अध्याय 2चलो दिल्ली

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शिल्पी, प्रोफ़ेसर मयंक के घर उनके स्टडी रूम में बैठी है| चारों ओर रैक्स में किताबें करीने से सजी हुयी हैं| शिल्पी के सामने एक छोटी गोल मेज पर पानी से भरा जग, एक कांच का गिलास और गर्म चाय से भरा कप रखा है|

प्रोफ़ेसर मयंक कमरे में आते हैं और कहते हैं,: अरे तुमने चाय पीना भी शुरू नहीं किया| ठंडी हो जायेगी|

सर, मैं ठंडी ही पीती हूँ|

लेकिन अगर वे तुम्हें इस मामले में कुछ बताएं जिसे तुम अपने प्रोग्राम में रखो, तो उन्हें क्रेडिट अवश्य देना| उन्हें आवश्यकता नहीं है इसकी लेकिन तुम्हारे प्रोग्राम के लिए यह अच्छा रहेगा|

जी, बिल्कुल| मैं तो आपको भी क्रेडिट दूंगी|  

बिल्कुल भी नहीं| सबसे पहले तो यह हमारे घर की बात है, दूसरे मैं तुम्हें कोई ऐसी सहायता नहीं दे रहा, जिसे तुम प्रोग्राम में रख सको|

आपने मेरे इतने कन्फ्यूजंस दूर कर दिए| मुझे तो आगे भी आपके गाइडेंस की जरुरत पड़ेगी| आपका डॉक्यू-ड्रामा वाला सुझाव मुझे जम रहा है|

बजट देखना पड़ेगा कि उसमें तुम्हें एक्टर्स लेने पड़ेंगे या एनीमेशन से काम चलाओगे|

बजट तो समस्या नहीं होनी चाहिए| काश कि आप इस कार्यक्रम की रिसर्च टीम से जुड़ जाते|

सेमेस्टर ऑन है| हफ्ते में चार दिन मुझे क्लासेज़ लेनी होती हैं| मैं कहीं जा नहीं सकता, लेकिन अगर तुम किसी मेटेरियल पर मेरा विचार जानना चाहोगी तो मैं सदैव ही उपलब्ध हूँ| हम विडियो कांफ्रेसिंग से भी विचार साझा कर सकते हैं| 

ठीक है, मैं कल ही अपनी रिसर्च टीम लेकर पुरी के लिए निकल जाती हूँ| आपसे लगातार संपर्क में रहूंगी|

अवश्य| एक कथा अपनी ओर से भी सुझा दूं, वहां जाकर इस कथा से जुड़े स्थलों को देख, वहां और रिसर्च करना|

बताइये|

कथा कुछ यूं है –

गगन में थालु, रवि चंदु दीपक बनें, तारिका मंडल जनक मोती… की रचना जगन्नाथ मंदिर के परिसर में ही हुयी|

वाह! यह तो रोचक कहानी है और ऐतिहासिक प्रमाणों वाली है|

हाँ तुम रोचकता ढूंढ रही थीं, तो ऐसे किस्सों से ही तुम्हारा कार्यक्रम रोचक बनता जायेगा|

वाकई! पर उस बालक के पास भगवान को भोग लगाने वाले सोने के बर्तन कैसे मिले?

हाँ मैंने भी उनकी कुछ क्लिप्स देखी हैं| कबीर मैं ढूंढ कर देखती हूँ|

शिल्पी कहीं खोयी हुयी चुप रहती है|

क्या हुआ शिल्पी|

जी, कुछ नहीं| मैं कैसे आपका आभार व्यक्त करूँ आपका? आपने मुझे इस प्रोजेक्ट में प्रवेश करा ही दिया| जिस उर्जा की मुझे आवश्यकता थी, आपने मुझमें भर दी, जिस उत्साह की जरुरत ऐसे बड़े प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए चाहिए होती है उसे मैं अपने अन्दर महसूस कर रही हूँ| मेघा दी ने एकदम सही कहा था कि आपसे मिलकर मैं बदल कर ही लौटूंगी|

एक अच्छी फ़िल्म बनाओ| जब जरुरत हो मुझे मैसेज करना| ऑल द बेस्ट|

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क्रमशः

© …[राकेश]

अध्याय 1 : जय जगन्नाथ https://cinemanthan.com/2025/06/27/jai-jagannath1/


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