हृषिकेश मुकर्जी द्वारा निर्देशित बावर्ची और बुड्ढा मिल गया जैसी फिल्मों को देखें तो दोनों में एक केन्द्रीय चरित्र है, जिसके बारे में उसके संपर्क में आने वाले अन्य चरित्र संदेह में रहते हैं कि जैसा यह व्यक्ति उनको दिखाई दे रहा है असल में वैसा है नहीं और वह उनसे कोई राज छिपा रहा है| उनका यह संदेह अंततः सही भी निकलता है|
बावर्ची में रहस्य शाकाहारी किस्म का है और बुड्ढा मिल गया में बीच-बीच में क़त्ल भी होते जाते हैं| बावर्ची फ़िल्म का नाता दर्शकों से ज्यादा गहराई से जुड़ता है बनिस्पत बुड्ढा मिल गया से, क्योंकि बावर्ची में बदले और अपराध के तत्व नहीं है और मानवीय रिश्तों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है| घर-परिवार एवं जीवन से जुड़े दर्शन के तत्व दर्शक को मिलते रहते हैं, वह मात्र फ़िल्म नहीं रह जाती बल्कि मानवीय रिश्तों पर एक शोध पत्र बन जाती है| दूसरी ओर बुड्ढा मिल गया हास्य, रोमांटिक, और सोशल ड्रामा से मर्डर मिस्ट्री की ओर कदम बढ़ा देती है तो दर्शक के मन में फिर उसकी रुपरेखा को लेकर सवाल आने शुरू हो जाते हैं कि एक मर्डर मिस्ट्री के रूप में क्या वह उतनी आकर्षक है जितनी एक म्यूजिकल सोशल ड्रामा के रूप में चल रही थी?
फ़िल्म मारीसन, भी ऐसे ही मोड़ों से गुजरती है| शुरुआती दृश्य जहाँ फ़िल्म का एक नायक वेलन (वडिवेलू) एक मकान के एक कमरे में जंजीर से बंधा हुआ खड़ा है और दूसरा नायक धाया (फहाद फासिल) उसे धन देने के आश्वासन के बदले मुक्त करता है, बस वहीं एक सवाल दर्शक के मन में आता है कि इस व्यक्ति को बांधा क्यों गया होगा? लेकिन उसका जवाब सुनकर दर्शक संतुष्ट भी हो जाता है| और फ़िल्म दोनों नायकों के मध्य हास्य बिखेरने वाले दृश्यों के आधार पर दर्शक को आकर्षित करती रहती है|
फ़िल्म बावर्ची की ओर ज्यादा रहती तो आकर्षक बनी रहती लेकिन अंत में अरुण (विवेक प्रसन्ना) वाले ट्रैक की प्रत्यक्ष हिंसा ने फ़िल्म को पटरी से उतार दिया| अगर वेलन द्वारा धाया के घर 10 लाख रुपयों का चैक छोड़ने जैसे दृश्य के साथ फ़िल्म समाप्त होती और यह धाया जैसे एक छोटे चोर के ह्रदय परिवर्तन की कथा ही रहती तो सभी आयु वर्ग के लिए एक यादगार फ़िल्म बन जाती|
पुलिस वाले भाग आकर फ़िल्म की प्रकृति बदल देते हैं और मर्डर मिस्ट्री आधारित थ्रिलर फ़िल्में देखने वाले दर्शकों के लिए यह एक कमजोर फ़िल्म बन जाती है, उनके लिए न फ़िल्म में कोई गहरा राज है और न ही राज को बहुत आकर्षक ढंग से दर्शकों के सामने खोला गया है| उस रूप में यह एक साधारण फ़िल्म बन कर रह जाती है|
जब तक वेलन और धाया मोटरसाइकिल पर यात्रा करते रहते हैं दर्शकों को शहर से बाहर के प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन भी होते रहते हैं और उन दोनों के मध्य के खट्टे मीठे रिश्ते की झलकियाँ भी उसे गुदुदाती रहती हैं| धाया के लालच और वेलन की सादगी के बीच का द्वन्द दर्शक को उत्सुकता से भरे रखता है कि आगे इनका रिश्ता किस मोड़ से कहाँ मुड़ेगा? मर्डर मिस्ट्री भागों में जान नहीं है और वे आकर फ़िल्म का स्वरूप ही बिगाड़ देते हैं|
वडिवेलू और फहाद फासिल की जोड़ी के अभिनय में रोचकता है लेकिन वे निर्देशक के विज़न और कथा की सामग्री से ऊपर तो नहीं उठ सकते| जब तक दर्शक के सामने उन दोनों के बारे में रहस्य बना रहता है फ़िल्म रोचक लगती है, रहस्य खुलता है और फ़िल्म ऐसी लगने लगती है कि अब इसे जबरन खींचा जा रहा है|
…[राकेश]
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