हृषिकेश मुकर्जी द्वारा निर्देशित बावर्ची और बुड्ढा मिल गया जैसी फिल्मों को देखें तो दोनों में एक केन्द्रीय चरित्र है, जिसके बारे में उसके संपर्क में आने वाले अन्य चरित्र संदेह में रहते हैं कि जैसा यह व्यक्ति उनको दिखाई... Continue Reading →
80 के दशक के अंत में और 90 के दशक के शुरू में दो घटनाएं हुईं| तमिलनाडू के एक राजनेता पर पीडोफ़ाइल् होने के आरोप लगे थे, उससे पहले भी एक राज्य के मुख्यमंत्री पर ऐसे आरोप लगे थे और इलस्ट्रेटेड... Continue Reading →
आज फिर शुरू हुआ जीवन आज मैंने एक छोटी-सी सरल-सी कविता पढ़ी आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा जी भर आज मैंने शीतल जल से स्नान किया आज एक छोटी-सी बच्ची आई, किलक मेरे कन्धे चढ़ी आज मैंने... Continue Reading →
कवि धूमिल की अंतिम कविता – लोहे का स्वाद- एक तरह से करोड़ों शोषितों की चुप्पी को जुबान देती है। प्रियदर्शन की फिल्म कांजीवरम एक सामंजस्य स्थापित करती है उस कविता से। शब्द किस तरह कविता बनते हैं इसे देखो... Continue Reading →
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