खींच कर बिस्तर पर बैठते कहते हैं, शायद मुझे ही गलतफहमी हो गयी| उनके बैठने की प्रक्रिया से स्पष्ट हो जाता है कि उनकी पतलून की ज़िप वाकई खुली है| उनका बैठने की प्रक्रिया पलक झपकते पूरी हो जाती है और गले से बंधी हलके रंग की टाई उनकी पतलून की खुली ज़िप की प्रक्रिया को संदेहात्मक बना देती है क्योंकि टाई ज़िपर को बहुत हद तक छिपा देती है| कुछ बार इस दृश्य को देखा जाए तो निश्चित हो जाता है कि ज़िपर पर टाई की उपस्थिति ही नहीं है बल्कि, उनकी सफ़ेद कमीज़ खुली ज़िप से दिखाई दे रही है| यह निश्चित हो जाता है कि दिलीप कुमार की पतलून की ज़िप वास्तव में ही इस दृश्य में खुली रह गयी थी| फ़िल्म की शूटिंग तो टुकड़े टुकड़े में होती है|

यह स्वीकार करने में मुश्किल है कि इस बात को दिलीप कुमार के सामने बैठे तरुण बोस, निर्देशक बिमल रॉय, कैमरे की आँख से देख रहे दिलीप गुप्ता और अन्य सहायक लोग, और बाद में संपादक हृषिकेश मुकर्जी ने न देखा हो|

दो ही संभावना अस्तित्व में आती हैं|

  1. चूंकि दृश्य बहुत स्पष्टता से इस कमी को दर्शक के सामने जाहिर नहीं करता, और बमुश्किल कोई दर्शक इस कमी पर ध्यान भी देगा| अतः सभी ने रिस्क लिया कि इस बात को कोई नहीं देख पायेगा, अतः जाने देते हैं|
  2. सभी ने मिलकर, या किसी ने दिलीप कुमार के साथ यह शरारत की| या किसी एक ने भी इस बात पर ध्यान दिया होगा तो उसे अन्यों से और विशेषकर दिलीप कुमार के साथ साझा नहीं किया, कि अगर किसी ने ध्यान दे भी दिया तो कौन इस बात को लिखेगा?

अब तो बिमल रॉय की कालजयी फ़िल्म है और उसमें दिलीप कुमार के साथ घटी यह ऐतिहासिक गलती है, जो फ़िल्म के अस्तित्व के साथ बनी ही रहेगी क्योंकि अब तो इस दृश्य को संपादित किया नहीं जा सकता|

यह भी संभव है कि फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद इस गलती को दिलीप कुमार सहित फ़िल्म से जुड़े सभी दिग्गजों ने जान लिया हो लेकिन चूंकि कभी किसी समीक्षक ने इस ओर संकेत नहीं किया तो यह उनका आपसी गुप्त हास्य बन कर रह गया हो|

यह भी संभव है, यह और ऐसी घटनाएं अभिनेताओं के मध्य बातचीत के मुद्दे बनती रही हों और इन्हीं का परिणाम है कि अमिताभ बच्चन ने शाहरुख़ खान को स्टेज पर जाने से पहले ज़िपर्स पर ध्यान देने की बात कही|

ऐसे सभी शंकालु लोग, जिन्हें इस बात पर विश्वास न होगा, फ़िल्म के 20 सेकेण्ड के हिस्से को बार बार देख सकते हैं|

इस मामले से यह भी सिद्ध होता है कि श्रेष्ठतम सृजकों के जमावड़े के बावजूद कोई गलती हो सकती है, कोई कमी रह सकती है|

…[राकेश]


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