मृत्य की दौड़ में है

धरा पर हर चीज,

हर भाव,

जीवन में सभी कुछ अनिश्चित है

निश्चित है बस एक मृत्यु |

कल कल बहती नदियाँ भी

सूख जायेंगीं

स्थिर दिखाई देतीं चट्टानें

रेत बन कर बह जायेंगीं

नदियों की धाराओं के साथ|

समय की धारा में

प्रेम का भाव

बार बार जन्मेगा एक जन्म के साथ

प्रेमी जन्मते मरते रहेंगे

उनकी कहानियां बनती रहेंगी !

They lived ever after से ज्यादा दुखांत प्रेम कहानियां ज्यादा लम्बी उम्र पाया करती हैं| मनोहर श्याम जोशी के कालजयी उपन्यास –कसप, में नायक और नायिका के प्रेम के सुख भरे चुहल करते क्षण आनंद देते हैं लेकिन जब बरसों बाद अन्य से विवाहित नायिका अब मिलने पर अब तक अविवाहित रहे नायक से कहती है – तू बार बार मेरे अयोग्य ठहरे लाटे और बार बार मैं आ सकूं इस संसार में, तुझसे अपना पीछा करवाने के लिए , और नायिका के परिदृश्य से चले जाने के बाद जंगल के एकांत में बिलखते नायक के रुदन से जिस प्रेमगाथा का प्रभाव पाठक पर पड़ता है वह अमिट रहता है| नायक नायिका की प्रेमगाथा भी अमर हो जाती है|

हिंदी कथा पत्रिका – निकट के आत्मकथात्मक प्रेम-कथा विशेषांक में सम्मिलित कहानी -” एक शिकायत विहीन प्रेम कथा : अनागत ” हिंदी साहित्य में रची गयी श्रेष्ठ प्रेम कथाओं के परिवार की नयी सदस्य है|

अनागत प्रेम पर एक थीसिस सरीखी कथा है, जहाँ थोड़े अंतराल के बाद प्रेम संबंधी ऐसे गद्यांश आते हैं जिन्हें प्रेम-सूक्तियों के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है| यह एक लघु उपन्यास तक विस्तार पा सकने वाली संभावनाशील लम्बी कहानी है|

इस विशेषांक की अन्य प्रेम कथाओं के सन्दर्भ में ही अनागत को तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो यह किसी भी तरह के निषेध से मुक्त्त वातावरण में घटित प्रेमकथा है| जहाँ अन्य प्रेमकथाओं में विशेषकर ज्यादातर लेखकों (पुरुषों) ने अपनी नायिकाओं को साधारण शक्ल-सूरत की स्त्रियाँ दर्शाया है और कुछ प्रेम कहानियों को पढ़ ऐसा लगने लगता है कि चूंकि यह एक आत्मकथात्मक विशेषांक है तो कुछ लेखकों को ऐसा भय न लगा हो कि पाठक ऐसा दृष्टिकोण न अपना लें कि उनकी कहानियों के नायक नायिकाओं के दैहिक सौंदर्य से आकर्षित थे और उनका प्रेम दैहिक ही था| कहानी लेखन तो परकाया प्रवेश की विधि है| यह आवश्यक रूप से आत्मचरित या स्वानुभव से जनित लेखन नहीं भी होता|

अनागत बिना किसी हिचक के ऐसी नायिका को प्रस्तुत करती है जो दैहिक रूप से भी परम सुन्दरी कही जा सकती है| नायक डंके की चोट पर उन्मुक्त सच्चाई बयां करता है कि पहला आकर्षण तो देह के माध्यम से ही उठता है लेकिन यह बस प्रथम कदम है क्योंकि किसी की वास्तविक ख़ूबसूरती को कोई कैसे कुछ मिनट देखने से जान सकता है| अनागत में न केवल नायिका खूबसूरत है बल्कि नायक स्वयं ही घोषणा करता है कि वह स्वंय भी सुदर्शन है| सलीके से रहना अगर मंहगा भी हो तो वह ऐसी किसी भी कीमत, जिसे वह चुका सकने में आर्थिक रूप से समर्थ है, पर उस स्तर की जीवन शैली अपनाता है और ऐसा करने में उसे किसी तरह का संकोच नहीं होता कि संसार में बहुत से लोग ऐसा एफोर्ड नहीं कर सकते| नायक अपनी चाह अनुरूप जीवन जीने हेतु न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक एवं भावनात्मक कीमत चुकाने के लिए सदैव तैयार है| वह पूर्णतया पारदर्शी जीवन जीने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई देता है|

नायिका भी अपने आप में एक ही है| जैसा नायक का भी सोचना है कि उस जैसी कोई दूसरी नहीं| यह दो स्पष्ट व विकसित विचारों वाले अपने आप में परिपूर्ण व्यक्तियों के मेल की कथा है| दोनों ने परस्पर प्रेम को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान अपने जीवन में दिया है लेकिन वे अपने दायित्वों को नज़रंदाज़ नहीं करते| आपसी प्रेम उनके लिए ऐसे है जैसे लोग गृहस्थ जीवन में रहते हुए जीवन में अवसर निकाल अध्यात्मिक यात्राएं (अंदुरनी) भी करते रहते हैं, जहाँ यात्रा ही महत्वपूर्ण हो जाती है कोई लक्ष्य महत्वपूर्ण नहीं होता| वे हजारों मील दूर रहकर भी पल-पल एक दूसरे के सानिध्य में ही व्यतीत करते हैं|

उनका परस्पर प्रेम उनके लिए आनंद का जनक है और यह उनका साझा रहस्य भी है जिसे वे गूंगे के गुड़ की तरह किसी से कह भी नहीं सकते| इस अवस्था को उन्होंने जानते बूझते अपनाया और स्वीकार किया है| वे चाहें तो स्थायी मिलन की राह तलाश सकते हैं लेकिन उनकी संवेदनाएं उन्हें ऐसा कुछ भी करने के लिए प्रेरित नहीं करतीं जहाँ उनके निर्णय से उनके अन्य प्रियजनों को कष्ट हो|

इस अंक की ज्यादातर अन्य कहानियों और अनागत में एक अंतर और भी है कि ज्यादातर कहानियां तीस पैंतीस साल बाद बयान की जा रही कहानियां हैं जो कभी बस इस अंदाज़ में घटी थीं कि प्रेम का बस अंकुरण ही हो पाया लेकिन प्रेम की संयुक्त यात्रा न हो पायी|

अनागत में प्रेमकथा पैंतीस साल पहले शुरू तो अवश्य हुयी लेकिन यह बीते काल की कथा नहीं है यह पिछले पैंतीस सालों से लगातार चले प्रेम की कथा है| जीवन की तरह प्रेम भी अपने जीवनकाल के उस दौर में पहुँच गया है जहाँ प्रेम विदाई नहीं ले रहा लेकिन प्रेमी विदा मांग रहा है क्योंकि वह एक प्रेमी होने के साथ मात्र एक मनुष्य ही है जिसके प्रारब्ध में मृत्यु सदा मौजूद रही और अब समय आ गया है जब मृत्यु ने दरवाजे पर दस्तक दे दी है|

नायक के लिए पैंतीस सालों के आनंदपूर्वक जीवन का अंतिम अध्याय तेजी से उसके सामने अपने पन्ने खोलता जा रहा है| जो प्रेम के उदय के बाद जीवन के हर क्षण प्रेमिका की एक झलक पाने के लिए सदा उत्सुक रहा वह अब फोन की घंटी बजने मात्र से घबरा उठता है| प्रेम का रंग उससे छुटाए नहीं छुट रहा| प्रेम को भरपूर जीने के बाद भी प्रेम से पार होने की स्थिति नहीं आई है| प्रेम अवस्था ही उन दोनों का स्थायी भाव रहा है और अब तेजी से आया बदलाव उनकी सहन क्षमता से बाहर का भाव है|

प्रेम की जिस खुमारी में वे बीते पैंतीस साल बिता आये हैं उसने उन्हें कभी सोचने ही नहीं दिया कि कभी ऐसी भी स्थिति आ जायेगी जब दुनिया नहीं बल्कि जीवन ही उनके बीच एक ऐसा पर्दा बनकर खड़ा हो जायेगा जिसके एक पार नायक और दूसरी और नायिका और दोनों में से कोई भी उस परदे को हटा सकने में सक्षम नहीं है| जहाँ मनुष्य बेबस है वहां प्रेम के भाव का क्या होगा? प्रेम का भाव जीवन में तो सदा बना रहेगा लेकिन किन्हीं विशेष व्यक्तियों का प्रेम एक प्रेमकथा में सीमित हो सकता है|

नायक के दुःख और उसके संभावित एकांत से ग्रसित जीवन की कल्पना से यह कथा दुखांत प्रेमकथा बन जाती है जो पाठकों को इस सत्य के सामने लाती है कि एक प्रेम भरे जीवन का भी अंत तो होना ही है… लेकिन प्रेम कथा उस प्रेम भरे जीवन की ही होती है मात्र दुखांत की नहीं|

कथानक, भाषा, और कहानी में उपस्थित विचार और दर्शन के आधार पर यह एक शानदार प्रेम कहानी है जो बरसों बरस पाठकों को लुभाने की क्षमता रखती है|

…[राकेश]


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