भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जीवित रहते तो अपना 95वां जन्म दिवस मना रहे होते| उन्हें बहुत सारे लोग भारत का सबसे विवादास्पद प्रधानमंत्री भी कहेंगे।

लोकनायक जय प्रकाश नारायण के बाद वही ऐसे राजनेता हुये जिन्होने विपक्ष में रह कर भारत की राजनीति में भूचाल ला खड़ा किया।

अस्सी के दशक के अंत में मंडल कमीशन की सिफारिशों के विरुद्ध उनका विरोध करने वाले लोग भी श्री वी.पी.सिंह को सिर्फ इसी एक मुद्दे के बलबूते नकार नहीं पायेंगे। अच्छा या बुरा जैसा भी रहा हो उनके द्वारा उठाये गये कदम का परिणाम पर उनके कदम ने भारत की राजनीति की दिशा ही बदल दी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।

इतिहास को भारत के पिछले 78 साल में हुए एक ऐसे राजनेता से मुँह मोड़ना कठिन लगेगा   जिसने ईमानदारी के नाम पर सत्ता हासिल करके दिखा दी। जून-जुलाई की भयानक गर्मी में मोटर साइकिल पर सवार होकर उन्होंने इलाहाबाद में चुनाव प्रचार किया था और अमिताभ बच्चन द्वारा इस्तीफा दिये जाने से खाली हुयी सीट पर हुये उपचुनाव में श्री लाल बहादुर शास्त्री के सुपुत्र श्री सुनील शास्त्री को हराया था। एसी में बैठ रणनीति बनाने वाले नेताओं के बलबूते की चीज नहीं है ऐसा परिश्रम।

नब्बे के दशक में प्रधानमंत्री पद सम्भालने का प्रस्ताव खुद उनके पास चलकर गया लेकिन उन्होंने  स्वास्थ्य कारणों से इसे स्वीकार नहीं किया। विरोधाभास निस्संदेह उनके व्यक्तित्व का हिस्सा था। युवावस्था में ही अपनी रियासत की बहुत सारी जमीन उन्होने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से प्रेरित होकर दान कर दी थी, हालांकि उनके परिवार में इस कारण विवाद उत्पन्न हुए और मामला शायद कोर्ट तक पहुंचा| देहरादून में अपनी करोड़ों अरबों की जमीन उन्होने ऐसे ही छोड़ दी उन लोगों के पास जो नाममात्र का किराया देकर वहाँ दुकानें आदि चलाते थे। श्री वी.पी सिंह उन बिरले राजनेताओं में से रहे हैं जिन पर धन के भ्रष्टाचार का आरोप कोई नहीं लगा सकता।

उन्हें सिर्फ एक राजनेता ही नहीं कहा जा सकता। श्री वी.पी सिंह में कई व्यक्तित्व दिखायी देते हैं और उन्हें सिर्फ किसी एक मुद्दे पर खारिज नहीं किया जा सकता।

ऐसा लगता है निदा फाजली का लिखा हुआ वी.पी. सिंह पर एकदम सटीक बैठता है

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी,

जिसको भी देखना हो कई बार देखना|

 वी. पी. सिंह एक बेहतरीन कवि, लेखक, चित्रकार और फोटोग्राफर भी थे। एक कवि और चित्रकार होने के लिए व्यक्ति को बहुत सा समय एकांत में व्यतीत करना पड़ता है जहाँ वह दुनियादारी से विलग होकर अपनी कल्पना के संसार में रम सके| एक राजनेता के हित के विपरीत अहर्ताएं हैं ये| एक राजनेता को बाकी दुनिया से बहुत ज्यादा मेल मिलाप रखना पड़ता है जिससे उसे यह लगे कि लोगों को यह बात वास्तविक लगे कि वह सदैव उनके साथ है, साथ ही उसकी अपनी मानसिक निश्चिंतता के लिए भी यह एहसास आवश्यक है कि बहुत से लोग उससे मिलने के लिये उत्सुक रहते हैं| यह एहसास उसे अपनी दृष्टि में भी प्रासंगिक बनाए रखता है| एक राजनेता अगर राजनीति की व्यस्त आवश्यकताओं और रचनात्मक सृजन के लिए एकांत को एक साथ साधना चाहेगा तो यह कतई भी संभव नहीं कि उसके संपर्क में आने वाले बहुत से लोग उसे सनक से भरा या कम से कम मूडी व्यक्ति न मानें| वीपी सिंह ने भी यह परिदृश्य अपने जीवन में देखा|

उनके द्वारा देश भर में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व करने से उनकी अखिल भारतीय छवि बनाने के लिए

राजा नहीं फकीर है
देश की तकदीर है

जैसा बेहद सटीक नारा गढ़ने वाला व्यक्ति बेहद सक्रिय और तीक्ष्ण बुद्धि का मालिक रहा होगा जिसकी लेखन क्षमता के बारे में संदेह नहीं किया जा सकता। उसने ऐसा नारा गढ़ा जो वी.पी. सिंह की उस वक्तत की छवि से सौ प्रतिशत मेल खा गया|

मंडल कमीशन लागू करने के सामाजिक और राजनीतिक निर्णय ने उनके व्यक्तित्व को बहुत हद तक भ्रम भरे बादलों के पीछे ढ़क दिया है। उनके राजनीतिक जीवन का मूल्यांकन राजनीतिक इतिहास लिखने वाले लोग करेंगे पर राजनीति से परे उनके अंदर के कलाकार पर तो लेखक और कलाकार समुदाय निगाह डाल ही सकता है।

उनकी कविता में गहरे भाव रहे हैं। उन्होने तात्कालिक परिस्थितियों से उपजी कवितायें भी लिखीं जो काल से परे जाकर भी प्रभाव छोड़ने की माद्दा रखती हैं।

कांग्रेस से इस्तीफा देते समय उन्होंने नीचे दी गई लघु पर बड़े अर्थ वाली कविता रची थी।

तुम मुझे क्या खरीदोगे
मैं बिल्कुल मुफ्त हूँ

उनकी कविता आधुनिक है, उसमें हास-परिहास, चुटीलापन भी है और व्यंग्य भी। उनकी कविता बहुअर्थी भी है।

मनुष्य की अंहकार भरी प्रकृति और खासतौर पर समाज में शक्तिशाली व्यक्ति के हथकंडों पर उन्होने एक बेहतरीन कविता लिखी थी।

मानव मस्तिष्क के अंधेरे बंद कोनों को भी खूब खंगाला उन्होने और कविताओं और पेंटिंग्स के माध्यम से उन्हे अभिव्यक्ति दी।

निराशा का भाव भी उनकी कविताओं में झलकता है और वैराग्य का भाव भी किसी किसी कविता के माध्यम से बाहर आ जाता है।

उनकी एक कविता है मुफ़लिस, जो राजनेता के रुप में उनकी मनोदशा को बहुत अच्छे ढ़ंग से दर्शाती है।

आदर्शवाद उनकी कविताओं में भी छलकता है और शायद इसी आदर्शवाद ने उन्हे राजनीति में कुछ खास निर्णय लेने के लिये प्रेरित किया होगा।

निम्नलिखित कविता में नेतृत्व और सक्रियता को लेकर कितनी बड़ी बात वे कह गये हैं! हर व्यक्ति हर समय प्रासंगिक नहीं रह सकता, एक समय आता है जब उसकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है| शायद इसलिए पुरानी वर्णाश्रम वाली सामजिक व्यवस्था में चरणों में वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम का अस्तित्व परिभाषित किया गया था|

वे नेताओं के राजनीतिक जीवन की सांझ के दिनों पर भी कविता लिखे बिना नहीं माने। कविता भारत के लगभग हर नेता के जीवन का सच उजागर कर देती है।

उपरोक्त कविता में हरेक राजनेता के लिए एक समझदारी और चेतावनी समाहित है कि उसके सक्रिय राजनीति से स्वेच्छा से निकल जाने का भी एक समय आता है और तब उसे इस पुकार को सम्मान देकर सत्ता पाने या कायम रखने का मोह छोड़ कर साधारण जीवन में लौट जाना चाहिए|

वीपी सिंह का व्यक्तित्व इतना रोचक इतिहास तो रच ही गया है कि सिनेमा का क्षेत्र उन्हें अपनाए और फ़ीचर फ़िल्म या वेब सीरीज़ को उनके जीवन पर आधारित करे|

…[राकेश]


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