जो आम में है वो लब ए शीरीं में नहीं रसरेशों में हैं जो शेख की दाढ़ी से मुक़द्दसआते हैं नज़र आम, तो जाते हैं बदन कसलंगड़े भी चले जाते हैं, खाने को बनारस होटों में हसीनों के जो, अमरस... Continue Reading →
जो आम में है वो लब ए शीरीं में नहीं रसरेशों में हैं जो शेख की दाढ़ी से मुक़द्दसआते हैं नज़र आम, तो जाते हैं बदन कसलंगड़े भी चले जाते हैं, खाने को बनारस होटों में हसीनों के जो, अमरस... Continue Reading →
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